भगत सिंह

वीर सावरकर ऐसी धातु से बने हुए थे जो तपाने पर और भी निखरने लगती है

समय के निष्पक्ष हाथों ने उन सच्चाइयों को ढूंढ निकाला है। उन्हें प्रकाश में लाने के प्रयत्न होने लगे हैं। उस नए इतिहास के एक स्वर्णिम अध्याय का ही नाम है “स्वातंत्र्यवीर सावरकर”।

हेमू कालाणी : जिन्होंने मात्र 19 वर्ष की आयु में मां भारती के श्रीचरणों में अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था!

हेमू कालाणी ने ‘इंकलाब-जिंदाबाद’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते हुए खुद अपने हाथों से फांसी का फंदा अपने गले में डाला, मानो फूलों की माला पहन रहे हों।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर : जिनका हिंदुत्व कोरी भावुकता पर नहीं, तर्कपूर्ण चिंतन पर आधारित था

आधुनिक राजनीतिक विमर्श में विनायक दामोदर सावरकर एक ऐसे नाम हैं, जिनकी उपेक्षा करने का साहस उनके धुर विरोधी भी नहीं जुटा पाते।

शहादत दिवस : ‘इंसान को मारा जा सकता है, उसके विचार को नहीं’

23 मार्च को भारतवासी कैसे भुला सकता है? इसी दिन देशभक्त भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू ने भारत माता को परतंत्रता की बेड़ियो से आजाद करवाने के लिए मौत को गले लगाया था। इन तीन वीर सपूतों को अपने मौत का कोई गम नहीं था, बल्कि इनके चेहरे पर खुशी का भाव था कि उनकी शहादत ने लोगों में आजादी के प्रति जुनून पैदा कर गया। 23 मार्च कोई समान्य तिथि नहीं है, इसी दिन भारत के कोने कोने में क्रांति

भगत सिंह कैसे बने शहीद-ए-आज़म ?

शहीद तो भगत सिंह के अलावा राजगुरु, सुखदेव, चंद्रशेखर आज़ाद, खुदीराम बोस समेत सैकड़ों हुए। इन सभी को जनमानस स्वत:स्फूर्त भाव से शहीद पुकारने लगा। तो भगत सिंह शहीद-ए-आजम कैसे बन गए ? भगत सिंह संभवत: देश के पहले चिंतक क्रांतिकारी थे। वे राजनीतिक विचारक थे। वे लगातार लिख-पढ़ रहे थे। उनसे पहले या बाद में कोई उनके कद का चिंतनशील क्रांतिकारी सामने नहीं आया।