तीन तलाक प्रकरण में दिखी मोदी सरकार की दृढ़ता और संवेदनशीलता !

सुप्रीम कोर्ट ने जब तीन तलाक पर सरकार से  अपने विचार प्रस्तुत करने को कहा, तो सरकार ने  अनेक मुस्लिम विद्वानों की सलाह ली। उन  इस्लामिक मुल्कों से भी जानकारी  प्राप्त की, जहाँ बहुत पहले ही तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया गया  था। इसके बाद ही सरकार ने  सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया कि वह एक बार में तीन तलाक को उचित नहीं मानती। जाहिर है कि न्यायपालिका और मुस्लिम महिलाओं के सकारात्मक रुख ने सरकार  का उत्साह बढ़ाया। अंततः सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इस संबन्ध में विधेयक बनाने को कहा, जिससे संसद इस विषय पर कानून बना सके। अब सरकार इस सम्बन्ध में कठोर क़ानून भी लाई है। तीन तलाक के इस पूरे प्रकरण में सरकार की दृढ़ता और संवेदनशीलता उभरकर सामने आई है।

कुछ वर्ष पहले तक यह कल्पना करना भी मुश्किल था कि मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक पर न्याय मिलेगा। वोट बैंक से प्रेरित कथित सेक्युलर सियासत ऐसा होने नहीं देती। इसके लिए शाहबानों प्रकरण तक पीछे लौटकर देखने की जरूरत भी नहीं है। तीन तलाक के मसले पर कांग्रेस, कम्युनिस्ट, राजद, सपा, तृणमूल, बसपा आदि सभी ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी इसे बाकायदा प्रमुख मुद्दा बनाया गया था। विपक्षी पार्टियों का आरोप था कि भाजपा मजहबी मामले में दखल दे रही है।

इतना ही नहीं, लोकसभा में विधेयक प्रस्तुत होने के ठीक पहले तक विपक्ष का नजरिया साफ नहीं था। शायद वह समीकरण के हिसाब से समर्थन या विरोध का आकलन कर रहे थे। गैर-भाजपा शासित राज्यों ने तो अभी तक अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है। जाहिर है, ये सभी अपने चुनावी लाभ के मद्देनजर विचार कर रहे हैं, जबकि भाजपा शासित राज्यों ने इसको पूरा समर्थन दिया है। संसद में विपक्ष के नेताओं ने जो समर्थन दिखया, वह भी मुस्लिम महिलाओं के रुख को देखने के बाद आये बदलाव का परिणाम था, जबकि भाजपा ने शुरू से चुनावी लाभ-हानि की जगह मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने को वरीयता दी। यह साहसिक सोच थी, जिसके कारण ही अब यह सुधार संभव होने जा रहा है।

सांकेतिक चित्र

सामाजिक या मजहबी मान्यताएं संवेदनशील होती हैं। फिर भी व्यापक और सकारात्मक विचार विमर्श से किसी समस्या का समाधान आसान हो जाता है। सरकार के ऐसे ही रुख से मुस्लिम महिलाओं को सौगात मिलने जा रही है। यह अच्छा है, आज मुस्लिम महिलाएं ही ओवैसी जैसे नेताओं को करारा जवाब दे रहीं हैं। कई जगह उनके पुतले तक फूंके गए। मुस्लिम महिलाएं सवाल कर रहीं है कि आज अधिकार की दुहाई देने वाले ओवैसी जैसे लोग उस समय कहाँ थे, जब एक बार के तीन तलाक की तलवार लटका करती थी। तब पीड़ित महिलाओं के प्रति ऐसे नेता हमदर्दी  दिखाने सामने नहीं आते थे।

इसमें सन्देह नहीं कि नरेंद्र मोदी सरकार के साहसिक फैसले से  तीन तलाक के मसले का  समाधान हो रहा है। ऐसे ही सती प्रथा और बाल  विवाह की सामाजिक कुप्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था। समय के साथ समाज के सभी वर्गों ने इसे सहज रूप में स्वीकार किया। अनेक इस्लामी मुल्कों ने  एक साथ तीन तलाक की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया।  यहां तक कि भारत से अलग हुए पाकिस्तान जैसे कट्टर मुल्क में भी एक साथ तीन तलाक पर प्रतिबंध है। बांग्लादेश ने भी ऐसा ही कानून लागू किया है। समय के साथ उन मुल्कों  में इस समस्या का समाधान हो गया। 

भारत इस मामले में  इस्लामी मुल्कों से भी पीछे रह गया। लेकिन अब इन बातों का कोई मतलब नहीं रहा। भारत की मुस्लिम महिलाओं को यह सौगात मिलने जा रही है। इससे इतना तो जाहिर है कि आज यदि अपने को सेकुलर घोषित करने वालों की सरकार होती तो यह सुधार असंभव था, क्योंकि फिर उन्हीं लोंगों की चलती जो शाहबानों प्रकरण में न्यायिक निर्णय से असहमत थे। वैसा ही नजारा इस बार भी दिखाई देता। इस बार भी पहल न्यायपालिका की ओर से हुई थी। कई मुस्लिम महिलाओं ने एक बार मे तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाने  की याचिका दायर की थी।

जाहिर है, प्रारंभिक चरण में दो पक्ष थे। एक सुप्रीम कोर्ट, जो याचिका पर विचार हेतु तैयार हुआ। दूसरे पक्ष के रूप में मुस्लिम महिलाएं थीं, जिन्होंने मजहबी ग्रन्थों  के आधार पर यह तर्क रखा था कि एक बार में तीन तलाक अनुचित है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में तो फोन ,चिट्ठी, सोशल मीडिया आदि पर भी एक बार में तीन तलाक होने लगे थे। इन तर्कों का कई मुस्लिम विद्वानों ने भी समर्थन किया।

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यह भी अच्छा संयोग  था कि इस समय केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार  है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से  अपने विचार प्रस्तुत करने को कहा। सरकार ने  अनेक मुस्लिम विद्वानों की सलाह ली। उन  इस्लामिक मुल्कों से भी जानकारी  प्राप्त की, जहाँ बहुत पहले ही तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया गया  था। इसके बाद ही सरकार ने  सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया कि वह एक बार में तीन तलाक को उचित नहीं मानती। जाहिर है कि न्यायपालिका और मुस्लिम महिलाओं के सकारात्मक रुख ने सरकार  का उत्साह बढ़ाया। अंततः सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इस संबन्ध में विधेयक बनाने को कहा, जिससे संसद इस विषय पर कानून बना सके। तीन तलाक के इस पूरे प्रकरण में सरकार की दृढ़ता और संवेदनशीलता उभरकर सामने आई है।

सरकार ने पहले ही साफ कर दिया था कि वह अपने कदम से पीछे नहीं हटेगी। क्योकि वह इसे लैंगिक न्याय, समानता और महिलाओं की गरिमा का मुद्दा मानती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सरकार द्वारा इसके लिए कठोर कानूनी प्रावधान किया गया है। एक बार में तीन तलाक को दण्डनीय अपराध माना जायेगा। इसके लिए तीन वर्ष कैद और जुर्माने का प्रावधान किया गया है। मौखिक, पत्र, फोन, ह्वाट्स एप, मेल या किसी अन्य माध्यम से एक बार में तीन तलाक गैरकानूनी और अमान्य होगा। पीड़ित को उचित गुजारा भत्ता हेतु कोर्ट में जाने का अधिकार होगा। वह अपने और अपने बच्चों के लिए संरक्षण मांग सकेगी।

विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर ने ठीक कहा कि इससे कुछ लोगों की दुकान बंद  होने जा रही है। जो लोग तीन वर्ष की सजा पर सवाल उठा रहे है, उन्हें देखना चाहिए कि ‘दहेज उत्पीड़न एक्ट-498(ए)’ में  तो सात वर्ष कैद की सजा का प्रावधान है। अकबर ने कहा कि यह मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में सुधार का समय है। सरकार के लिए यह  अच्छी बात है कि उसे मुस्लिम समुदाय की ओर से भी इस मसले  पर समर्थन मिल रहा है।

इसमें महिला और पुरुष दोनों ही शामिल हैं। यही लोग आगे बढ़कर विरोध करने वालों को जवाब दे रहे हैं। यही कारण है कि कांग्रेस जैसी पार्टी को भी अपना विचार बदलना पड़ा।। उसने एकबार में तीन तलाक रोकने वाले विधेयक का समर्थन किया।  उसे अब जाकर पीड़ित मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण का ध्यान आया है।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)