श्रमिकों के हित में है श्रम कानूनों में बदलाव, आर्थिक गतिविधियों में भी आएगी तेजी

आज हमारे सामने जो स्थिति है उसमें सबसे ज्यादा जरूरी है कि लोगों के रोजगार को सुरक्षित किया जाए तथा बेरोजगारी की स्थिति न बढ़ने दी जाए। इसके लिए निवेश को प्रोत्साहन देना ही होगा और श्रम कानूनों में ये बदलाव इसी उद्देश्य से किए गए हैं। अतः उम्मीद कर सकते हैं कि ये बदलाव देश की अर्थव्यवस्था, रोजगार और मजदूरों के हित तीनों दृष्टियों से लाभकारी सिद्ध होंगे।

कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन के 45 दिनों से अधिक हो गये हैं। इस अवधि में आम जन कोरोना वायरस से अच्छी तरह से परिचित हो चुके हैं तथा इससे बचने के लिये अब वे हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। चूँकि, इस वायरस का हाल-फिलहाल में खात्मा होता नहीं दिख रहा है, इसलिये, जरूरी है कि हम इसके साथ जीना सीखें अर्थात आर्थिक गतिविधियों को फिर से शुरू करें।

इन पहलुओं को दृष्टिगत करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों को कहा है कि वे अपने यहाँ आर्थिक गतिविधियों को शुरू करें तथा निवेश को आकर्षित करने के लिये कारोबार को ज्यादा से ज्यादा सुगम बनाने की कोशिश करें। विगत दिनों, प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक करते हुए कहा था कि वे कोरोना महामारी को एक अवसर के रूप में देखे और चीन से पलायन करने वाली कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिये आकर्षित करें।

प्रधानमंत्री की सलाह को मूर्त रूप देने के लिये उत्तर प्रदेश समेत 7 राज्यों ने उद्योगों को दोबारा पटरी पर लाने के लिए श्रम कानूनों में अनेक महत्वपूर्ण बदलाव किये हैं। कहा जा रहा है कि जल्द ही बिहार समेत कुछ और राज्य श्रम कानूनों में बदलाव कर सकते हैं। गौरतलब है कि श्रम कानूनों में बदलाव करने की शुरुआत 5 मई को मध्य प्रदेश ने सबसे पहले की थी। तदुपरांत, 7 मई को उत्तर प्रदेश और गुजरात ने श्रम कानूनों में बदलाव किया। फिर, महाराष्ट्र, ओडिशा और गोवा ने भी श्रम कानूनों में बदलाव किया।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (साभार : Zee News)

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की बात करें तो योगी सरकार ने एक अध्यादेश के जरिये श्रम कानूनों में बदलाव किया है। इसके तहत अर्थव्यवस्था और निवेश को पुनर्जीवित करने के लिए उद्योगों को श्रम कानूनों से 3  सालों की छूट दी गई है। उत्तर प्रदेश में 40 से ज्यादा श्रम कानून हैं। योगी सरकार ने 8 श्रम कानूनों को छोड़कर अन्य श्रम कानूनों में संशोधन किया है।

1976 का बंधुआ मजदूर अधिनियम; 1923 का कर्मचारी मुआवजा अधिनियम; बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स एक्ट 1996; वर्ष 1966 का अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम; महिलाओं एवं बच्चों से संबंधित कानून मसलन, मातृत्व अधिनियम, समान पारिश्रमिक अधिनियम, बाल श्रम अधिनियम आदि; मजदूरी भुगतान अधिनियम 1936 की धारा 5, जिसके अंतर्गत हर माह 15,000 रुपये से कम आय वाले व्यक्ति के वेतन में कटौती नहीं करने के प्रावधान है, इन कानूनों में कोई संशोधन नहीं किया गया है।

जबकि औद्योगिक विवादों का निपटारा, व्यावसायिक सुरक्षा, श्रमिकों के स्वास्थ्य व काम करने की स्थिति से संबंधित कानून, अनुबंध श्रमिकों व प्रवासी मजदूरों से संबंधित कानून आदि में संशोधन किया गया है। उल्लेखनीय है कि श्रम कानून में किये गये संशोधन नये और मौजूदा दोनों तरह के कारोबार एवं उद्योगों के लिये लागू होंगे। 

विपक्ष का आरोप है कि इन कानूनों में संशोधन मजदूरों के हितों को प्रभावित करेगा। लेकिन देखा जाये तो नये प्रावधानों से मजदूरों एवं कामगारों को कोई नुकसान होता नजर नहीं आता। नये नियमों के तहत मजदूरों एवं कामगारों को घंटे के हिसाब से मजदूरी दी जायेगी। अगर वे 12 घंटे काम करेंगे तो उन्हें 12 घंटे की मजदूरी दी जायेगी। दरअसल जब ऐसा कोई प्रावधान नहीं था, तब भी आवश्यकता होने पर श्रमिकों से अतिरिक्त कार्य लिया ही जाता था। अब इस प्रावधान से उनके कार्य का उचित मूल्य निर्धारित होगा। वे जितना कार्य करेंगे, उसके अनुरूप उन्हें वेतन मिलेगा।

सांकेतिक चित्र (साभार : power2sme.com)

श्रम कानूनों के नये प्रावधानों के तहत ट्रेड यूनियनों की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है। ट्रेड यूनियन का एक लंबा इतिहास रहा है, लेकिन बदले परिवेश में यूनियन, मजदूरों व् कामगारों के हित में काम करने की जगह अपने लाभ के लिये काम करते देखे जा रहे हैं। तिसपर इनकी वजह से निवेशकों में निवेश को लेकर एक असहजता और अरुचि का भाव भी रहता है। वे ट्रेड यूनियन को एक बाधा के रूप में देखते रहे हैं, अतः इसकी अनिवार्यता समाप्त होने से निवेशकों को राहत मिलने और उनमें भरोसा पैदा होने की उम्मीद है।    

नये प्रावधानों के तहत उद्योगों के प्रबंधन मजदूरों एवं कामगारों से आगामी 3 महीनों तक अपनी सुविधानुसार शिफ्ट में काम करा सकते हैं। इन बदलावों की वजह से श्रमिक संगठन आशंका जता रहे हैं कि मजदूरों एवं कामगारों के शोषण की घटनाएँ बढ़ेंगी। लेकिन ये केवल आशंकाएं ही हैं, क्योंकि शिफ्ट कोई भी हो, काम तो मजदूरों को तय समय तक ही करना होगा और उसका उन्हें निर्धारित वेतन मिलना ही है।  

अतः कुल मिलाकर भले ही श्रम संगठन कह रहे हैं कि इन बदलावों से मजदूरों व कामगारों के हित प्रभावित होंगे, लेकिन सच इससे इतर है। नये प्रावधानों के अनुसार श्रमिक जितने घंटे काम करेंगे उतनी उन्हें मजदूरी दी जायेगी। पूरी दुनिया आज एक मुश्किल दौर से गुजर रही है और हमें मिलकर मौजूदा मुश्किलों का सामना करना है।  

उत्तर प्रदेश सरकार ने 3 सालों के लिए उद्योगों को न केवल श्रम कानूनों में छूट दी है, बल्कि उनके पंजीकरण और लाइसेंसिंग प्रक्रिया को भी सरल और ऑनलाइन किया गया है। इसी तर्ज पर अन्य राज्य भी श्रम कानूनों में बदलाव करने जा रहे हैं। अभी नये उद्योगों को श्रम कानूनों की विविध धाराओं के तहत पंजीकरण कराने और लाइसेंस प्राप्त करने में 30 दिनों का समय लगता है, लेकिन नये प्रावधानों को अमलीजामा पहनाने के बाद यह प्रक्रिया 1 दिन में पूरी कर ली जायेगी। 

कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में श्रम कानूनों में बदलाव मजदूरों व कामगारों के हित में किया गया है। नये प्रावधानों से आर्थिक गतिविधियों और निवेश में तेजी आ सकती है। श्रम कानूनों में बदलाव से सबसे बड़ा फ़ायदा प्रवासी मजदूरों एवं कामगारों को होगा, क्योंकि घर लौटने के बाद उन्हें रोजगार की सबसे ज्यादा जरूरत होगी।

आज हमारे सामने जो स्थिति है उसमें सबसे ज्यादा जरूरी है कि लोगों के रोजगार को सुरक्षित किया जाए तथा बेरोजगारी की स्थिति न बढ़ने दी जाए। इसके लिए निवेश को प्रोत्साहन देना ही होगा और श्रम कानूनों में ये बदलाव इसी उद्देश्य से किए गए हैं। अतः उम्मीद कर सकते हैं कि ये बदलाव देश की अर्थव्यवस्था, रोजगार और मजदूरों के हित तीनों दृष्टियों से लाभकारी सिद्ध होंगे।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)