सुधार की राह पर आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था

अर्थव्यवस्था में सुधार आने की वजह से लाखों की संख्या में नये खुदरा निवेशक हाल ही में शेयर बाजार से जुड़े हैं। बीएसई  शेयर सूचकांक 60,000 अंकों के स्तर को पार कर चुका है और निफ्टी शेयर सूचकांक भी 17,500 अंकों के स्तर को पार कर चुका है। बीएसई शेयर सूचकांक में 5,000 अंकों की बढ़त केवल 28 दिनों के कारोबारी सत्र में देखी गई है। तेरह अगस्त को बीएसई शेयर सूचकांक ने 55,000 के स्तर को पार किया था।

कोरोना महामारी के बावजूद राजकोषीय घाटे में सुधार आ रहा है। चालू वित्त वर्ष में सरकार का लक्ष्य राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.8 प्रतिशत रखने का है, जबकि पिछले वित्त वर्ष में यह जीडीपी का 9.5 प्रतिशत रहा था। राजकोषीय घाटे में सुधार होने का कारण चालू वित्त वर्ष में ज्यादा राजस्व का संग्रहित होना है। सरकार चालू वित्त वर्ष में बजट अनुमान का 37 प्रतिशत राजस्व संग्रहित कर चुकी है।

अर्थव्यवस्था में सुधार आने की वजह से लाखों की संख्या में नये खुदरा निवेशक हाल ही में शेयर बाजार से जुड़े हैं। बीएसई  शेयर सूचकांक 60,000 अंकों के स्तर को पार कर चुका है और निफ्टी शेयर सूचकांक भी 17,500 अंकों के स्तर को पार कर चुका है। बीएसई शेयर सूचकांक में 5,000 अंकों की बढ़त केवल 28 दिनों के कारोबारी सत्र में देखी गई है। तेरह अगस्त को बीएसई शेयर सूचकांक ने 55,000 के स्तर को पार किया था।

साभार : JagranJosh

मार्च, 2020 के स्तर से बीएसई शेयर सूचकांक में लगभग 2.3 गुना का उछाल आ चुका है। वैसे तो शेयर सूचकांकों में उछाल आने के अनेक कारण हैं, लेकिन खुदरा निवेशकों की शेयर बाजार में बढ़ती भागीदारी एक महत्वपूर्ण कारण है। अन्य कारणों में वैश्विक निवेशकों की लगातार लिवाली, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा लगातार नरम मौद्रिक नीति को बनाये रखना,  फेडरल रिजर्व बैंक के द्वारा भी ब्याज दरों में बदलाव नहीं करना आदि महत्वपूर्ण हैं।

प्रतिभूति लेनदेन कर (एसटीटी) संग्रह सितंबर महीने में पूरे साल के लिए निर्धारित लक्ष्य से अधिक रहने की संभावना है, जिसका करण शेयर बाजार में खुदरा निवेशकों की भागीदारी का बढ़ना है। गौरतलब है कि खुदरा निवेशक उन्हें माना जाता है, जिनकी शेयरधारिता मूल्य 2 लाख रुपये तक की होती है। सोलह सितंबर को एसटीटी संग्रह 12,000 करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जबकि बजट में लक्ष्य 12,500 करोड़ रुपये के संग्रह का था। इस साल एसटीटी कर संग्रह में पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

पिछले वित्त वर्ष 2020-21 की समान अवधि में 8,000 करोड़ रुपये का संग्रह हुआ था, वहीं, वित्त वर्ष 2019-20 की समान अवधि में एसटीटी कर संग्रह 6,000 करोड़ रुपये हुआ था। एसटीटी एक प्रत्यक्ष कर है, जो किसी स्टॉक एक्सचेंज के जरिये किये जाने कर योग्य प्रतिभूतियों के लेनदेन के मूल्य पर देय होता है। यह प्रतिभूतियों के लेनदेन के कुल कारोबार का 0.1 प्रतिशत वसूल किया जाता है।

वैसे, लगभग सभी प्रकार के करों के संग्रह में कोरोना महामारी के बावजूद हाल के महीनों में जबर्दस्त उछाल आया है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह में उल्लेखनीय वृद्धि होने की वजह से केंद्र सरकार ने प्रत्यक्ष कर के छमाही लक्ष्य को पहले ही प्राप्त कर लिया है। जीएसटी संग्रह औसतन हर महीने 1.15 लाख करोड़ रुपए हो रहा है।

चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में अग्रिम कर संग्रह में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक वृद्धि हुई है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार 1 जुलाई से 22 सितंबर तक के दौरान अग्रिम कर संग्रह बढ़कर 1.72 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो पिछले साल की समान अवधि में 1.13 लाख करोड़ रुपये के अग्रिम कर की तुलना में 51.2 प्रतिशत अधिक है। अप्रैल से सितंबर महीने के बीच अग्रिम कर संग्रह 2.52 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल की समान अवधि के 1.62 लाख करोड़ रुपये की तुलना में 56 प्रतिशत अधिक है।

साभार : The Financial Express

चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में कुल अग्रिम कर में निगम कर की हिस्सेदारी 1.96 लाख करोड़ रुपये और व्यक्तिगत आयकर की हिस्सेदारी 56,349 करोड़ रुपये रही है। वित्त मंत्रालय के अनुसार कर संग्रह में अभी और भी तेजी आने का अनुमान है, क्योंकि अर्थव्यवस्था में  सुधार की रफ़्तार तेज हो रही है।

चालू वित्त वर्ष में अभी तक कर संग्रह वित्त वर्ष 2019-20 के 2.21 लाख करोड़ रुपये के स्तर की तुलना में 14.62 प्रतिशत अधिक है। गौरतलब है कि अग्रिम कर का भुगतान साल के अंत में एक बार करने की बजाय कुल 4 किस्तों में किया जाता है। अग्रिम कर की पहली किस्त का भुगतान 15 जून तक किया जाता है, दूसरी किस्त का भुगतान 15 सितंबर तक, तीसरी क़िस्त का भुगतान 15 दिसंबर तक और अंतिम क़िस्त का भुगतान 15 मार्च तक किया जाता है।

शुद्ध धन वापसी (रिफंड) करने के बाद प्रत्यक्ष कर संग्रह 22 सितंबर को बढ़कर 5.7 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो पिछले साल की समान अवधि में 3.27 लाख करोड़ रुपये के कर संग्रह की तुलना में 74.4 प्रतिशत अधिक है। रिफंड के बाद निगम कर 3.02 लाख करोड़ रुपये, जबकि एसटीटी और व्यक्तिगत आयकर 2.67 लाख करोड़ रुपये रहा।

पिछले साल की तुलना में सकल कर संग्रह 47 प्रतिशत से बढ़कर 6.45 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जिसमें 3.58 लाख करोड़ रुपये निगम कर है, वहीं, एसटीटी और व्यक्तिगत आयकर 2.86 लाख करोड़ रुपये है। चालू वित्त वर्ष में कोरोना महामारी के पहले की तुलना में केंद्र सरकार के सकल कर संग्रह में 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

इस वर्ष अब तक हुई प्रत्यक्ष कर वसूली चालू वित्त वर्ष के लिए बजट में अनुमानित 11.08 लाख करोड़ रुपये के प्रत्यक्ष कर राजस्व की लगभग आधी है। इसतरह, चालू वित्त वर्ष में कर संग्रह कोरोना महामारी से पूर्व के वित्त वर्ष 2019-20 की समान अवधि के मुकाबले 28 प्रतिशत अधिक है। वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान प्रत्यक्ष कर संग्रह 9.47 लाख करोड़ रुपये रहा था, जो वित्त वर्ष 2019-20 के मुकाबले 9.7 प्रतिशत कम था।

कर संग्रह में बढ़ोतरी के अनेक कारण हैं, जैसे, उच्च एसटीटी संग्रह आईटी और फार्मा कंपनियों के शेयरों में उछाल, एफआईआई के साथ साथ घरेलू निवेशकों द्वारा खुलकर निवेश करना, बाजार में नकदी की तरलता का बना रहना, ऋण ब्याज दरों का कम होना आदि।

अग्रिम कर जमा करने की जो रफ़्तार है, उससे पता चलता है कि राजस्व संग्रह में अभी मजबूती बनी रहेगी। राजस्व संग्रह ज्यादा होने से सरकार पूँजीगत व्यय को बढ़ा सकती है, ताकि अर्थव्यवस्था में और भी मजबूती आये। बहरहाल, अर्थव्यवस्था में सुधार आने की आशा में लोग बाजार में निवेश कर रहे हैं। जीएसटी के नियमों को सरल एवं लचीला बनाने से कर चोरी में कमी आ रही है।

सरकार ने बैड बैंक को जल्द से जल्द शुरू करने के प्रयासों से ग़ैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) की वसूली की आस बढी है, दूरसंचार उद्योग के लिए राहत पैकेज की घोषणा करने और वाहन क्षेत्र के लिए उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन योजनाओं को लागू करने से बाजार पर सकारात्मक असर पड़ा है। ऐसे में अगर कोरोना महामारी की तीसरी लहर नहीं आती है तो वित्त वर्ष 2022-23 तक अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के नकारात्मक प्रभावों से उबर सकती है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)