आईबीसी क़ानून के जरिये फंसे कर्ज की वसूली से बैंकों की वित्तीय स्थिति में तेजी से हो रहा सुधार

सरकारी बैंकों के फंसे कर्ज में कमी आई है और बैंक ज्यादातर फँसने वाले संभावित कर्जों की पहचान कर चुके हैं। साथ ही, उनके तुलन पत्र में दिखाने का काम भी लगभग पूरा हो गया है। वित्त वर्ष 2019 की पहली छमाही में इसमें 23,860 करोड़ रुपये की कमी आई है। पुनर्गठित कर्ज भी मार्च 2017 के 7 प्रतिशत से घटकर सितंबर, 2018 तक 0.59 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गया है।

भले ही बैंकों के फंसे कर्ज (एनपीए) का इलाज लोगों को मुश्किल लग रहा है, लेकिन सरकार और बैंकों के प्रयास से मामले में सकारात्मक परिणाम परिलक्षित होने लगे हैं। एक तरफ सरकार समय-समय पर बैंकों को विभिन्न जरूरतों, उदाहरण के तौर पर, नियामकीय और फंसे कर्ज आदि  के लिये पूँजी मुहैया करा रही है तो दूसरी तरफ नये-नये क़ानूनों जैसे, भगोड़ा विधेयक, आईबीसी आदि के माध्यम से बैंकों को फंसे कर्ज की वसूली में मदद पहुँचा रही है।

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी “ट्रेंड्ज एंड प्रोग्रेस ऑफ बैंकिंग इन 2017-18” नाम की रिपोर्ट में कहा गया है कि पुनर्गठित कर्जो के फंसे कर्ज में तब्दील होने और फंसे कर्ज की पहचान की प्रक्रिया लगभग पूरा हो जाने के कारण वित्त वर्ष 2017-18 में सरकारी बैंकों का सकल फंसा कर्ज अनुपात 14.6 प्रतिशत पहुंच गया, जबकि शुद्ध फंसे कर्ज का अनुपात 8 प्रतिशत था। हालाँकि, निजी बैंकों का सकल फंसा कर्ज का अनुपात आलोच्य अवधि में 4.7 प्रतिशत रहा, वहीं विदेशी बैंकों के फंसे कर्ज में आलोच्य अवधि में गिरावट दर्ज की गई।   

उल्लेखनीय है कि केंद्रीय बैंक के नये गवर्नर शक्तिकांत दास भी फंसे कर्ज के मामले में बैंकों को कोई रियायत देने के मूड में नहीं हैं। इस बात की तस्दीक उनके हालिया बयान से की जा सकती है। उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि फंसे कर्ज की बड़ी राशि और उसके नकारात्मक प्रभावों से निपटने के लिये अपर्याप्त प्रावधान के परिप्रेक्ष्य में पूंजी संबंधी नियामकीय जरूरतों या जोखिम की स्थिति में पूंजी की पर्याप्तता के नियमों में किसी भी तरह की ढील का दिया जाना बैंकों के साथ-साथ पूरी अर्थव्यवस्था के लिए घातक है।

हालाँकि, दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (इन्सॉल्वंसी ऐंड बैंकरप्ट्सी कोड यानी आईबीसी) और फंसी संपत्तियों के समाधान के लिए रिजर्व बैंक की संशोधित रूपरेखा से फंसे कर्ज और इसकी वसूली दर में तेजी आई है। वित्त वर्ष 2017-18 में फंसे कर्ज की वसूली के लिये आईबीसी के तहत 9,929 अरब रूपये के 701 मामले भेजे गये, जिनमें 4,925 अरब रूपये की वसूली की गई।

इस तरह, आईबीसी के जरिये वसूली का प्रतिशत 50 है, जो अन्य वसूली के तंत्रों मसलन, लोक अदालत, डीआरटी, सरफेसी कानून आदि में सबसे बेहतर है। लोक अदालत के द्वारा वसूली करने का प्रतिशत 4, डीआरटी के जरिये 5.4 और सरफेसी कानून के द्वारा 25 है।   

सरकारी बैंकों के फंसे कर्ज में कमी आई है और बैंक ज्यादातर फँसने वाले संभावित कर्जों की पहचान कर चुके हैं। साथ ही, उनके तुलन पत्र में दिखाने का काम भी लगभग पूरा हो गया है। वित्त वर्ष 2019 की पहली छमाही में इसमें 23,860 करोड़ रुपये की कमी आई है। पुनर्गठित कर्ज भी मार्च 2017 के 7 प्रतिशत से घटकर सितंबर, 2018 तक 0.59 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गया है।

वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार जिन ऋण खातों की किस्त जमा करने में 31 से 90 दिनों की देरी हुई है और जो अभी तक फंसे कर्ज में तब्दील नहीं हुए हैं, में लगातार पांच तिमाहियों में 61 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है और यह सितंबर, 2018 में यह 0.87 लाख करोड़ रूपये रह गया, जबकि जून, 2017 में ऐसे संभावित फंसे कर्ज 2.25 लाख करोड़ रुपये के थे।

चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में सरकारी बैंकों ने रिकॉर्ड 60,726 करोड़ की रिकवरी की है, जो साल भर पहले की इसी तिमाही का दोगुना है। सरकारी बैंकों का प्रोविजन कवरेज रेशियो (पीसीआर) मार्च 2015 में 46.04 प्रतिशत था, जो सितंबर 2018 तक बढ़कर 66.85 प्रतिशत हो गया। यह अनुपात बैंकों की नुकसान सहने की क्षमता के बारे में बताता है। साफ है, सरकारी बैंकों की नुकसान सहने की क्षमता में इजाफा हुआ है।

इधर, सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के 7 बैंकों में पुनर्पूंजीकरण बॉन्ड के जरिये इस माह के अंत तक 28,615 करोड़ रुपये की पूंजी डालेगी। इस राशि से बैंक अपनी नियामकीय पूंजी की जरूरत को पूरा कर सकेंगे। इन 7 सरकारी बैंकों में से बैंक ऑफ इंडिया को सबसे अधिक 10,086 करोड़ रुपये मिलेंगे। इसके बाद ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स को 5,500 करोड़ रुपये और बैंक ऑफ महाराष्ट्र को 4,498 करोड़ रुपये मिलेंगे।

यूको बैंक को 3,056 करोड़ रुपये और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया को 2,159 करोड़ रुपये मिलेंगे। सरकार ने इससे पहले वित्त वर्ष 2018-19 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 65,000 करोड़ रुपये की पूंजी डालने की घोषणा की थी। इसमें से 23,000 करोड़ रुपये की राशि सरकारी बैंकों को दी जा चुकी है, जबकि 42,000 करोड़ रुपये अभी बैंकों को मिलने हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली के अनुसार सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 41,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त तौर पर देगी, जो पहले की घोषित राशि से अलग होगी।

इससे सरकारी बैंकों में केंद्र की तरफ से लगाई जाने वाली रकम 65 हजार करोड़ से बढ़कर 1.06 लाख करोड़ रुपये हो जायेगी। सरकारी बैंकों को पूँजी मुहैया कराने से कम से कम दो या तीन बैंक रिजर्व बैंक के प्रॉम्प्ट करेक्टिव ऐक्शन (पीसीए) के दायरे से मार्च, 2019 तक बाहर आ जायेंगे।

वित्त मंत्री अरुण जेटली के अनुसार इससे सरकारी बैंकों की लोन देने की क्षमता बढ़ेगी और वे रिजर्व बैंक के पीसीए फ्रेमवर्क से बाहर आ पायेंगे। पीसीए में उन बैंकों को डाला जाता है, जो कुछ महत्वपूर्ण वित्तीय मानकों का पालन नहीं कर पाते हैं। पीसीए में डाले जाने के बाद बैंकों के लोन देने और नई शाखाएं खोलने पर रोक लगा दी जाती है। 

सरकारी बैंकों के लिये चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही का परिणाम मिला-जुला रहा। कुछ सरकारी बैंक दूसरी तिमाही में मुनाफे आ गये तो कुछ अभी भी घाटे में हैं। भारतीय स्टेट बैंक ने दूसरी तिमाही में 945 करोड़ रूपये का मुनाफा अर्जित किया। केनरा बैंक भी दूसरी तिमाही में 300 करोड़ रूपये का मुनाफा अर्जित करने में सफल रहा। हालाँकि, बैंक ने इस अवधि में 1700 करोड़ रूपये की वसूली की, लेकिन इस राशि का अधिकांश हिस्सा फंसे कर्ज के लिये किये गये प्रावधान में चला गया।

अन्यथा बैंक की मुनाफा राशि ज्यादा होती। बैंक ऑफ बड़ौदा ने भी दूसरी तिमाही में बेहतर प्रदर्शन किया है। एक अनुमान के मुताबिक वित्त वर्ष 2019 में सरकारी बैंकों के प्रदर्शन में और भी सुधार आ सकता है। कहा जा सकता है कि सरकार और बैंकों के प्रयास से फंसे कर्ज की वसूली के मोर्चे पर बेहतर परिणाम दृष्टिगोचर होने लगे हैं, जिससे नये साल में गुलाबी अर्थव्यवस्था रहने की आस बंधी है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)