‘सब्जी-दूध की बर्बादी करने वाले ये लोग और कुछ भी हों, मगर किसान नहीं हो सकते’

वास्तविकता यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने स्वामिनाथन आयोग की सर्वाधिक सिफारिशों को लागू किया है। इसके पहले यूरिया खरीद के समय देश के प्रत्येक हिस्से में लाठीचार्ज होता था, यूरिया का ब्लैक होता था, पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होती थी। यह किसी का आरोप नही, बल्कि अखबारों की सुर्खियाँ होती थीं। मोदी सरकार ने यूरिया को  शत-प्रतिशत निम कोटेड कर दिया। इसकी चोर बाजारी रुक गई, किसानों को पर्याप्त यूरिया मिलने लगी। क्या यूपीए सरकार इस विधि को नहीं जानती थी, उसने ऐसा क्यों नहीं किया ? आज किस मुंह से राहुल गांधी किसानों से हमदर्दी जता रहे हैं।

किसानों की समस्याओं से इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसा भी नहीं कि ये सभी समस्याएं पिछले तीन चार वर्ष में पैदा हुई हैं और इसके पहले किसान बहुत खुशहाल थे। आज कांग्रेस पार्टी स्वामीनाथन आयोग के लिए बेचैन है, जबकि इसकी रिपोर्ट कांग्रेस के शासन काल में आई थी। रिपोर्ट आने के बाद सात वर्ष तक यूपीए की सरकार थी, तब उसने रिपोर्ट की सिफारिशों पर कोई भी कारगर कदम नहीं उठाया। जबकि इस रिपोर्ट की सिफारिशों पर नरेंद्र मोदी सरकार ने अनेक प्रभावी कदम उठाए हैं।

मुम्बई और मंदसौर में गत वर्ष भी आज ही की तरह आंदोलन हुए थे। मंदसौर में उसने हिंसक रूप भी ले लिया था। बाद में पता चला कि किसानों के नाम पर राजनीतिक दल के लोग अराजकता फैला रहे थे। ऐसे ही जबरदस्ती तब भी दूध, सब्जी  एकत्र करके सड़कों पर फैला रहे थे। आज फिर वही दृश्य दोहराया जा रहा है।

सब्जी-दूध की बर्बादी करने वाले ये लोग किसान नहीं हो सकते

साइकिलों पर लेकर जाने वालों से दूध लिया जा रहा है, उन्हें टैंकर में भरा जा रहा है, फिर मीडिया को बुलाया जाता है, उनके सामने टैंकर से सड़क पर दूध फैलाया जाता है। सब्जियां बिखेरी जाती हैं। ऐसे में, क्या यह किसान आंदोलन लगता है ? टैंकर आदि का खर्च भी कोई न कोई वहन कर रहा होगा। क्या ये किसान हैं ? क्या किसान दस दिन तक सब्जी-दूध की ऐसी बर्बादी कर सकते हैं ? भारतीय ग्रामीण चिंतन में दूध का गिरना, फैलना अपशगुन माना जाता है। सब्जी-दूध की बर्बादी करने वाले ये लोग और कुछ भी हों, मगर किसान नही हो सकते। 

किसानों के हितों को लेकर स्वामीनाथन आयोग की बात अक्सर की जाती है। इस आयोग का गठन 2004 में किया गया था। इसे किसानों की स्थिति सुधारने के लिए सिफारिश देनी थी। दो वर्ष बाद 2006 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी थी। इसमें फसल लागत से पचास प्रतिशत अधिक कीमत मिलने, उचित मूल्य पर गुणवत्ता युक्त बीजों की उपलब्धता, किसान जोखिम फंड, फसल बीमा, किसान क्रेडिट कार्ड, उपजाऊ जमीन और वन भूमि उद्योगों के लिए न देने आदि की सिफारिश की गई थी।

वास्तविकता यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने स्वामिनाथन आयोग की सर्वाधिक सिफारिशों को लागू किया है। इसके पहले यूरिया खरीद के समय देश के प्रत्येक हिस्से में लाठीचार्ज होता था, यूरिया का ब्लैक होता था, पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होती थी। यह किसी का आरोप नही, बल्कि अखबारों की सुर्खियाँ होती थीं। मोदी सरकार ने यूरिया को  शत-प्रतिशत निम कोटेड कर दिया। इसकी चोर बाजारी रुक गई, किसानों को पर्याप्त यूरिया मिलने लगी। क्या यूपीए सरकार इस विधि को नहीं जानती थी, उसने ऐसा क्यों नहीं किया ? आज किस मुंह से राहुल गांधी किसानों से हमदर्दी जता रहे हैं।

किस मुंह से किसानों से हमदर्दी जता रहे हैं राहुल गांधी

मृदा परीक्षण,  मृदा हेल्थ कार्ड से भी यूपीए सरकार परिचित थी। लेकिन उसने इसके लिए अभियान नहीं चलाया। यह कार्य नरेंद्र मोदी ने किया। स्वामीनाथन ने भी मोदी सरकार द्वारा कृषि विश्वविद्यालयों और निजी क्षेत्र के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं के कौशल को बढ़ावा देने के प्रयासों की भी सराहना की है। 

ग्रामीण महिलाओं ने पचास प्रतिशत कृषि कार्य में योगदान दिया है। कृषि विश्वविद्यालयों और निजी क्षेत्र के माध्यम से अपने बाजार कौशल को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास किए गए हैं। कृषि वैज्ञानिक और किसानों के राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष एमएस स्वामीनाथन ने केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार की कृषि नीतियों की सराहना की थी। उन्होंने कहा कि सरकार ने कृषि आयोग की कई सिफारिशें लागू की हैं। मोदी सरकार ने किसान आयोग की बेहतर बीज, सॉयल हेल्थ कार्ड, बीमा, सिंचित क्षेत्र में वृद्धि सिफारिशों को लागू किया है। 

नरेंद्र मोदी ने छोटी होती जा रही जोत की समस्या को भी समझा है। गांव के पास स्वरोजगार, कौशल विकास, मुद्रा बैंक आदि की व्यवस्था इसीलिए की गई है। प्रतीक के रूप में उन्होंने पकौड़ा बनाने जैसे स्वरोजगार की बात कही थी। लेकिन, विपक्ष ने इसे मजाक का विषय बना दिया। वस्तुतः विपक्ष  कम जोत वाले किसानों का मजाक बना रहा था। वह उन्हें साधारण जोत में उलझाए रखना चाहता था। इसलिए कृषि के साथ स्वरोजगार का मजाक बनाया। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी  वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है। इस दिशा में आगे बढ़ते हुए राजस्थान सरकार ने अन्नदाता के कल्याण के लिए कई महत्त्वपूर्ण फैसले लिए हैं, जिनमें से एक है ‘राज सहकार व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना’ के तहत किसानों को मिलने वाली सहायता राशि को बढ़ाकर दस  लाख रुपये करना। प्रदेश के किसानों को इस योजना का लाभ मात्र सत्ताईस  रुपये के वार्षिक प्रीमियम पर मिल रहा है।

इसके तहत बीमित के आंख, हाथ या पैर में से किसी एक अंग की स्थायी अपंगता पर तीन  लाख रुपये, किन्हीं दो अंगों की स्थाई अपंगता अथवा दुर्घटना में मृत्यु पर दस  लाख रुपये का बीमा किसान भाइयों को मिल रहा है। 2013 तक इस योजना के तहत किसानों को सिर्फ पचास हजार रुपये की आर्थिक सहायता मिलती थी। राजस्थान के इतिहास में ऐसा पहली बार है, जब किसी योजना के तहत मिलने वाली सहायता राशि को बीस गुना बढ़ाया गया हो।

इसी प्रकार उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने किसानों के कल्याण हेतु अनेक कार्य किये हैं। धान-गेहूं की रिकार्ड खरीद हुई। पहली बार आलू के लिए अलग व्यवस्था की गई, जिससे आलू उत्पादक किसानों को राहत  मिल सके। केंद्र के साथ मिल कर रुपे कार्ड अभियान प्रारंभ किया गया।

यह किसान क्रेडिट कार्ड की भांति है, जिसे राष्ट्रीयकृत बैंकों के द्वारा जारी किया जाता है, जिससे किसान बैंकों द्वारा स्वीकृत फसली ऋण की सीमा तक धनराशि आहरित कर बीज-उर्वरक आदि की सुविधा हासिल कर सकते हैं। इसी प्रकार अनेक प्रदेश सरकारों ने कदम उठाए हैं। निश्चित ही कृषि क्षेत्र में अभी और बड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। लेकिन अच्छी बात ये है कि मौजूदा सरकार सही नीयत से इस दिशा में प्रयास कर रही है।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)