पॉलिटिकल कमेंटरी

यूपी चुनाव : सभी दलों से अधिक मज़बूत नज़र आ रही भाजपा

यूपी चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। आगामी ग्यारह फ़रवरी से सूबे में मतदान शुरू हो रहा है, जिसमें अब गिनती के दिन शेष हैं। इसलिए सूबे की लड़ाई में ताल ठोंक रहे सभी राजनीतिक दल अपने चुनावी व्यूह को मज़बूत बनाने और समीकरणों को पक्का करने की कोशिश में लग गए हैं। प्रदेश की सत्तारूढ़ पार्टी सपा में महीनों से मचा पारिवारिक और राजनीतिक उठापटक का नाटक भी चुनाव की

यूपी चुनाव : भाजपा की लहर से भयभीत विपक्षियों ने शुरू की एकजुट होने की कवायद

यूपी विधानसभा चुनावों की बिसात बिछ चुकी है। सभी राजनीतिक पार्टियां अपना-अपना दांव खेलने के लिए तैयार हो चुकी है। एक तरफ यूपी में मुख्य विपक्षी दल बसपा है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस अपनी खो चुकी साख को वापस पाने के लिए जद्दोजहद करने में लगी हुई है। सत्तारूढ़ सपा में मचे दंगल ने सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रखा है। सपा में जो दंगल मचा है, उसे लेकर लोगों में भ्रम ही घुमड़

भाजपा की विकासवादी राजनीति के आगे पस्त पड़ती विपक्ष की नकारात्मक राजनीति

राहुल गाँधी समेत कई अन्य विपक्षी नेताओ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर रिश्वत लेने जैसा गंभीर आरोप लगाते हुए कुछ दस्तावेज कथित तौर पर सुबूत के रूप में पेश किये थे, जिस आधार पर वकील प्रशांत भूषण ने एसआईटी जाँच के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका डाल दी, जिसे न्यायालय ने खारिज़ कर दिया है। न्यायालय द्वारा प्रशांत भूषण की याचिका पर सुनवाई से इनकार के बाद विपक्ष को एक और बड़ा झटका

परिवार और राजनीति के बीच अंतर का आदर्श स्थापित करते प्रधानमंत्री मोदी

गत दिनों भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आगामी विधानसभा चुनाव के संदर्भ में कहा गया कि भाजपा इन चुनावों में अवश्य जीत हासिल करेगी, लेकिन इसके लिए मेहनत की आवश्यकता है। साथ ही, उन्होंने यह हिदायत भी दी कि पार्टी नेता अपने परिवार के सदस्यों के लिए टिकट न मांगें। इस बयान के गहरे और व्यापक निहितार्थ हैं, जिन्हें समझने की आवश्यकता है। दरअसल आज देश

पाँचों राज्यों के विधानसभा चुनावों में सबसे दमदार नज़र आ रही भाजपा !

चुनाव की रणभेरी बजते ही, चुनावी युद्ध के मैदान में महारथियों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया है। एक तरफ भाजपा का विकास का मुद्दा है तो दूसरी तरफ अन्य दलों का जातिवाद, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद का मुद्दा। परंपरागत चुनाव से इतर इस बार का चुनाव कई मायनों में अलग प्रतीत हो रहा है। माना जा रहा है कि यह चुनाव परिणाम कई राजनीतिक पार्टियों की दशा और दिशा भी तय कर सकता है।

परिवारवादी राजनीति पर प्रधानमंत्री का कड़ा संदेश

भारतीय राजनीति में परिवारवाद की बहस एकबार फिर चर्चा में है। चर्चा की वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय कार्यकारिणी में दिया गया एक बयान है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में कार्यकर्ताओं एवं पदाधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि अपने परिवार वालों के टिकट के लिए पार्टी नेता दबाव न बनाएं। भाजपा की आंतरिक बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिया गया यह

लाल आतंक : केरल में वामपंथी हिंसा के शिकार बने भाजपा कार्यकर्ता सी. राधाकृष्णन

जी हाँ ! 291, अब तक केरल में सन 1969 से संघ और जनसंघ/भाजपा के कुल 291 कार्यकर्ता मारे गए हैं उनमें से 228 केवल वामपंथी हिंसा के शिकार बन चुके हैं । केरल के कन्जिकोड, पालाघाट के एक सामान्य से भाजपा कार्यकर्ता, चदयनकलायिल राधाकृष्णन का नाम वामपंथियों द्वारा किये जा रहे राजनैतिक हत्याओं की फेहरिश्त में 6 जनवरी 2017 को जुड़ गया । राधाकृष्णन केरल में राजनैतिक शहादत को

परिवारवादी राजनीति के दौर में जनहितकारी राजनीति की उम्मीद जगाती भाजपा

जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी को समान अधिकार, अवसर की समानता जैसी बातें संविधान में वर्णित की गई हो, ऐसे देश में अगर राजनीति के क्षेत्र में परिवारवाद की जड़ें इतनी गहरे तक जम जाएं कि राष्ट्रीय राजनीति से लेकर क्षेत्रीय राजनीति तक इसकी विषबेल पसरने लगे तो इससे बड़ी विडाबंना कोई और नहीं हो सकती। ऐसे में, समान अधिकार दिलाने वाला संवैधानिक ढ़ांचा ही कही न कही कमजोर पड़

नोटबंदी की विफलता का बेसुरा राग

नोटबंदी को लेकर पिछले पचास दिनों में जमकर सियासत हुई । व्यर्थ के विवाद उठाने की कोशिश की गई । केंद्र सरकार पर तरह-तरह के इल्जाम लगाए गए । केंद्र सरकार पर एक आरोप यह भी लग रहा है कि इस योजना से कालाधन को रोकने में कोई मदद नहीं मिलेगी क्योंकि उसका स्रोत नहीं सूखेगा । इस तरह का आरोप लगाने वाले लोग सामान्यीकरण के दोष के शिकार हो जा रहे हैं । अर्थशास्त्र का एक बहुत ही

यूपी चुनाव : भाजपा के पक्ष में दिख रही लोकसभा चुनाव जैसी लहर

संभवतः इस सप्ताह चुनाव आयोग उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दे। सभी पार्टियाँ पूरी तैयारी के साथ प्रदेश के चुनावी दंगल में उतरने के लिए बेताब हैं, सभी दल अपनी–अपनी दावेदारी पेश करने में लगे हैं, किन्तु लोकतंत्र में असल दावेदार कौन होगा इसकी चाभी जनता के पास होती है। सत्ता की चाभी यूपी की जनता किसे सौंपती है यह भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है। लेकिन, यूपी में जो