मोदी सरकार ने जाधव मामले में जो किया है, वो संप्रग सरकार सरबजीत मामले में क्यों नहीं कर सकी ?

कांग्रेस नीत संप्रग सरकार सरबजीत के मामले में बुरी तरह असफल रही थी। वहीं, जाधव को लेकर मौजूदा सरकार का रवैया बहुत सधा हुआ, सतर्क, कूटनीतिक सक्रियता से पूर्ण और स्‍पष्‍ट रहा है। जाधव की गिरफ्तारी के बाद बहुत जल्‍द भारत ने पाकिस्‍तान को न केवल अंतरराष्‍ट्रीय अदालत में घसीटा बल्कि पूरी दुनिया के सामने बेनकाब भी कर दिया। सवाल उठता है कि जाधव मामले में वर्तमान सरकार ने जिस ढंग से प्रयास किए हैं, ऐसे प्रयास संप्रग सरकार सरबजीत मामले में क्यों नहीं कर सकी ?

भारतीय नागरिक व पूर्व नेवी अफसर कुलभूषण जाधव को पाकिस्‍तानी सैन्‍य अदालत द्वारा सुनाई गई फांसी की सजा के मामले में गुरुवार को देश-दुनिया की निगाहें अंतर्रराष्‍ट्रीय अदालत के फैसले पर टिकी थीं। लोग टेलीविजन से चिपके एक-एक बात को ध्‍यान से सुन समझ रहे थे। आखिर फैसले की घड़ी आई और थोड़ी ही देर में सब कुछ स्‍पष्‍ट हो गया। लोगों ने वही सुना जो वे सुनना चाहते थे। कोर्ट ने कुलभूषण की फांसी पर अंतिम सुनवाई किए जाने तक रोक लगाने का आदेश दिया।

जैसे ही फैसला आया कि पाकिस्‍तान अभी जाधव को फांसी नहीं दे सकता, यह सुनकर देश भर में खुशी की लहर दौड़ गई। देश में कई स्‍थानों पर पटाखे फोड़े गए, जश्‍न मनाया गया और मिठाई बांटी गई। पाक की इस किरकिरी के बाद अब जाधव की रिहाई की उम्‍मीदें जाग उठी हैं। मुंबई के लोअर परेल इलाके में जाधव रहे चुके हैं, यहां उनके बचपन के मित्र तुलसीदास सहित अन्‍य दोस्‍तों ने गणेश पूजन किया। वे यहां हस्‍ताक्षर अभियान भी चला रहे हैं।

साभार : गूगल

दूसरी ओर पाकिस्‍तान ने अपने अड़ियल रवैये का परिचय देते हुए इस फैसले को मानने से इंकार कर दिया है। उसने ये तर्क दिया है कि राष्‍ट्रीय सुरक्षा के मामलों में विश्‍व अदालत का हस्‍तक्षेप मान्‍य नहीं है। हालांकि अंतरराष्‍ट्रीय अदालत ने अपनी सुनवाई में स्‍पष्‍ट किया है कि यदि पाकिस्‍तान यह फैसला नहीं मानेगा तो उस पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। उसे जाधव को काउंटर एक्‍सेस देना ही होगा, यानी प्राकृतिक न्‍याय के सिद्धांत के अनुसार, जाधव को वकील रखने व पैरवी करवाने का अधिकार होना चाहिए। यदि पाक यह अनुमति नहीं देता है तो ऐसे में भारत संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद में अपील भी कर सकता है।

आईसीजे के फैसले से पाक की बौखलाहट उभरने लगी है। कानूनी परिदृश्‍य कहता है कि पाक इस आदेश को नकार नहीं सकता। आईसीजे के आदेश को भी अपनी मनमानी के चलते नकार रहे पाक को ये नहीं भूलना चाहिए कि यूएन चार्टर के मुताबिक यूएन के सारे सदस्‍य देश आईसीजे के आदेश को मानने के लिए बाध्‍य हैं। भारत व पाक दोनों संयुक्‍त राष्‍ट्र के सदस्‍य हैं। यदि नियम की ही बात की जाए तो इसे लागू करने के लिए सुरक्षा परिषद के पास कार्रवाई के अधिकार सुरक्षित हैं। ऐसे में पाकिस्‍तान का विरोध बेमतलब की ढपली जैसा है।

कुलभूषण जाधव (साभार : गूगल)

एक बयान में ख्‍यात वकील उज्‍जवल निकम ने कहा है कि पाक ने इतना बड़ा कदम बिना आधार के कैसे उठा लिया, यही आश्‍चर्य है। पाक के पास केवल जाधव के बयान के रूप में एक ही सबूत है, जो कि दबावपूर्वक दिलवाया गया है। पाक सरकार के यह कहने पर कि वह आइसीजे का फैसला मानने को बाध्य नहीं है, निकम का कहना था कि उसकी इस तरह की झुंझलाहट भारत की मजबूत स्थित को दर्शा रही है। अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी का कहना है कि फैसला दोनों देशों पर बाध्यकारी है। पाकिस्तान के आदेश न मानने की अभी कोई आशंका नहीं है।

आईसीजे में पाकिस्‍तान की दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया गया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पाकिस्‍तान एक अड़ियल और व्यावहारिक रूप से विधि-विहीन राष्‍ट्र है, जिसने जाधव मामले में मानवाधिकार जैसी बुनियादी बात का बिलकुल ख्‍याल नहीं रखा है। नीदरलैंड के हेग स्थित आईसीजे में महज एक रूपये की फीस पर जाधव की पैरवी कर रहे हरीश साल्‍वे ने कहा कि ईरान से अपहृत किए जाने के बाद जाधव का जो कबूलनामा सामने आया है, वह संदिग्‍ध है। जाधव के माता-पिता ने पाकिस्‍तान से वीजा के लिए गुहार लगाई जिसका पाक ने कोई जवाब नहीं दिया है। भारत सरकार अभी तक 17 बार इस सम्बन्ध में मांग कर चुकी है, जिसे पाक ने अनसुना कर दिया। इससे स्‍पष्‍ट है कि पाकिस्‍तान ने जाधव की आड़ में सिर्फ अपना नापाक चेहरा दिखाया है।

साभार : गूगल

उल्लेखनीय होगा कि कुलभूषण जाधव के मामले में केंद्र की भाजपा सरकार ने जिस तेजी और त्‍वरित प्रयासों का उदाहरण दिया है, वह सराहनीय है। हमारे पास सरबजीत जैसी दर्दनाक कहानी भी है, जिसमें सिवाय संताप के कुछ हाथ नहीं लगा। सरबजीत को भी पाक ने ऐसे ही जासूसी के झूठे केस में गिरफ्तार किया था और 1991 में फांसी की सजा सुनाई थी। जून 2008 में जब सरबजीत की फांसी की तारीख तय हुई, तब उनकी सजा टल तो गई थी, लेकिन तत्‍कालीन सरकार के प्रयासों में गंभीरता व दूरदर्शिता का अभाव था। इसी का नतीजा हुआ कि पूर्ववर्ती सरकार पाकिस्‍तान पर कोई दबाव नहीं बना पाई और पाक के हौसले बढ़ते गए। संप्रग सरकार इस मामले में कूटनीतिक प्रयासों के स्तर पर एकदम उदासीन रही। परिणामतः 2013 में सरबजीत तो नहीं आए, लेकिन उनकी मौत की खबर आई।

पाक उन्हें कभी आने नहीं देना चाहता था। लाहौर की जेल में सरबजीत पर हुआ जानलेवा हमला और हमले में हुई मौत के बाद शव से की गई छेड़छाड़ ने पूरे प्रकरण को घिनौना बना दिया। पाकिस्तानी जेल में सरबजीत के यंत्रणापूर्ण जीवन और मृत्‍यु दोनों ने न केवल पाकिस्तान की क्रूरता का वीभत्स चेहरा दुनिया के सामने प्रस्तुत किया, बल्कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार की उनको बचाने की दिशा में अगंभीरता की भी कलई खोल के रख दी।

कांग्रेस नीत संप्रग सरकार सरबजीत के मामले में बुरी तरह असफल रही थी। वहीं, जाधव को लेकर मौजूदा सरकार का रवैया बहुत सधा हुआ, सतर्क, कूटनीतिक सक्रियता से पूर्ण और स्‍पष्‍ट रहा है। जाधव की गिरफ्तारी के बाद बहुत जल्‍द भारत ने पाकिस्‍तान को न केवल अंतरराष्‍ट्रीय अदालत में घसीटा बल्कि पूरी दुनिया के सामने बेनकाब भी कर दिया। सवाल उठता है कि जाधव मामले में वर्तमान सरकार ने जिस ढंग से प्रयास किए हैं, ऐसे प्रयास संप्रग सरकार सरबजीत मामले में क्यों नहीं कर सकी ?

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गौरतलब है कि जाधव को जब पाक ने सजा सुनाई थी, उसके बाद से ही भारत में जाधव को लेकर उच्‍च स्‍तर पर प्रयास शुरू हो गए थे। विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज ने कहा था कि हर स्‍तर पर जाकर जाधव को बचाया जाएगा और जरूरत पड़ने पर सारे तरीके आजमाए जाएंगे। तब देश को भी समझ नहीं आया था कि सरकार इस मामले में क्या कर सकती है। लेकिन, वह केवल भावावेश में कहा गया वाक्‍य नहीं बल्कि एक दृढ़ और गंभीर बात थी, जिस पर भारत सरकार खरी भी उतरी। यही कारण है कि आज आईसीजे ने जाधव को संरक्षण देते हुए पाक को लताड़ा तो पूरे विश्‍व में पाक की बुरी तरह से किरकिरी हुई। अब पाकिस्तान की एक तरफ कुआँ और दूसरी तरफ खाई वाली हालत है।  

पाक में जिस कोर्ट ने जाधव को सजा सुनाई वह एशिया की एकमात्र सैन्‍य अदालत है, जहां पारदर्शिता की संभावना नहीं होती। दूसरी बात यह कि आईसीजे के फैसले पर पाक के कानून मंत्री ने कहा कि फैसला स्‍वीकार है। पाक के वैदेशिक मामलों के जानकार सरताज अजीज पहले ही स्‍वीकार चुके हैं कि जाधव के खिलाफ पर्याप्‍त सबूत नहीं हैं।

स्पष्ट है कि जाधव को लेकर वहाँ की सरकार और सेना के बीच भी मतभेद हैं, जिसका लाभ भारत अवश्य लेगा। जाधव के कबूलनामे का वीडियो भी बनावटी लगता है, संभवतः इसी कारण उसे आईसीजे ने देखने तक से इनकार कर दिया। बहरहाल, जाधव को विश्‍व अदालत से मिली इस फौरी राहत के बाद अब हर देशवासी की कामना है कि जाधव को जीवनदान मिले। उम्मीद है कि सरकार आगे भी तत्परतापूर्वक इस दिशा में हरसंभव कदम उठाते हुए जाधव को वापस लाने में कामयाब होगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)