किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए भाजपा सरकारों की अनूठी पहल

किसानों को बाजार की मारक मार से बचाने के लिए अब भाजपा शासित राज्यों की सरकारें अनूठी पहल कर रही हैं। इसकी शुरूआत मध्‍य प्रदेश से हुई जहां सरकार ने 2017 के खरीफ सीजन से मुख्‍यमंत्री भावांतर भुगतान योजना शुरू की। इससे मंडी में भावों के उतार-चढ़ाव से किसानों को सुरक्षा प्रदान की जाती है। इसके तहत किसान को मंडी में उपज का दाम कम मिलने पर न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य से अंतर की राशि का सरकार द्वारा सीधे किसानों के खाते में भुगतान किया जाता है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि देश की खेती-किसानी की बदहाली पिछली सरकारों द्वारा लंबे समय तक कृषिगत आधारभूत ढांचा विशेषकर बिजली, सड़क, सिंचाई, बीज, उर्वरक, भंडारण, विपणन, प्रसंस्‍करण आदि की ओर ध्‍यान न दिए जाने का नतीजा है। भ्रष्‍टाचार में आकंठ डूबी और जाति-धर्म की राजनीति करने वाली सरकारों के पास इतनी फुर्सत ही नहीं थी कि वे दूरगामी कृषि सुधारों की ओर ध्‍यान देतीं। यही कारण है कि उदारीकरण के दौर में देश ने जो ऊंची विकास दर हासिल की उसका लाभ नीचे तक नहीं पहुंचा। इसीलिए इस दौर में ग्रामीण गरीबी, गांवों से पलायन, किसान आत्‍महत्‍या जैसी कुप्रवृत्‍तियों में तेजी आई।

पर, अब मोदी सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दो गुनी करने के लिए कृषिगत आधारभूत ढांचा बना रही है। इसके लिए कई योजनाएं शुरू की गईं हैं जैसे कि राष्‍ट्रीय कृषि बाजार, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, मृदा स्‍वास्‍थ्‍य कार्ड, यूरिया पर नीम का लेपन, जैविक खेती और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना आदि। हालांकि इन उपायों के बावजूद किसानों की माली हालत में अगर अपेक्षित सुधार नहीं आ रहा है, तो इसके लिए कुछ राज्‍यों की सरकारों का टाल-मटोल वाला रवैया जिम्‍मेदार है। यही कारण है कि चना, अरहर और तिलहन जैसी कई फसलों के दाम न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य से भी नीचे पहुंच गए हैं।

सांकेतिक चित्र

जिस उदारीकरण की नीतियों को भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के लिए वरदान माना गया वही अब किसानों को कंगाली के बाड़े में धकेल रही हैं। भ्रष्‍टाचार में डूबी कांग्रेसी सरकारों ने भूमंडलीकरण के दौर में कृषि व्‍यापार का उदारीकरण तो कर दिया, लेकिन भारतीय किसानों को वे सुविधाएं नहीं मिली कि वे विश्‍व बाजार में अपनी उपज बेच सकें।

दूसरी ओर विकसित देशों की सरकारें और एग्रीबिजनेस कंपनियां हर प्रकार के तिकड़म अपनाकर भारत के विशाल बाजार में अपनी पैठ बढ़ाती जा रही हैं। बंपर फसल के बावजूद किसानों को उपज की वाजिब कीमत न मिलने की एक बड़ी वजह सस्‍ता आयात भी है। भारत में खाद्य तेल और दालों का आयात तो लंबे अरसे से हो रहा है, लेकिन अब गेहूं, मक्‍का, बागवानी फसलों और गैर-बासमती चावल का भी आयात होने लगा है।

किसानों को बाजार की मारक मार से बचाने के लिए अब भाजपा शासित राज्यों की सरकारें अनूठी पहल कर रही हैं। इसकी शुरूआत मध्‍य प्रदेश से हुई जहां सरकार ने 2017 के खरीफ सीजन से मुख्‍यमंत्री भावांतर भुगतान योजना शुरू की। इससे मंडी में भावों के उतार-चढ़ाव से किसानों को सुरक्षा प्रदान की जा जाती है। इसके तहत किसान को मंडी में उपज का दाम कम मिलने पर न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य से अंतर की राशि का सरकार द्वारा सीधे किसानों के खाते में भुगतान किया जाता है।

पहले चरण में इस योजना में सोयाबीन, मूंगफली, तिल, रामतिल, मक्‍का, मूंग, उड़द और तुअर को शामिल किया गया है। अब इस योजना में अन्‍य फसलें भी शामिल की जाएंगी। इसी तरह की अनूठी पहल हरियाणा सरकार ने की है। भावांतर भरपाई योजना के तहत किसानों को सब्‍जियों की पैदावार के लिए एक सुरक्षित कीमत मुहैया कराई जाएगी। इससे किसानेां को उनके उत्‍पादों की निश्‍चित कीमत मिल जाएगी। मध्‍य प्रदेश और हरियाणा की सरकारों द्वारा शुरू की गई ये योजनाएं किसानों को उपज की वाजिब कीमत दिलाने में मील का पत्‍थर साबित हो रही हैं।

किसानों को सस्‍ते आयात की मार से बचाने और उपज की लाभकारी कीमत दिलाने हेतु केंद्र सरकार एक ओर तो आयात शुल्‍क बढ़ा रही है, तो दूसरी ओर परंपरागत मंडी व्‍यवस्‍था को इलेक्‍ट्रानिक नेशनल एग्रीकल्‍चर मार्केट (ई-नाम) में बदल रही है। सरकार ने चने और मसूर पर आयात शुल्‍क बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दिया है।

सरकार गेहूं पर आयात शुल्‍क की मौजूदा दर 20 प्रतिशत को 30 प्रतिशत करने पर विचार कर रही है। इससे आयातित उत्‍पाद महंगे हो जाएंगे। ई-नाम की दिशा में सबसे बड़ी बाधा इंटरनेट कनेक्‍टिविटी की है। जब यह बाधा दूर हो जाएगी तब देश में कृषि उपज का एकल बाजार बनेगा। जिन उपजों का समर्थन मूल्‍य घोषित नहीं किया जाता उनके दाम एक निश्‍चित सीमा से नीचे न गिरें, इसके लिए बाजार हस्‍तक्षेप योजना (एमआईएस) बनाई गई है, लेकिन भ्रष्‍टाचार और जातिवाद में डूबी सरकारों ने इस योजना को कभी लागू ही नहीं किया। अब मोदी सरकार एमआईएस योजना के जरिए आलू, प्‍याज, टमाटर उगाने वाले किसानों को राहत देने जा रही है, ताकि आलू-प्‍याज को सड़कों पर फेंकने की नौबत न आए।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)