समाज-संस्कृति

डॉ कलाम के जीवन से जुड़े वो किस्से जो कट्टरपंथियों की आँखें खोल देंगे !

पिछले दिनों रामेश्वरम में भारत रत्न और हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की याद में बनाए गए स्मारक में डॉ. कलाम की प्रतिमा में लगी वीणा और वहां रखी गीता को लेकर कुछ लोगों ने सवाल उठाए। अच्छी बात ये है कि समाज का बड़ा तबका ऐसी मानसिकता वाले लोगों के सवालों के साथ खड़ा नहीं हुआ। पर ऐसे में जबकि कुछ लोग डॉ. कलाम जैसी शख्सियत को भी जाति और धर्म के दायरे में कैद करने की

वह बौद्ध देश जहाँ राम राजा हैं और राष्ट्रीय ग्रंथ है रामायण !

भारत से बाहर अगर हिन्दू प्रतीकों और संस्कृति को देखना-समझना है, तो थाईलैंड से उपयुक्त राष्ट्र शायद ही कोई और हो सकता। दक्षिण पूर्व एशिया के इस देश में हिन्दू देवी-देवताओं और प्रतीकों को आप चप्पे-चप्पे पर देखते हैं। यूं थाईलैंड बौद्ध देश है, पर इधर राम भी अराध्य हैं। यहां की राजधानी बैंकाक से सटा है अयोध्या शहर। वहाँ के लोगों की मान्यता है कि यही थी श्रीराम की राजधानी। थाईलैंड के बौद्ध मंदिरो में आपको

‘सरकार की आलोचना के अन्धोत्साह में राष्ट्र की आलोचना पर उतर पड़ने की प्रवृत्ति ठीक नहीं’

समाचार माध्यमों को न तो किसी विचारधारा के प्रति अंधभक्त होना चाहिए और न ही अंध विरोधी। हालांकि यह भी सर्वमान्य तर्क है कि तटस्थता सिर्फ सिद्धांत ही है। निष्पक्ष रहना संभव नहीं है। हालांकि भारत में पत्रकारिता का एक सुदीर्घ सुनहरा इतिहास रहा है, जिसके अनेक पन्नों पर दर्ज है कि पत्रकारिता पक्षधरिता नहीं है। निष्पक्ष पत्रकारिता संभव है। कलम का जनता के पक्ष में चलना ही उसकी सार्थकता है। बहरहाल, यदि किसी

राष्ट्रगीत के सम्मान में मद्रास उच्च न्यायालय का स्वागतयोग्य निर्णय

भारतीय संविधान में ‘वंदेमातरम्’ को राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन’ के समकक्ष राष्ट्रगीत का सम्मान प्राप्त है। 24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा ने ‘वन्देमातरम्’ गीत को देश का राष्ट्रगीत घोषित करने का निर्णय लिया था। यह अलग बात है कि यह निर्णय आसानी से नहीं हुआ था। संविधान सभा में जब बहुमत की इच्छा की अनदेखी कर वंदेमातरम् को राष्ट्रगान के दर्जे से दरकिनार किया गया, तब डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने वंदेमातरम् की महत्ता

भारतीय दर्शन को समझने के लिए आवश्यक है संस्कृत का ज्ञान

देश के उच्चतम न्यायालय ने संतोष कुमार बनाम मानव संसाधन विकास मंत्रालय (याचिका सं. 299, 1989) वाद (संस्कृत सम्बन्धी) के निर्णय की शुरुआत में एक बहुत ही गहन व रोचक घटना का उदाहरण दिया। वह उदाहरण भारतीयता व संस्कृत के सम्बन्ध को समझने में सहायक है। केम्ब्रिज विश्वविद्यालय का एक प्रोफेसर अपने शान्त कक्ष में अपने अध्ययन में डूबा हुआ है: एक उत्तेजित अंग्रेज सिपाही उस अध्ययन कक्ष में

हिंदी के विश्वविद्यालयी पाठ्यक्रम में बदलाव की जरूरत

सन् 1990 ई. में हिंदी में औपचारिक नामांकन हुआ. बी.ए, एम.ए, एम.फिल, पीएच. डी. फिर अध्यापन। समय बदला, देश का मिजाज बदला, पर हिंदी के विश्वविद्यालयी पाठ्यक्रम का स्वर नहीं बदला। वही प्रलेस, जलेस-मार्का कार्यकर्ता-अध्यापक लोग, वही पात्रों के वर्ग-चरित्र की व्याख्याएँ, वही द्वन्द्व खोजने की वृत्ति बनी रही। बदलने के नाम पर यौनिकता, लैंगिकता, स्त्री-देह और जातिवाद पर शोध करने को बढ़ावा देने की वृत्ति बढ़ी।

आज लोगों की जो जीवन-शैली है, उसमें योग का महत्व और बढ़ जाता है !

योग न केवल शारीरिक स्वास्थ्य में काफ़ी मददगार है, बल्कि मानसिक शांति का भी बहुत शानदार ज़रिया है। आज जबकि अधिकाधिक लोग मानसिक रूप से अशांति के दौर में हैं, ज़िंदगी की आपाधापी में मानसिक शांति खो चुके हैं; ऐसे में योग और प्राणायाम इनसे निजात दिलाने का एक बेहतरीन साधन है। मन की एकाग्रता बहुत ज़रूरी है और योग के माध्यम से हम अपने मन को

योग : शारीरिक-मानसिक कष्टों को दूर कर नव ऊर्जा का संचार करने वाली भारतीय जीवन-पद्धति

योग एक प्राचीन भारतीय जीवन-पद्धति है, जिसकी मदद से शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का काम किया जाता है। योग के माध्यम से न सिर्फ शारीरिक बीमारियों को दूर किया जा सकता है, बल्कि मानसिक तकलीफों का भी निदान किया जा सकता है। योग शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाकर जीवन

योग को वैश्विक पहचान दिलाने वाले प्रधानमंत्री मोदी के जीवन में भी योग का विशेष स्थान है !

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर ही दुनिया के करीब 175 देश योग की राह पर चल पड़े हैं। दरअसल मोदी का विरोध करने वाले लोगों को लगता है कि योग का मतलब है, अलग-अलग तरह के फीजिकल पोश्चर बनाना है और इसी तरह का दुष्प्रचार वह अंतराष्ट्रीय योग दिवस को लेकर कर रह है। किन्तु, असल में योग का मतलब शरीर और मन को एक निश्चित और संतुलित क्रम में प्रस्थापित करना है। शरीर, दिमाग, आत्मा और

स्मृति-शेष : सच्चे अर्थों में भारत की ऋषि परंपरा के उत्तराधिकारी थे अनिल माधव दवे

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे, देश के उन चुनिंदा राजनेताओं में थे, जिनमें एक बौद्धिक गुरूत्वाकर्षण मौजूद था। उन्हें देखने, सुनने और सुनते रहने का मन होता था। पानी पर्यावरण, नदी और राष्ट्र के भविष्य से जुड़े सवालों पर उनमें गहरी अंर्तदृष्टि मौजूद थी। उनके साथ नदी महोत्सवों, विश्व हिंदी सम्मेलन-भोपाल, अंतरराष्ट्रीय विचार महाकुंभ-उज्जैनसहित कई आयोजनों में काम करने का मौका मिला। उनकी विलक्षणता