ये बेसिर पैर का बयान देकर अखिलेश यादव ने अपनी अच्छी खासी जगहंसाई भी करवा ली है। राजनीतिक गलियारों से लेकर सोशल मीडिया में उनका जर्बदस्त उपहास किया जा रहा है। अखिलेश यादव अब लाख सफाई दें, लेकिन उनका बयान न केवल दुर्भाग्यपूर्ण और उनकी संकीर्ण मानसिकता का सूचक है बल्कि यह अपने आप में आपत्तिजनक भी है। ये बयान देश के वैज्ञानिकों का अपमान है।
कोरोना वैक्सीन को मंजूरी मिलने की राहत भरी खबर के बीच विपक्ष दल अपनी सतही राजनीति में जुट गए हैं। कोरोनावायरस जैसी घातक महामारी से बचाव के लिए नित नए प्रयासों में जुटे देश व दुनिया के वैज्ञानिकों को एक साल की कड़ी मेहनत के बाद वैक्सीन बनाने में सफलता मिल पाई है।
लेकिन इसपर जिस तरह की राजनीति हो रही, वह कोरोना से लड़ाई का सबसे दुखद पहलू है। कोरोना वैक्सीन के लिए प्रतीक्षारत राष्ट्र की उम्मीदों के बीच बीते दिनों उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम एवं समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने बेहद गैर-जिम्मेदाराना बयान दिया।
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उन्होंने सार्वजनिक रूप से बयान जारी करते हुए कहा कि वे कोरोना का टीका नहीं लगवाएंगे क्योंकि यह भाजपा की वैक्सीन है। वे यह टीकाकरण तभी करेंगे एवं करवाएंगे जब उनकी सरकार सत्ता में काबिज होगी और वे नागरिकों को मुफ्त वैक्सीन की सुविधा देंगे। अपने इस बेतुके बयान के पीछे उन्होंने यह कुतर्क भी पेश किया कि उन्हें बीजेपी की वैक्सीन पर विश्वास नहीं है, इसलिए वे यह वैक्सीन नहीं लगवाएंगे।
ऐसा बोलकर उन्होंने अपने मानसिक दिवालियेपन का पक्का प्रमाण तो दिया ही है, देश भर में मजाक बनकर भी रह गए हैं। यह कितनी अजीब विडंबना है कि साल भर कोरोना के खतरे के साये में जी रहे देश में अब इस महामारी के सक्रिय मामलों की संख्या घटी है, संक्रमण काबू में आया है, इस लड़ाई को जीतने की आस बंधी है और अब जबकि इसका वैक्सीन भी दूर की कौड़ी नहीं रह गया है, ऐसे में अखिलेश यादव जैसे नेता अपने ऊलजलूल बयान से सुर्खी बटोरने की नाकाम कोशिश करते नज़र आ रहे हैं।
आखिर क्यों वैक्सीन जैसी आवश्यक एवं जीवन रक्षक वस्तु में वे राजनीतिक संभावना तलाश रहे। यदि उन्हें वैक्सीन नहीं लगवाना है तो ना लगवाएं, इसमें प्रेस के समक्ष आकर बयानबाजी करने की क्या जरूरत आन पड़ी।
अव्वल तो वैक्सीन महज वैक्सीन होती है। इसे राजनीतिक चश्मे से देखने वाली आंखें किसी अवसरवादी की ही हो सकती हैं। अखिलेश यदि इसमें भी राजनीति खोज रहे हैं तो यह उनकी सतही सोच को पुरज़ोर ढंग से परिभाषित ही करता है।
ये बेसिर पैर का बयान देकर अखिलेश यादव ने अपनी अच्छी खासी जगहंसाई भी करवा ली है। राजनीतिक गलियारों से लेकर सोशल मीडिया में उनका जर्बदस्त उपहास किया जा रहा है। अखिलेश यादव अब लाख सफाई दें, लेकिन उनका बयान न केवल दुर्भाग्यपूर्ण और उनकी संकीर्ण मानसिकता का सूचक है बल्कि यह अपने आप में आपत्तिजनक भी है। ये बयान देश के वैज्ञानिकों का अपमान है।
इससे कम से कम यह तो साबित हो गया है कि अखिलेश यादव राजनीति से परे ना कुछ सोच सकते हैं ना कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने प्रतिक्रिया देते हुए अखिलेश के बयान को बहुत बचकाना करार दिया है।
हालांकि बाद में लगभग यू-टर्न लेते हुए अखिलेश ने गरीब लोगों के लिए वैक्सीन की तारीख तय किए जाने और मुफ्त वैक्सीन देने की मांग कर दी, जबकि एक दिन पहले वे इसे असुरक्षित बता रहे थे। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने अखिलेश यादव के वैक्सीन नहीं लगवाने के बयान पर अच्छा तंज कसते हुए टिप्पणी की कि – असल में वैक्सीन का विरोध करने वाले ये लोग छुपकर वैक्सीन लगवा लेंगे और लोगों को भ्रम में रखेंगे। वे राजनीतिक दृष्टि से ऐसा बोल रहे हैं। वैक्सीन देश का है, वैज्ञानिक देश के हैं और आत्मनिर्भर भारत के लिए इससे अच्छा उदाहरण और कुछ नहीं हो सकता।
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के वैक्सीन न लगवाने के बयान के बाद अब कांग्रेस के नेता भी बयानों की होड़ में आ गए हैं। पूर्व मंत्री शशि थरूर और जयराम रमेश ने पूरी प्रक्रिया पर सवाल तो उठा दिया लेकिन एक बार भी सरकार के त्वरित प्रयासों के तारीफ नहीं की। राशिद अल्वी तो अखिलेश के बयान को सही ठहराते नजर आए।
कुल मिलाकर कोरोना महामारी से लेकर उसकी वैक्सीन तक भारतीय राजनीति में विपक्षी दलों ने विरोध के लिए विरोध की जो राजनीति की है, वो शर्मनाक और निंदनीय है। देश सब बातें देख-समझ रहा है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी भी हैं।)