भारत-चीन प्रकरण: विदेश नीति के मामले में तो अपनी अपरिपक्व बयानबाजी से बाज आएं राहुल गांधी

घरेलू राजनीति में अपरिक्‍वता का परिचय देने वाले राहुल गांधी जिस तरह विदेशी मामलों में राजनीतिक लाभ के लिए गलतबयानी कर रहे हैं, वह कांग्रेस पार्टी के साथ-साथ देश के लिए भी घातक है। राष्‍ट्रीय हित को देखते हुए राहुल गांधी को ऐसी अपरिपक्‍व राजनीति से बचना चाहिए।

पिछले दो दशकों से राहुल गांधी को राष्‍ट्रीय राजनीति में प्रतिष्‍ठित करने के लिए अनेक प्रयोग किए गए लेकिन हर बार कांग्रेस को निराशा ही हाथ लगी। इस दौरान राहुल गांधी कई बार अपनी अजीबोगरीब हरकतों के कारण जनता के उपहास का पात्र भी बने।

उदाहरण के लिए 2013 में दागी नेताओं को बचाने वाले मनमोहन सिंह सरकार के अध्‍यादेश को बकवास बताते हुए उसे फाड़कर रद्दी की टोकरी में फेंक देने की नसीहत दे डाली। 2017 में राहुल गांधी ने उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले जातिवादी राजनीति के खिलाफ 27 साल यूपी बेहाल नामक अभियान चलाया लेकिन चुनाव के ठीक पहले समाजवादी पार्टी से चुनावी गठबंधन कर लिया। 

राहुल गांधी की इन्‍हीं ऊल-जुलूल हरकतों का नतीजा रहा कि कांग्रेस का जनाधार लगातार कमजोर हुआ। हां, इस दौरान कुछ राज्‍यों में कांग्रेस की जीत हुई लेकिन वह जीत राहुल गांधी के नेतृत्‍व की न होकर क्षेत्रीय छत्रपों की जीत थी जैसे पंजाब में कैप्‍टन अमरिंदर सिंह और छत्‍तीसगढ़ में भूपेश बघेल।  

साभार : The Economic Times

पार्टी के कई वरिष्‍ठ नेताओं ने कांग्रेस को दुर्दशा से बचाने के लिए राहुल गांधी को अध्‍यक्ष पद से हटाने की मांग की लेकिन पुत्रमोह में उलझी सोनिया गांधी ने वरिष्‍ठ नेताओं की सुनना तो दूर उल्‍टे उन्‍हें ही पार्टी से बाहर का रास्‍ता दिखा दिया। 2019 के लोक सभा चुनाव में पार्टी को मिली करारी शिकस्‍त के बाद राहुल गांधी ने हार की जिम्‍मेदारी लेते खुद पद छोड़ दिया। 

इसके बाद कांग्रेस के कई शुभचिंतकों को उम्‍मीद जगी थी कि इस बार गांधी-नेहरू परिवार से बाहर का कोई सदस्‍य पार्टी का नेतृत्‍व करेगा और पार्टी के दिन बहुरेंगे लेकिन उन्‍हें निराशा हाथ लगी। कांग्रेसी चाटुकार सोनिया गांधी को कांग्रेस का अंतरिम अध्‍यक्ष बनाकर राहुल गांधी को अध्‍यक्ष बनाने की कवायद में जुट गए।

भले ही राहुल गांधी कांग्रेस अध्‍यक्ष पद से इस्‍तीफा दे दिए हों लेकिन उनकी हैसियत में कोई कमी नहीं आई। उनकी राजनीतिक गतिविधियां पहले की भांति जारी रहीं और उनके बेतुके ट्वीट नए-नए विवाद पैदा करते रहे हैं। 

ताजा मामला भारत-चीन सीमा विवाद का है। एक ओर पूरा देश पराक्रमी जवानों की वीरता को सलाम कर रहा है, तो दूसरी ओर राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री से सवाल पूछा कि चीन की इतनी हिम्‍मत कैसे हुई कि उसने हमारे सैनिकों को मार दिया। उनका दूसरा सवाल था कि चीन की हिम्‍मत कैसे हुई कि वह हमारी सीमा में घुस आया। इसके बाद उन्‍होंने सरकार से सवाल किया कि आखिर सैनिकों को निहत्‍थे सीमा पर क्‍यों भेजा गया।  

प्रधानमंत्री से सवाल पूछने से पहले राहुल गांधी को यह बताना चाहिए कि आखिर उन्‍हें ये संवेदनशील जानकारियां कहां से मिलीं। फिर उन्‍हें यह भी ध्‍यान रखना होगा कि 1962 में चीन के हाथों मिली करारी शिकस्‍त के बावजूद कांग्रेसी सरकारों ने चीन सीमा से लगे भारतीय इलाकों में सड़कें, पुल, हवाई पट्टियां और अन्‍य बुनियादी सुविधाएं विकसित करने पर ध्यान नहीं दिया। 

इस संबंध में एक मजेदार वाकया सेवानिवृत्‍त लेफ्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद ने सुनाया। उनके मुताबिक जब फौजी अफसरों ने सीमावर्ती इलाकों में सड़कें, पुल, हवाई पट्टियां बनाने की मांग की तब कांग्रेसी सरकारों ने यह कहते हुए मना कर दिया कि चीन हमारी बनाई सड़कें, पुल और हवाई पट्टियां प्रयोग करके भारत में घुस आएगा। दूसरी ओर चीन इस दौरान 4000 किलोमीटर लंबी सीमा पर ये सुविधाएं विकसित करता रहा। 

सीमा पर सैनिकों को निहत्‍थे भेजने संबंधी सवाल का उत्‍तर देते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया कि सैनिक पोस्‍ट छोड़ते ही हथियारों से लैस होकर जाते हैं लेकिन चीनी सैनिकों के साथ खूनी झड़प के समय हथियारों का उपयोग नहीं किए जाने की संधि के चलते दानों पक्षों ने हथियारों का इस्‍तेमाल नहीं किया। गौरतलब है कि इस प्रकार की संधि कांग्रेसी प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने की थी। 

राहुल गांधी यह भूल गए कि कांग्रेसी सरकारों के ढुलमुल रवैये और ढांचागत कमजोरियों का चीन कई बार भरपूर फायदा उठा चुका है। उसने जब चाहा तब भारतीय सीमा का अतिक्रमण किया। उदाहरण के लिए 1962 में अक्साई चीन हड़पने के बाद 1963 में काराकोरम पास, 2008 में तिया पंगनक  और चाबजी घाटी, 2009  में डूम चेली और 2012 में  डेमजोक में कब्‍जा कर लिया।

हां, 1967 में भारतीय सेना ने नाथूला में और और 1987 में समदोरांग चू में चीनी सेना को करारी शिकस्‍त दी। यह उपलब्‍धियां सरकार के ढुलमुल रवैये को नकारकर सेना ने अपने दम पर हासिल की थी।

2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने कांग्रेसी सरकारों के ढुलमुल रवैये को छोड़ते हुए चीन सीमा पर आधारभूत ढांचा निर्माण को सर्वोच्‍च प्राथमिकता दी। इससे कुपित चीन ने भारत को धमकाने  के लिए 2017 में डोकलाम में सीमा का अतिक्रमण किया था लेकिन मोदी सरकार द्वारा कठोर रवैया अपनाने के बाद उसे पीछे हटना पड़ा। 

समग्रत: घरेलू राजनीति में अपरिक्‍वता का परिचय देने वाले राहुल गांधी जिस तरह विदेशी मामलों में राजनीतिक लाभ के लिए गलतबयानी कर रहे हैं, वह कांग्रेस पार्टी के साथ-साथ देश के लिए भी घातक है। राष्‍ट्रीय हित को देखते हुए राहुल गांधी को ऐसी अपरिपक्‍व राजनीति से बचना चाहिए।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)