मजदूरों के बहाने सरकार को घेरने वाले विपक्ष की मजदूर ही खोल रहे पोल

लॉकडाउन के आरंभिक चरणों में मजदूरों के पलायन आदि के बहाने विपक्ष ने सरकार पर खूब निशाना साधा और तरह-तरह के आरोप लगाए। कहा गया कि सरकार उनपर ध्यान नहीं दे रही, उन्हें उनके घर पहुंचाने की व्यवस्था नहीं हो रही। रेलवे पर भी मजदूरों को ले जाने में बहुत अव्यवस्था और असावधानी बरतने के आरोप लगाए गए। लेकिन सच इन सबसे अलग था और वो समय के साथ जहां-तहां से सामने आ रहा है।

अपनों से मिलने की उमंग और उछाह किसमें नहीं होती! भला कौन ऐसा होगा जो किसी आपत्ति-विपत्ति में भागकर अपने परिजनों के पास नहीं पहुँचना चाहेगा! लॉकडाउन में घर को निकल पड़े प्रवासी मजदूरों के मन में कहीं न कहीं यही बात रही होगी।

इस दौरान प्रवासी मजदूरों की ये पीड़ा एवं छटपटाहट कुछ लोगों के लिए जहाँ सचमुच सच्ची सहानुभूति और संवेदना का विषय रही, हिम्मत और हौसला बँधाने की घड़ी रही;  तो वहीं कुछ लोगों के लिए यह निहित स्वार्थों की पूर्त्ति का अवसर मात्र था। वे इस संकटकाल में भी मज़दूरों को हिम्मत देने की बजाय उनकी बेचैनी को बढ़ाने, उनमें भगदड़ एवं अनिश्चितता की स्थिति निर्मित करने की साज़िश रच रहे थे।

विस्थापन की पीड़ा को वही समझ सकते हैं, जिन्हें रोजी-रोटी की तलाश में शहर-शहर भटकना पड़ा हो, जिन्हें अपने गाँव-घर, खेत-खलिहान से दूर डब्बों जैसे घरों और तंग गलियों में रातें गुजारनी पड़ी हों, जिनके पाँवों में नगर-डगर नापने के अनुभव और छाले हों। वे नहीं, जो ग़रीबी हटाने और मज़दूरों को हक़ दिलाने के नाम पर कोरी राजनीति करते आए हों।

मजदूरों के बहाने विपक्ष ने सरकार पर खूब निशाना साधा और तरह-तरह के आरोप लगाए। कहा गया कि सरकार उनपर ध्यान नहीं दे रही, उन्हें उनके घर पहुंचाने की व्यवस्था नहीं हो रही आदि। रेलवे पर भी मजदूरों को ले जाने में बहुत अव्यवस्था और असावधानी बरतने के आरोप लगाए गए। लेकिन सच इन सबसे अलग था और वो समय के साथ जहां-तहां से सामने आ रहा है।

http://https://www.youtube.com/watch?v=1c_phFisxEk&feature=youtu.be

इस संदर्भ में टीवी चैनल न्यूज़ 18 इंडिया का यह वीडियो देखने लायक है। इस वीडियो रिपोर्ट में हिसार, हरियाणा से लगभग 1000 से अधिक श्रमिकों का जत्था बिहार जा रहा है। बातचीत में मजदूर जो बता रहा उसका तात्पर्य यह है कि इस मुश्किल वक्त में रेलवे-प्रशासन ने उनकी बहुत मदद की। उन्हें सुरक्षित और सकुशल घर पहुँचाने में उनकी व्यवस्था चाक-चौबंद थीं। विपक्ष द्वारा यह आरोप भी लगाया था कि रेलवे मजदूरों से किराया वसूल रहा है, लेकिन इस वीडियो में स्पष्ट है कि मजदूरों से कोई किराया नहीं लिया गया।

इसके अलावा डीडी न्यूज़, राजस्थान की इस वीडियो रिपोर्ट के अनुसार केरल में फँसे श्रमिकों एवं उनके परिजनों को लेकर एक श्रमिक स्पेशल ट्रेन राजस्थान के हिंडौन शहर पहुँची।

रेलवे ने न केवल उनकी सुरक्षित एवं सकुशल यात्रा सुनिश्चित की, अपितु विभिन्न पड़ावों पर उनके भोजन-पानी का भी यथासंभव प्रबंध किया। उतरने के पश्चात भी उन्हें क्वारन्टीन करने से लेकर उनके घर पहुँचने तक रेलवे के अधिकारी और कार्यकर्त्ता उनकी सेवा में तत्पर रहे।

http://https://www.youtube.com/watch?v=HXAS5rn-V0o&feature=youtu.be

यह बस कुछ उदाहरण हैं, अन्यथा देश भर के विभिन्न शहरों में फँसे लाखों श्रमिकों को उनके घर तक पहुँचाने में रेलवे की भूमिका स्तुत्य और सराहनीय रही। बल्कि यों कहना चाहिए कि इस संपूर्ण व्यवस्था के सुचारू संचालन में जुटे अधिकारियों-कर्मचारियों ने अपने जान तक की परवाह नहीं की।

जाहिर है, देश में सरकार और सरकारी तंत्र द्वारा मिलजुलकर संकटकालीन परिस्थितियों में भी बड़ी सूझबूझ और योजनाबद्ध तरीके से देश के निर्माणकर्ता श्रमिकों के हितों का ख्याल रखा गया तथा उन्हें सकुशल उनके घर पहुँचाया गया, फिर आरोप लगाने वाले चाहें कुछ भी आरोप लगाते रहें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

भारत वर्ष की लोकमान्यता जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि की रही है। और यदि थोड़ी सकारात्मकता से विचार करें तो इस लॉकडाउन की अवधि में चारों ओर सहयोग एवं सामंजस्य के उदाहरण देखने को मिलते रहे। इस बीच प्रलय के भविष्यवक्ताओं और अराजकता के तमाम सौदागरों के लिए यह बेचैनी और बहस का विषय रहा कि भारत में अमेरिका जैसी लूट-पाट, तोड़-फोड़, मार-काट, उपद्रव-आंदोलन क्यों नहीं हो रहा?

वस्तुतः विखंडनवादी दर्शन के पोषक और अनुयायी भारत के समन्वय और समग्रतावादी दर्शन को कभी समझ ही नहीं पाए। यहाँ राजा भी रंक के द्वार जाता है और रंक भी राजा को पार उतारता है। हम परस्पर पूरकता, सहयोग और सह-अस्तित्व की संस्कृति में विश्वास रखते हैं। हम परहित को सबसे बड़ा धर्म मानते हैं।

और यही कारण रहा कि चाहे वे सरकारी नुमाइंदे हों या आम जन इस संकट-काल में जिससे जितना बन पड़ा, उसने जरूरतमंदों की उतनी मदद की। और यही बात मातम के महाभोज की प्रतीक्षा में बैठे कतिपय गिद्धों को रास नहीं आ रही।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)