ये आंकड़े बताते हैं कि कोरोना संकट के बावजूद मजबूत स्थिति में है भारतीय अर्थव्यवस्था

कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा अभी टला नहीं है। इसलिए, इससे  बचाव के उपाय देशभर में किए जा रहे हैं। टीकाकरण की रफ्तार में तेजी आई है। स्वास्थ्य अवसंरचना को मजबूत करने के भी प्रयास किए जा रहे हैं। इन्हीं सबके बीच सरकार द्वारा उठाये गये सुधारात्मक कदमों से आर्थिक गतिविधियों में तेजी दिख रही है जिसके आगामी महीनों में और भी बेहतर होने की उम्मीद है।

कोरोना महामारी की दूसरी लहर से प्रभावित आमजन और कारोबारियों को राहत देने के लिये सरकार ने अनेक उपाय किये हैं, जिसके तहत कारोबारियों को ऋण देने की व्यवस्था, बाजार में तरलता बढ़ाने के उपाय, टीकाकरण की प्रक्रिया में तेजी लाने के प्रयास आदि किये गये हैं, जिससे अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटती नजर आ रही है।

केंद्र सरकार ने कोरोना महामारी की तीसरी लहर से निपटने के लिये हाल ही में 23,123 करोड़ रुपए के पैकेज को जारी करने की मंजूरी दी है, जिसके तहत केंद्र सरकार 15,000 करोड़ रुपए देगी, जबकि राज्य सरकारें 8,123 करोड़ रुपए का योगदान करेंगी। 

चरणबद्ध तरीके से तालाबंदी खोलने की वजह से देश में आर्थिक गतिविधियां बढ़ने लगी हैं। जून महीने में ईवे बिल की कुल मात्रा में मासिक आधार पर 37.1 प्रतिशत का उछाल आया, जबकि सालाना आधार पर इसमें 26 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इस आधार पर कयास लगाये जा रहे हैं कि आने वाले महीनों में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह में बढ़ोतरी हो सकती है।

साभार : DNA India

वित्त मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वित्त वर्ष 2021 के पहले दो महीनों में केंद्र सरकार का कर संग्रह संतोषजनक रहा है। केंद्र सरकार सड़क और रेल की मरम्मत और उसके विस्तार के लिए खर्च में बढ़ोतरी कर रही है, ताकि आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ सके।  

गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) एक साल पहले की तुलना में इस समय नकदी के मोर्चे पर बेहतर स्थिति में हैं। इसकी वजह से एनबीएफसी ज्यादा कठिनाई के बगैर कर्ज दे  रहे हैं। वैसे वित्तीय संस्थान, जो बैंक नहीं हैं, लेकिन वे जमाराशि स्वीकार करते हैं तथा बैंक की तरह ऋण सुविधा प्रदान करते हैं, को एनबीएफसी कहा जाता है।

एनबीएफसी में केवल वित्तीय कंपनियां शामिल नहीं हैं। इसमें शामिल कंपनियाँ निवेश व बीमा, चिट फंड, बैंकिंग, स्टॉक ब्रोकिंग, वैकल्पिक निवेश आदि का कारोबार करती हैं। 31 जनवरी 2021 तक भारतीय रिजर्व बैंक में पंजीकृत एनबीएफसी की कुल संख्या 9507 थी और इसका कुल परिसंपत्ति आकार, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का लगभग 14 प्रतिशत था।

आज एनबीएफसी निम्न आय वर्ग के परिवारों तथा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को जमा एवं ऋण की सुविधाएं उपलब्ध कराने में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। यह उन क्षेत्रों में भी ऋण की सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं, जहाँ बैंकों की पहुँच नहीं है। बैंकों से ऋण पाने में असफल लोगों को यह आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराते हैं। इनके द्वारा दिये गये ऋण के एनपीए होने का प्रतिशत बहुत ही कम है। 

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार पेट्रोलियम उत्पाद, इंजीनियरिंग उत्पाद, रत्नाभूषण आदि की वैश्विक माँग बढ़ने के कारण जून महीने में निर्यात सालाना आधार पर 48.34 प्रतिशत बढ़कर 32.5 अरब डॉलर रहा जून, 2020 की तुलना में यह करीब 30 प्रतिशत अधिक है, क्योंकि लौह अयस्क, चावल, कपास, हैंडलूम उत्पाद, समुद्री उत्पाद, दवा एवं फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्र चालू वित्त वर्ष की शुरुआत से ही वृद्धि दर्ज कर रहे हैं।  

देश का वस्तु आयात जून महीने में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में लगभग दोगुना यानी 41.87 अरब डॉलर हो गया और जून 2019 के मुक़ाबले इसमें लगभग 2.05 प्रतिशत की वृद्धि हुई। निर्यात में बढ़ोतरी होने और मई व जून महीने में तुलनात्मक रूप से सोने के कम आयात से कुल व्यापार घाटा में कमी आ रही है।

यह वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में तीन तिमाहियों के निचले स्तर 31 अरब डॉलर के स्तर पर रहा। राज्यों द्वारा चरणबद्ध तरीके से तालाबंदी को खोलने और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आने से चालू वित्त वर्ष में व्यापार घाटा के न्यून रहने का अनुमान है। 

गैर पेट्रोलियम और गैर-रत्नाभूषण निर्यात जून में 29 प्रतिशत बढ़कर 25.65 अरब डॉलर रहा। इसी तर्ज पर गैर तेल और गैर सोना आयात भी जून 2021 में बढ़ा है। इससे आर्थिक गतिविधियों में तेजी आने और माँग में सुधार आने का पता चलता है। भारत का वस्तु एवं सेवा निर्यात जून महीने में सालाना आधार पर 32 प्रतिशत बढ़कर 49.85 अरब डॉलर रहने का अनुमान है। 

साभार : Outlook India

कुल आयात सालाना आधार पर करीब 74 प्रतिशत बढ़कर 52.18 अरब डॉलर रहा। उल्लेखनीय है कि समग्र वैश्विक मांग अभी भी अच्छी बनी हुई है। इसी वजह से देश के विभिन्न हिस्सों में आंशिक तालाबंदी के बावजूद कारखाने अपनी आधी क्षमता पर चालू हैं। वैसे, संक्रमण के दैनिक मामलों में कमी आने और आर्थिक गतिविधियां बहाल रहने से भारत चालू वित्त वर्ष में निर्यात में और भी बेहतर प्रदर्शन कर सकता है।

सूचीबद्ध गैर-वित्तीय केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों की विगत 5 सालों में पहली बार ऋण देनदारी में कमी आई है। धातु एवं ऊर्जा की कीमतों में तेजी के कारण हुए फायदे से इन कंपनियों को ऋण देनदारी को कम करने में मदद मिली। सरकारी स्वामित्व वाली इन कंपनियों का एकीकृत शुद्ध ऋण देनदारी 6.4 प्रतिशत घटकर इस साल मार्च के अंत में 6.83 लाख करोड़ रुपये रह गई,  जो मार्च 2020 के अंत में 7.3 लाख करोड़ रुपये थी।

गैर-बैंक एवं गैर-एनबीएफसी केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के एकीकृत शुद्ध ऋण बनाम इक्विटी सुधरकर वित्त वर्ष 2021 में 0.75 गुना हो गया, जो वित्त वर्ष 2020 में 0.77 गुना रहा था। ऋण अनुपात में सुधार को सकल ऋण में कटौती और अधिक आय दोनों से बल मिला। 

केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों का लगभग 80 प्रतिशत ऋण महज चार कंपनियों ने ले रखा है, जिनमें नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी), पावर ग्रिड कॉरपोरेशन, ओएनजीसी और इंडियन ऑयल शामिल हैं। इन चार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का एकीकृत शुद्ध ऋण देनदारी सालाना आधार पर 2.3 प्रतिशत घटकर 5.6 लाख करोड़ रुपये रह गई। ऋण देनदारी में कमी को मुख्य तौर पर स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया एवं हिंदुस्तान कॉपर जैसी धातु कंपनियों और इंडियन ऑयल एवं भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड जैसी तेल कंपनियों को हुए मुनाफे से बल मिला।

पिछले वित्त वर्ष के दौरान सेल का कुल ऋण देनदारी 31 प्रतिशत घटकर करीब 35,500 करोड़ रुपये रह गई, जो वित्त वर्ष 2020 के अंत में 52,200 करोड़ रुपये थी। इंडियन ऑयल का सकल ऋण पिछले वित्त वर्ष में 14 प्रतिशत घटकर 1.09 लाख करोड़ रुपये रह गया, जो 1 साल पहले 1.26 लाख करोड़ रुपये था। इसी प्रकार, भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड का सकल ऋण देनदारी सालाना आधार पर 23 प्रतिशत घटकर पिछले वित्त वर्ष के अंत में करीब 48,000 करोड़ रुपये रह गई, जो 1 साल पहले लगभग 62,000 करोड़ रुपये था। 

इंडियन ऑयल, बीपीसीएल, एचपीसीएल, ओएनजीसी, एनटीपीसी, सेल और एनएमडीसी जैसी कंपनियों की आय में सबसे अधिक उछाल दर्ज किया गया, जबकि पिछले वित्त वर्ष में कम बिक्री एवं राजस्व के बावजूद तेल कंपनियों को इंवेंट्री लाभ से लाभ हुआ और धातु उत्पादकों को धातु कीमतों में तेजी से फायदा हुआ। इससे वित्त वर्ष 2021 में उनके मुनाफे में वृद्धि हुई। 

केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को पिछले साल अन्य कंपनियों की तरह ब्याज दरों में गिरावट का भी फायदा मिला, इससे वित्त वर्ष 2021 में उनकी ब्याज लागत में सालाना आधार पर 18.4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।

कहा जा सकता है कि कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा अभी टला नहीं है। इसलिए, इससे  बचाव के उपाय देशभर में किए जा रहे हैं। टीकाकरण की रफ्तार में तेजी आई है। स्वास्थ्य अवसंरचना को मजबूत करने के भी प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार द्वारा उठाये गये सुधारात्मक कदमों से आर्थिक गतिविधियों में आगामी महीनों में और भी मजबूती आने की उम्मीद है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)