कुमार विश्वास की बजाय काम पर फोकस करे ‘आप’

आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी ताकत उसकी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़नेवाली पार्टी की छवि थी। डिमोनेटाइजेशन के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह से पूरे देश के लोगों को ये संदेश दिया कि वो कालेधन के खिलाफ इस मुहिम में मजबूती से खड़ी है, उसने आम आदमी पार्टी को इस मुद्दे पर भी कमजोर कर दिया। इसके अलावा आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से नोटबंदी का विरोध किया उसका भी जनता के बीच गलत संदेश गया।

एक के बाद एक हार के बाद दिल्ली की आम आदमी पार्टी अब आंतरिक कलह से जूझ रही है। दो ढाई साल पहले जिस पार्टी को दिल्ली की जनता ने प्रचंड बहुमत से दिल्ली की गद्दी सौंपी थी, वो इतने कम समय में ही इतने बड़े कलह का शिकार हो जाएगी, किसी ने सोचा भी नहीं था। पंजाब में हार, दिल्ली उपचुनाव में तीसरे नंबर की पार्टी और फिर दिल्ली नगर निगम में हार के बाद पार्टी के संस्थापकों में से एक कुमार विश्वास ने बगावत का बिगुल फूंक दिया है। कुमार विश्वास की पीड़ा है कि पार्टी में उनकी पूछ नहीं हो रही और पार्टी के एक विधायक ने उनको भारतीय जनता पार्टी का एजेंट कह दिया।

विधायक के इस आरोप के बाद भड़के कुमार को मनाने का दौर चल रहा है। पार्टी के नेता पहले उनको सार्वजनिक रूप से नसीहत भी देते हैं और फिर उनको मनाने उनके घर भी पहुंच जाते हैं। किसी का आंकलन है कि कुमार विश्वास अपनी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल पर दबाव बनाकर राज्यसभा की सीट पक्की करना चाहते हैं। दिल्ली में अगले साल जनवरी में तीन राज्यसभा की सीट खाली हो रही हैं। कुमार विश्वास को मनाने के लिए पार्टी के नेता क्यों परेशान हो रहे हैं, यह समझ से परे है। क्या कुमार का इतना बड़ा जनाधार है कि वो आम आदमी पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। कुमार के जनाधार का टेस्ट होना अभी शेष है।

साभार : गूगल

कुमार विश्वास को लेकर पार्टी में भले ही अलग अलग राय दिख रही हो, लेकिन आम आदमी पार्टी की समस्या कुछ अलग है। पार्टी के नेताओं के झगड़े के बीच राजनीतिक विश्लेषक भी इस समस्या पर गंभीरता से विचार किए बिना सतही तौर पर अंतर्कलह के कारणों का विश्लेषण कर रहे हैं। अरविंद केजरीवाल का बड़बोलापन, उनकी नकारात्मक राजनीति, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मर्यादाहीन शब्दों से संबोधित करने आदि को जनता से उनके दूर जाने की वजह बता रहे हैं। जबकि इसके मूल में वजह कुछ और है।

जब केजरीवाल ने अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को राजनीतिक पार्टी में बदलकर चुनावी राजनीति में आने का एलान किया था, तब उनके पास भ्रष्टाचार से लड़ने के जज्बे की पूंजी थी। जब उन्होंने राजनीतिक दल बनाया तो उनका कोई वैचारिक आधार नहीं था। वो भ्रष्टाचार विरोधी लहर पर सवार थे और लोगों को लग रहा था कि एक ऐसा नेता आया है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ सकता है।

उत्साह में उस वक्त कई लोगों ने केजरीवाल की तुलना ‘नायक’ फिल्म के हीरो अनिल कपूर के किरदार से करना शुरू कर दिया था। लेकिन कोई भी पार्टी बगैर वैचारिक आधार के लंबे समय तक राजनीति नहीं कर सकती है। केजरीवाल ने एक बार वैचारिक आधार के बारे में पूछे जाने पर सवाल का मजाक उड़ाते हुए कहा था कि वैचारिकता से पेट नहीं भरता है। उन्होंने तब हल्के में ये भी कहा था कि जहां जनता का हित हो रहा होगा, वहां वो लेफ्ट या राइट दोनों में से किसी विचारधारा से परहेज नहीं करेंगे।  

दरअसल अगर पूरी दुनिया पर नजर डालें तो एक मुद्दे की पार्टी बनकर कोई भी दल लंबे समय तक राजनीति में टिका नहीं रह सकता है; चाहे वो अमेरिका की प्रोहिबिशन पार्टी ही क्यों ना हो। जब वो पार्टी शुरू हुई थी, तो उसको जोरदार जनसमर्थन मिला था जो समय के साथ छीजता चला गया। यूरोप में कई पार्टियां पर्यावरण आदि जैसे एक मुद्दे को लेकर चलीं, लेकिन वो सफल नहीं हो पाईं।

साभार : गूगल

आम आदमी पार्टी के दो-ढाई साल के कार्यकाल पर अगर गंभीरता से विचार करें तो इस पार्टी ने दिल्ली की जनता को सब्सिडी का लॉलीपॉप देने के अलावा कोई बिग टिकट आइडिया पर काम नहीं किया। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भले ही शिक्षा के क्षेत्र में हाथ-पांव मारे लेकिन वो नाकाफी थे। आधारभूत ढांचा ठीक करने की दिशा में क्या हुआ। दिल्ली की सड़कें बेहाल हैं, बारिश के मौसम में सड़कों पर पानी जमा हो जाता है। एमसीडी के साथ दिल्ली सरकार का तालमेल कभी बन ही नहीं पाया। दिल्ली की जनता ने कई बार सड़कों पर कूड़े का अंबार देखा। इसी तरह से ट्रैफिक जाम को काबू में करने के लिए आड-ईवन का प्रयोग किया गया था, लेकिन उसकी सफलता का आंकलन आना बाकी है।

आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी ताकत उसकी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़नेवाली पार्टी की छवि थी। डिमोनेटाइजेशन के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह से पूरे देश के लोगों को ये संदेश दिया कि वो कालेधन के खिलाफ इस मुहिम में मजबूती से खड़ी है, उसने आम आदमी पार्टी को इस मुद्दे पर भी कमजोर कर दिया। इसके अलावा आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से नोटबंदी का विरोध किया उसका भी जनता के बीच गलत संदेश गया। अब आम आदमी पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़नेवाली पार्टी के तौर पर फिर से उभरने का उपक्रम करे।

इसके अलावा सस्ती बिजली और पानी देकर जनता को लंबे समय तक खुश नहीं रखा जा सकता है। पार्टी को दिल्ली की जनता के उन समस्याओं को दूर करने के लिए कमर कसना होगा जिससे जनता का हर रोज सामना होता है। और इन सबसे ऊपर उनको दिल्ली के अपने जनाधार को मजबूत करना होगा ना कि देश के अन्य राज्यों में जाकर चुनाव लड़कर अपनी महात्वाकांक्षा की पूर्ति के यत्न में लगना होगा। जब जब केजरीवाल दिल्ली के बाहर जाकर चुनाव लड़ने की कोशिश करते हैं, असफल तो होते ही हैं, दिल्ली के जनाधार में सेंध लगती है। आम आदमी पार्टी की समस्या कुमार विश्वास नहीं बल्कि पार्टी के ऊट-पटांग क्रियाकलाप हैं, उनको सुधारना होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)