आर्थिक पैकेज : आम आदमी और अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने की पहल

प्रवासी मजदूरों और शहरी गरीबों को किफायती किराये पर रहने के लिये घर मिले, इसके लिए सरकार अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कंप्लेक्स (एआरएचसी) योजना शुरू करने वाली है। इस क्रम में सरकारी कोष से शहरों में चल रही आवासीय योजनाओं को एआरएचसी में तब्दील किया जायेगा। इस योजना को मूर्त रूप देने के लिये औद्योगिक इकाइयों एवं अन्य संस्थानों को अपने निजी जमीन पर एआरएचसी का विकास करने और उनका परिचालन करने की अनुमति दी जाएगी।

कोरोना महामारी से उत्पन्न संकट से निपटने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा 12 मई को की जिसके बाद वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण लगातार दो दिन से इस पैकेज के प्रावधानों और आवंटनों की जानकारी दे रही है।

13 मई को वित्तमंत्री ने पैकेज के छह लाख करोड़ रूपये के आवंटन के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि इसमें से 3 लाख करोड़ रूपये सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को दिये जायेंगे, क्योंकि यह क्षेत्र पूर्णबंदी की वजह से ठप्प हो चुका है।इस क्षेत्र में देशभर में करीब 6.3 करोड़ इकाईयां काम कर रही हैं और करोड़ों लोगों को रोजगार मिला हुआ है। वित्तवर्ष 2016-17 में नॉमिनल जीडीपी में एमएसएमई का योगदान 30 प्रतिशत का था। इस क्षेत्र का इस अवधि में विनिर्मित उत्पादों में भी 45 प्रतिशत का योगदान था।

इसके बाद 14 मई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पैकेज की दूसरी क़िस्त के तौर पर किफायती आवास, शहरी गरीबों, कम किराये वाले आवास एवं कृषि क्षेत्र को दी जाने सुविधाओं एवं राहतों के बारे में जाकारी दी गयी। 

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण (साभार : IndiaTV)

आवासीय क्षेत्र एवं कम आय वाले मध्यम वर्ग को राहत देने के लिये सरकार 70,000 करोड़ रूपये की आर्थिक सहायता देगी, जिसके लिये क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम (सीएलएसएस) की अवधि को बढ़ाया जायेगा। यह योजना मई 2017 में लागू की गई थी और यह 31 मार्च 2020 को समाप्त हो गई थी। अब इस योजना को मार्च 2021 तक के लिये बढ़ा दिया गया है।

इससे मध्यम वर्ग, जिनकी सालाना आमदनी 6 से 18 लाख रूपये के बीच है, को लाभ मिलेगा। अब  तक इस योजना का लाभ 3.3 लाख परिवारों को फायदा मिल चुका है। योजना की अवधि को 1 साल बढ़ाने से लगभग 2.5 लाख नए परिवारों को इससे फ़ायदा मिलने की संभावना है। आवासीय निर्माण कार्य में तेजी आने से स्टील और सीमेंट जैसे उत्पादों की मांगों में वृद्धि, परिवहन क्षेत्र आदि को लाभ और बड़ी संख्या में इन क्षेत्रों से जुड़े लोगों को रोजगार मिलने की भी संभावना है। 

प्रवासी मजदूरों और शहरी गरीबों को किफायती किराये पर रहने के लिये घर मिले, इसके लिए सरकार अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कंप्लेक्स (एआरएचसी) योजना शुरू करने वाली है। इस क्रम में सरकारी कोष से शहरों में चल रही आवासीय योजनाओं को एआरएचसी में तब्दील किया जायेगा। इस योजना को मूर्त रूप देने के लिये औद्योगिक इकाइयों एवं अन्य संस्थानों को अपने निजी जमीन पर एआरएचसी का विकास करने और उनका परिचालन करने की अनुमति दी जाएगी।

राज्य सरकार की एजेंसियों और केंद्र सरकार के संगठनों को भी एआरएचसी का विकास करने और उनका संचालन करने की अनुमति दी जाएगी। साथ ही, निजी परिसर में निर्माण पर मैन्युफैक्चरिंग इकाईयों को कई सुविधाएँ दी जायेगी। अतिरिक्त मकानों का निर्माण करने के लिए खाली सरकारी जमीन को औद्योगिक इकाइयों एवं अन्य संस्थानों को उपलब्ध कराया जाएगा। इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिये पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल को अपनाया जाएगा।

देश की 70 प्रतिशत आबादी और 43 प्रतिशत रोजगार कृषि क्षेत्र में लोगों को मिला हुआ है।  इसलिये, इस क्षेत्र को महत्व दिया जाना जरुरी है। आत्मनिर्भर भारत अभियान पैकेज की मदद से 5.5 करोड़ किसानों को फायदा पहुँचाने की कोशिश की गई है। इसके तहत 3 करोड़ किसानों के लिए 4 लाख 22 हजार करोड़ रूपये का कृषि ऋण पहले ही दिया जा चुका है। पच्चीस लाख नये किसान क्रेडिट कार्डों की भी मंजूरी दी गई है, जिनकी ऋण सीमा 25 हजार करोड़ रूपये की होगी।

कोऑपरेटिव बैंक, ग्रामीण एवं क्षेत्रीय बैंक को मार्च 2020 में नाबार्ड 29 हजार 500 करोड़ रूपये किसानों को ऋण देने के लिये दे चुकी है। ग्रामीण क्षेत्र में आधारभूत ढांचे के विकास के लिए 4,200 करोड़ रूपये रूरल इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड के माध्यम से राज्यों को मार्च में उपलब्ध कराया गया था, ताकि राज्यों में आधारभूत ढांचे को मजबूत बनाया जा सके। किसानों को बैंक ऋण पर ब्याज के मामले में 3 महीनों का मोराटोरियम दिया गया है अर्थात उनके ब्याज को 3 महीनों तक के लिये टाल दिया गया है।

कृषि के क्षेत्र को मजबूत करने के लिये मार्च और अप्रैल महीने में 63 लाख ऋण मंजूर किये गये हैं, जो राशि में 86 हजार 600 करोड़ रुपए है। फसल की खरीद के लिए 6,700 करोड़ रुपए की कार्यशील पूंजी भी राज्यों को उपलब्ध कराई गई है। ढाई करोड़ किसानों को रियायती दर पर 2 लाख करोड़ रुपए का ऋण देने का भी प्रस्ताव है, जिसके लिये बैंक विशेष अभियान चलायेगा।

इसका लाभ मछुआरों और पशुपालकों को भी दिया जायेगा। नाबार्ड छोटे और सीमांत किसानों को लाभ देने के लिए 30 हजार करोड़ रुपए की अतिरिक्त सुविधा देगी, जिसका फायदा 3 करोड़ किसानों को मिलेगा। किसानों को आर्थिक मोर्चे पर राहत देने के लिये पीएम किसान योजना के तहत हर किसान के खाते में 6 हजार रूपये डाल दिये गये हैं। 

प्रवासी मजदूरों को बिना कार्ड के 2 महीने तक 5 किलो प्रति व्यक्ति गेहूं या चावल और एक किलो चना प्रति परिवार मुफ्त दिया जायेगा। इसपर करीब 3500 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है, जिसका वहन केंद्र सरकार करेगी। इससे करीब 8 करोड़ प्रवासियों को फायदा होगा। रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए और आदिवासियों की बेहतरी के लिए कैंपा फंड के तहत 6 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इससे पौधा रोपण एवं हरियाली बढ़ाने के लिये जरुरी कार्य किया जायेगा।

रेहड़ी, पटरी, फेरीवालों के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत 10,000 रूपये तक का ऋण दिया जायेगा। इससे पूर्णबंदी के बाद उन्हें अपना कारोबार शुरू करने में आसानी होगी। इसके अलावा, लगभग 50 लाख फेरीवालों को 5 हजार करोड़ रुपए की ऋण सहायता देने का प्रस्ताव है। मोबाइल से भुगतान करने वाले फेरीवालों को प्रोत्साहन के तौर अतिरिक्त ऋण दिया जायेगा। 

मुद्रा योजना के शिशु संवर्ग में 1500 करोड़ रुपए की ब्याज राहत दी जाएगी। इसके तहत एक लाख 62 हजार करोड़ रूपये के ऋण जरुरतमंदों को वितरित किये जा चुके हैं। देश के 22 करोड़ से ज्यादा गरीबों का स्वास्थ्य बीमा भी कराया गया है।

केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को प्रवासी मजदूरों को खाना और भोजन मुहैया कराने के लिए स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फंड का इस्तेमाल करने की छूट दी है। इस कोष के लिये केंद्र सरकार ने 11002 करोड़ रुपए दिए हैं। गुजरात के तर्ज पर देश में स्वयं सहायता समूह के लिए पैसा पोर्टल शुरू किया जायेगा, जिससे उन्हें बैंक ऋण लेने और अपना कारोबार शुरू करने में आसानी होगी।

दो महीने के अंदर 72 हजार नये समूह बनाये जा चुके हैं। मनरेगा के तहत 14.6 करोड़ व्यक्ति दिवस कार्य 13 मई तक सृजित किये जा चुके हैं और मजदूरों और कामगारों को 10 हजार करोड़ रुपए मजदूरी के रूप में दिये गये हैं। 1.87 लाख ग्राम पंचायतों में 2.33 करोड़ लोगों को काम दिया गया है।

वर्ष 2019 के मई महीने की तुलना में इस साल 40 से 50 प्रतिशत मजदूरों एवं कामगारों की संख्या में इजाफा हुआ है। इन्हें आर्थिक रूप से ज्यादा मदद मिले, इसके लिये मनरेगा के तहत मजदूरी को 182 रुपए से बढ़ाकर 202 रुपए कर दिया गया है। 

कहा जा सकता है कि सरकार ने अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ आवासीय क्षेत्र को राहत देने के लिये कई कदम उठाये हैं, लेकिन अभी भी इस क्षेत्र के लिये बहुत काम करने की जरुरत है। इस क्षेत्र में मांग की समस्या अभी भी बरक़रार है। मांग में वृद्धि होने पर ही रोजगार सृजन में तेजी आयेगी, लेकिन मांग में तभी बढ़ोत्तरी होगी जब लोगों के पास पैसे होंगे। इसके लिये, अर्थवयवस्था के सभी मानकों को मजबूत करने की दरकार है जिसके लिए सरकार प्रयास कर रही है। 

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)