प्रणय कुमार

महारानी लक्ष्मीबाई : सोए हुए पौरुष और स्वाभिमान को जागृत-झंकृत करने वाली वीरांगना

जनरल ह्यूरोज का यह कथन महारानी लक्ष्मीबाई के साहस एवं पराक्रम का परिचय देता है, ”अगर भारत की एक फीसदी महिलाएँ इस लड़की की तरह आज़ादी की दीवानी हो गईं तो हम सब को यह देश छोड़कर भागना पड़ेगा।”

महाराणा प्रताप : जिनका युद्ध-कौशल ही नहीं, सामाजिक-सांगठनिक कौशल भी अतुलनीय था

जिनका नाम लेते ही नस-नस में बिजलियाँ-सी कौंध जाती हों; धमनियों में उत्साह, शौर्य और पराक्रम का रक्त प्रवाहित होने लगता हो- ऐसे परम प्रतापी महाराणा प्रताप की आज जयंती है। आज का दिवस मूल्यांकन-विश्लेषण का दिवस है।

छत्रपति शिवाजी : समय एवं समाज की चेतना को झंकृत करने वाले नायक

शिवाजी महाराज केवल एक व्यक्ति नहीं थे, वे एक सोच थे, संस्कार थे, संस्कृति थे,   पथ-प्रदर्शक,  क्रांतिकारी मशाल थे, युगप्रवर्तक शिल्पकार थे।

जयंती विशेष : साहस, स्वाभिमान एवं स्वानुशासन के जीवंत प्रतीक थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस

सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिए गए नारे ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा’, ‘दिल्ली चलो’ या ‘जय हिंद’ – प्रमाणित करते हैं कि वे युवाओं के मन और मिज़ाज की कितनी गहरी समझ रखते थे!

छठ पर्व हमें बताता है कि हर अस्त का उदय निश्चित है

छठ के हर सूप, हर गमले या डगरे में दूध या जल का दान बर्बादी नहीं बल्कि अर्घ्य-दान है, कृतज्ञ मानव का प्रकृति के प्रति यह अपनी ही तरह की श्रद्धाभिव्यक्ति है

जयंती विशेष : पंडित दीनदयाल उपाध्याय और एकात्म मानवदर्शन

एकात्म मानव दर्शन भारत की सनातन संस्कृति एवं चिरंतन जीवन-पद्धत्ति की युगीन व्याख्या है। परस्पर सहयोग एवं आंतरिक-तात्विक जुड़ाव पर अवलंबित रहने के कारण यह विस्तारवादी-साम्राज्यवादी प्रवृत्तियों एवं महत्ववाकांक्षाओं पर विराम  लगा विश्व-बंधुत्व की भावना को सच्चे एवं वास्तविक अर्थों में साकार करता है। सरलता और सादगी की प्रतिमूर्त्ति पंडित दीनदयाल उपाध्याय बहुमुखी एवं विलक्षण

भारत की सनातन संस्कृति एवं चिरंतन जीवन-पद्धति की युगीन व्याख्या है एकात्म मानववाद

उन्होंने मनुष्य का समग्र चिंतन करते हुए जिस दर्शन का प्रवर्त्तन किया, उसे  पहले ‘समन्वयकारी मानववाद’ और बाद में ‘एकात्म मानववाद’ नाम दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी : अनुभव एवं संघर्षों की आँच में तपकर निखरे-चमके लोकप्रिय राजनेता

जब प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि राजनीति उनके लिए सत्ता व सुविधा की मंजिल नहीं, सेवा का माध्यम रही है तो उनका यह वक्तव्य अतिरेकी या अविश्वसनीय नहीं लगता।

सांस्कृतिक अस्मिता को राजनीति के केंद्र में स्थापित करने वाले जननेता थे कल्याण सिंह

कल्याण सिंह का देहावसान राजनीति के एक युग का अंत व अवसान है। वे भारतीय राजनीति के शिखर-पुरुष के रूप में सदैव याद किए जाएंगे।

प्रेमचंद : जो अपनी साहित्यिक जिम्मेदारी और सामाजिक आवश्यकता दोनों को ही भलीभांति समझते थे

साहित्यकार नग्न-से-नग्न सत्य को भी सौंदर्य में आवेष्टित कर प्रस्तुत करता है। वह अपने ढ़ंग से ‘सत्यं शिवम सुंदरम’ की स्थापना करता है। प्रेमचंद ने भी यही किया।