सरकार और सेना की दृढ़ता का परिणाम है डोकलाम की कूटनीतिक जीत

इस पूरे प्रकरण के दौरान भारत न तो चीन के सामने झुका और न रुका। पहले जो चीनी सेना वापस कदम खींचने के लिए तैयार नहीं थी, आखिर भारत के मजबूत रुख और वैश्विक दबाव के कारण उसने अपने कदम वापस खींच लिए, भारत के लिए यह बड़ी सफलता है। लेकिन हमें सीमा विवाद को लेकर अब और ज्यादा सजग रहना होगा साथ ही साथ अब भारत को एक ऐसी दीर्घकालिक नीति पर काम करना होगा, जिससे आने वाले 50 सालों तक भारत की सुरक्षा मुकम्मल हो सके। संभवतः सरकार ऐसी ही योजना पर बढ़ रही है।

डोकलाम मुद्दे पर 73 दिनों तक चीनी सेना के साथ आंखों में आंखें डालकर खड़ा रहने का माद्दा भारत ने दिखाया है, इसके लिए सरकार और भारतीय सेना दोनों ही निश्चित तौर पर बधाई के पात्र हैं। इसे न सिर्फ एक कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है बल्कि भारत ने पाकिस्तान जैसे और भी कई देशों को कड़ा सन्देश भी दिया है कि भारत कठिन परिस्थितियों में भी ठोस कदम उठाने की हिम्मत रखता है।

दूसरी बात, भारत ने डोकलाम विवाद के रहते हुए कभी भी खुद धमकी भरा रवैया नहीं अपनाया, बल्कि हमेशा ही बातचीत के विकल्प को ही चुना। वहीं चीन का रुख हमेशा ही धमकी भरा रहा, जिससे पूरी दुनिया का जनमत चीन के खिलाफ गया।  विश्वभर में इन दिनों आर्थिक सहयोग और सहकार का दौर है और एकदूसरे पर आर्थिक निर्भरता पहले के मुकाबले अब काफी ज्यादा हो गई है, ऐसे में चीन ने भारत में अपने हितों का ज्यादा नुकसान किया।  

इस पूरे प्रकरण के दौरान भारत न तो चीन के सामने झुका और न रुका। पहले जो चीनी सेना वापस कदम खींचने के लिए तैयार नहीं थी, आखिर भारत के मजबूत रुख और वैश्विक दबाव के कारण उसने अपने कदम वापस खींच लिए, भारत के लिए यह बड़ी सफलता है। लेकिन हमें सीमा विवाद को लेकर अब और ज्यादा सजग रहना होगा साथ ही साथ अब भारत को एक ऐसी दीर्घकालिक नीति पर काम करना होगा, जिससे आने वाले 50 सालों तक भारत की सुरक्षा मुकम्मल हो सके। संभवतः सरकार ऐसी ही योजना पर बढ़ रही है।  

हम चीन पर विश्वास नहीं कर सकते हैं कि वह भविष्य में ऐसी हरकतें नहीं करेगा और न चीन ने ऐसा ही कहा है कि वह आने वाले दिनों में दोबारा सड़क नहीं बनाएगा। भारतीय सेना को अब इस तरह की स्थितियों के लिए लगातार तैयार रहना होगा। इस पूरे मामले में भारत सरकार और खासकर विदेश मंत्रालय ने अहम भूमिका निभाई है, इससे यह भी ज़ाहिर हुआ कि भारत सरकार ने दबाव के आगे न झुककर कूटनीतिक रणनीतियों को ज्यादा तवज्जो दी।

सेना की तरफ से जो बयान आया उसमें सिर्फ दो बातों पर गौर करना चाहिए। पहली कि सेना हटाने का फैसला दोनों तरफ से किया गया और दूसरी कि जल्द ही स्थिति सामान्य हो जाएगी। सेना प्रमुख विपिन रावत के कुछ दिनों पहले दिए गए बयान का अंतर्निहित आशय भी यही था कि डोकलाम जैसी घटनाओं के लिए भारत को तैयार रहना होगा। 

भारत के प्रमुख अख़बारों में एक ‘द हिन्दू’ में भारत की कूटनीतिक सफलता को सराहा गया है, “आखिर भारत की डोकलाम मुद्दे पर कूटनीतिक जीत हुई है, जिसमें भारत ने चीन के विपरीत सख्त बयानों और धमकियों से बचकर दुनिया के सामने एक मजबूत छवि प्रस्तुत की है।” वहीं पाकिस्तान में The Dawn जैसे बहुत ज्यादा पढ़े जाने वाले अहम अख़बार में चीन और भारत के बीच चल रही इस तनावपूर्ण स्थिति के बाद बनी सहमति पर पाकिस्तान ने कुछ ज्यादा नहीं कहा है। कहने की जरूरत नहीं कि भारत की इस कूटनीतिक जीत से पाकिस्तान को अंदर ही अंदर बड़ा झटका लगा है।

चीनी सरकार का माउथपीस माने जाने वाले अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने डोकलाम विवाद पर अपनी राय रखते हुए कहा है कि भारत और चीन के बीच संबंधों में स्थिरता ज़रूरी है। 2-3 सितम्बर को चीन के फयुजियान शहर में शुरू होने जा रहे ब्रिक्स सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ब्रिक्स की मौजूदगी को काफी अहम माना जा रहा है, जहां डोकलाम विवाद के बाद मोदी दुनिया भर के शीर्ष नेताओं के सामने चीन की बदमाशियों को लेकर अपना पक्ष रखने में कामयाब होंगे।

भारतीय उपमहाद्वीप में चीन की भूमिका और बढ़ते प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन यह ज़रूरी है कि चीन भी भारत सहित तमाम पडोसी देशों की संप्रभुता और अखंडता का सम्मान करते हुए शांति और भाईचारे के हित में अपने विस्तारवादी नीति का त्याग करे। उम्मीद करते हैं कि इस डोकलाम प्रकरण के बाद चीन को भारत की ताकत का अंदाजा मिल गया होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)