डॉ कलाम के जीवन से जुड़े वो किस्से जो कट्टरपंथियों की आँखें खोल देंगे !

डॉ. कलाम के जीवन में ऐसे ढेरों वृत्तांत भरे पड़े हैं जो शायद रूढ़िवादियों और कट्टरपंथियों की आंखें खोल सकें। उन लोगों के सवालों के जवाब दे सकें जो ये पूछते हैं कि डॉ. कलाम के हाथों में वीणा क्यों, डॉ. कलाम के हाथों में गीता क्यों। डॉ. कलाम को जानने वाले जानते हैं कि वीणा और गीता उन्हें बेहद पसंद थी। मुस्लिम होने के नाते कुरान उनके लिए धर्मग्रंथ थी तो जीवन के तमाम उतार-चढ़ाव के दौरान गीता उनका कर्मग्रंथ साबित हुई।

पिछले दिनों रामेश्वरम में भारत रत्न और हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की याद में बनाए गए स्मारक में डॉ. कलाम की प्रतिमा में लगी वीणा और वहां रखी गीता को लेकर कुछ लोगों ने सवाल उठाए। अच्छी बात ये है कि समाज का बड़ा तबका ऐसी मानसिकता वाले लोगों के सवालों के साथ खड़ा नहीं हुआ। पर ऐसे में जबकि कुछ लोग डॉ. कलाम जैसी शख्सियत को भी जाति और धर्म के दायरे में कैद करने की कोशिश कर रहे हैं, तब डॉ. कलाम के जीवन के कुछ ऐसे किस्से याद आते हैं जिन्हें जानना भी जरूरी है और समझना भी।

रामेश्वरम स्थित कलाम की प्रतिमा

बात तबकी है जब डॉ. कलाम स्कूली छात्र हुआ करते थे। बेहद गरीब पृष्ठभूमि में पले बढ़े डॉ. कलाम को मुस्लिम परिवार में जन्म लेने के बावजूद अजान और मंदिरों की घंटियों से बराबर लगाव रहा। मासूम कलाम दोनों के बीच कभी फर्क नहीं कर सके, पर एक दिन उन्हें झटका लगा। तब जब वे स्कूल गए। पांचवीं के छात्र कलाम इस्लामिक टोपी पहनते थे। स्कूल में उनके सबसे अच्छे दोस्त थे रामानंद शास्त्री। जो रामेश्वरम मंदिर के प्रमुख पुजारी लक्ष्मण शास्त्री के बेटे थे। लक्ष्मण शास्त्री की गिनती रामेश्वरम के विद्वानतम लोगों में होती थी। उनका काफी प्रभाव था। लोग उनका बेहद सम्मान करते थे। सिर्फ कलाम और रामानंद ही नहीं बल्कि लक्ष्मण शास्त्री और कलाम के पिता जैनुलाबदीन भी अच्छे दोस्त थे।

कलाम और रामानंद शास्त्री साथ बैठते, साथ घूमते, साथ ही खेलते और वापस भी साथ ही आते। उस दिन स्कूल में नए शिक्षक आए। वे बेहद सख्त दिख रहे थे। उनके हाथ में छड़ी थी। उन्होंने पहली पंक्ति में रामानंद शास्त्री के साथ जब मुस्लिम टोपी पहने लड़के को देखा तो भड़क उठे। उन्होंने कलाम को फटकारते हुए सबसे पीछे की सीट पर जाने को कहा। मासूम कलाम आंखों में आंसू लिए सबसे पीछे चले गए। जाते वक्त उन्होंने वेदना के आंसू अपने दोस्त रामानंद की आंखों में भी देखे।

स्कूल की छुट्टी हुई, दोनों दोस्त एक बार फिर साथ ही घर वापस निकले। पर खामोशी और पीड़ा के साथ। घर पहुंचने के कुछ देर बाद संदेश आया कि प्रमुख पुजारी लक्ष्मण शास्त्री ने उन्हें अपने घर पर बुलवाया है। ये भी पता चला कि नए अध्यापक भी वहीं मौजूद हैं। कलाम घबरा गए, उन्हें लगा कि अध्यापक ने शिकायत कर दी। अब स्कूल भी छूटेगा और दोस्त भी। डरते डरते कलाम लक्ष्मण शास्त्री जी के घर पहुंचे। वहां रामानंद भी मौजूद थे। लक्ष्मण शास्त्री ने रामानंद से पूरी घटना के बारे में पूछा। पूरा वाकया जानते ही वो बिफर पड़े। नए अध्यापक को डांट लगाई, साथ ही फरमान भी सुनाया कि या तो वे कलाम से माफी मांगें, या फिर स्कूल छोड़ दें।

उन्होंने ये भी कहा कि मासूम बच्चों के दिमाग में इस तरह का जहर घोलना ठीक नहीं है। हर बच्चा भगवान का रूप है। कलाम को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था। बहरहाल नए शिक्षक ने अपने व्यवहार पर खेद जताया और अगले ही दिन से कलाम और रामानंद एक बार फिर पहली पंक्ति में साथ बैठने लगे। बकौल कलाम, नए अध्यापक नौजवान थे और इस घटना से उनके अंदर बड़ा परिवर्तन नजर आया। अपने बदले हुए व्यवहार के चलते वे जल्द ही हर बच्चे के प्रिय हो गए।

डॉ एपीजे अब्दुल कलाम

डॉ.कलाम ने ऐसे ही एक और वाकए का जिक्र अपनी आत्मकथा में किया है। उनके विज्ञान के शिक्षक शिव सुब्रह्मण्यम अय्यर सनातनी ब्राह्मण थे। लोग उन्हें कट्टर मानते थे और उनकी पत्नी को घोर रूढ़िवादी। पर अय्यर, कलाम को बेहद स्नेह देते थे। वे कहते थे कि कलाम मैं तुम्हे उच्च शिक्षित व्यक्ति के तौर पर देखना चाहता हूं। वे कलाम से ढेर सारी बातें भी करते। एक दिन अय्यर ने कलाम को भोजन के लिए घर बुलाया। वे खुद घर की रसोई में भोजन करते थे।

जब उनकी पत्नी को पता चला कि उन्होंने एक मुस्लिम लड़के को घर पर भोजन के लिए बुलाया है तो वे नाराज हो उठीं। उनकी रसोई में एक मुस्लिम भोजन करे, ये उन्हें कतई गवारा नहीं था। पर अब क्या हो सकता था। अय्यर तो कलाम को दावत दे चुके थे। तय वक्त पर कलाम अय्यर के घर भोजन पर पहुंचे। तब अय्यर ने खुद उन्हें ना सिर्फ खाना परोसा, बल्कि पास ही में बैठकर भोजन किया। भोजन के बाद उस स्थान की सफाई भी की। अय्यर की पत्नी रसोई के दरवाजे के पीछे खड़ी ये सब कुछ देखती रहीं। कलाम के लिए ये थोड़े असहज पल थे। पर अय्यर थोड़े भी असहज नहीं थे।

भोजन के बाद कलाम जब जाने लगे तब अय्यर ने उन्हें अगले हफ्ते फिर रात के भोजन का न्यौता दिया। कलाम हिचकिचाए तो अय्यर ने कहा कि सब ठीक हो जाएगा। जब आप व्यवस्था बदलने का संकल्प लेते हैं तो ऐसी छोटी छोटी दिक्कतें आती रहती हैं। अगले हफ्ते जब कलाम अय्यर के घर रात के भोजन पर पहुंचे तो नजारा बदला हुआ था। अय्यर की पत्नी ने ना सिर्फ उन्हे पूरे स्नेह के साथ भोजन परोसा बल्कि पूरी आत्मीयता के साथ भोजन कराया। फिर कलाम अक्सर अय्यर के घर भोजन पर जाते रहे।

यूं तो डॉ. कलाम के जीवन में ऐसे ढेरों वृत्तांत भरे पड़े हैं जो शायद रूढ़िवादियों  और कट्टरवादियों की आंखें खोल सकें। उन लोगों के सवालों के जवाब दे सकें जो ये पूछते हैं कि डॉ. कलाम के हाथों में वीणा क्यों, डॉ. कलाम के हाथों में गीता क्यों। डॉ. कलाम को जानने वाले जानते हैं कि वीणा और गीता उन्हें बेहद पसंद थी। मुस्लिम होने के नाते कुरान उनके लिए धर्मग्रंथ थी तो जीवन के तमाम उतार-चढ़ाव के दौरान गीता उनका कर्मग्रंथ साबित हुई।

फिर ये डॉ. कलाम की शख्सियत ही थी कि उनके निधन के बाद हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब रामेश्वरम पहुंचे तब उन्होंने कलाम के बड़े भाई के पांव छूकर आशीर्वाद लिए। डॉ. कलाम जैसे व्यक्तित्व को धर्म और जाति की दीवारों में बांटने वालों को ये भी समझना होगा कि इसी भारत में रहीम और रसखान जैसे महान कवियों ने भी जन्म लिया है और ये इस देश की साझा विरासत का करिश्मा है। इसीलिए गुजारिश है कि कलाम को कलाम ही रहने दो, कोई और नाम ना दो।

(लेखक यूपी भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)