कोरोना संकट के इस कठिन काल से और मजबूत होकर निकलेगा भारत!

एक तरफ जहां पड़ोसी चीन इस आपदा का व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अनुचित इस्तेमाल करने से नहीं चूक रहा, दूसरी तरफ भारत ने कोरोना से लड़ाई में केवल अपनी रक्षा ही नहीं की है, अपितु विश्व के अन्य देशों को भी सहयोग दिया है। अमेरिका सहित विश्व के अनेक देशों को भारत ने कोरोना के उपचार हेतु प्रयोग हो रही दवा हाईड्राक्सीक्लोरोक्विन देकर उनका सहयोग किया है। ये सब बातें स्पष्ट करती हैं कि इस संकटकाल में न केवल भारत ने अपने संकटकालीन उत्तम प्रबंधन व नीति नियोजन का परिचय दिया है, वरन उसने विश्व को कुटुंब समझने वाले सनातन दर्शन को भी चरितार्थ करके दिखाया है। आज ये जो कुछ घट रहा है, आने वाले कल की इबारत इसीपर लिखी जाएगी और निश्चित ही भारत इससे और मजबूत होकर निकलेगा।

कहा जाता है कि किसी भी राष्ट्र के चरित्र और उसके नेतृत्व की वास्तविक पहचान संकटकाल में ही होती है। देखा जाए तो वर्तमान में किसी एक राष्ट्र के लिए नहीं अपितु समूचे विश्व के समक्ष ऐसा ही एक संकटकाल उपस्थित है। कोरोना वायरस जनित वैश्विक महामारी ने विश्व के छोटे-बड़े सभी राष्ट्रों के समक्ष कठिन परीक्षा का एक ऐसा अवसर उपस्थित कर दिया है, जिसमें विश्व के लगभग सभी नागरिकों सहित उनके नेतृत्वकर्ताओं के भी धैर्य, संयम, समझदारी और दूरदर्शिता की कठिन परीक्षा हो रही है। यह कहना अनुचित नहीं लगता कि इस कठिन काल के बीतने के पश्चात् वैश्विक राजनीति के स्वरूप में व्यापक परिवर्तन आने की संभावना है तथा इस संघर्ष में राष्ट्रों का प्रदर्शन ही आगामी विश्व की राजनीतिक स्थिति का निर्धारण करेगा।

अमेरिका जो विश्व का स्वघोषित दारोगा बना हुआ था, उसकी स्थिति इस महामारी में सबसे अधिक दयनीय और चिंताजनक हो रही है। विश्व के कुल कोरोना संक्रमितों में एक तिहाई संक्रमित अकेले अमेरिका के हैं और इस संक्रमण से हुई मौतों में भी एक चौथाई से अधिक मौतें अमेरिका में हुई हैं। ये आंकड़ा प्रतिदिन तेजी से बढ़ भी रहा है और विश्व का ये महाशक्ति राष्ट्र अपने लोगों को मरते देखने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर पा रहा।

ये स्थिति केवल अमेरिका की ही नहीं है, अपितु कभी विश्व को अपने शासन में रखने वाला ब्रिटेन आज अपने प्रधानमंत्री को तक इस महामारी के संक्रमण से नहीं बचा पाया। यह संतोषजनक है कि बोरिस जॉनसन स्वस्थ हो गए हैं, परन्तु मात्र साढ़े छः करोड़ के लगभग आबादी वाले ब्रिटेन में कोरोना संक्रमितों की संख्या का लाखों में पहुँच जाना भयभीत करने के साथ-साथ चकित भी करता है। स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले विश्व में शीर्ष पर रहने वाले स्पेन और इटली की स्थिति भी हमारे सामने है। रूस और फ़्रांस जैसी महाशक्तियां भी इस महामारी के समक्ष बेबस नजर आ रहीं, तो वहीं चीन विश्व को इस संकट में डालकर अब इसका व्यापारिक लाभ लेने में जुटा हुआ है। 

समग्रतः इस पूरे परिदृश्य में हम विश्व के इन कथित महाशक्ति राष्ट्रों के सामर्थ्य और चरित्र दोनों को देख सकते हैं। इस कठिन काल में भी कोई अपना व्यापार बढ़ाने में जुटा है, तो कोई दूसरे पर आरोप लगाने में मशगूल है। वस्तुतः इनमें कोई एक ऐसा राष्ट्र नहीं दिखता जिसका महाशक्तित्व विश्व को वह मार्ग सुझा सके जिसके द्वारा कोरोना के संकट से निपटा जा सकता है। परन्तु, इन सबके बीच यह कार्य भारत ने किया है। भारतीय नेतृत्व से लेकर नागरिकों तक ने अपने सीमित संसाधनों के बावजूद जिस सूझबूझ, समझदारी और दूरदर्शिता का परिचय देते हुए इस महामारी को अपने यहाँ भयानक रूप में पाँव पसारने से रोका है, वो कहीं न कहीं आज पूरे विश्व के लिए मार्गदर्शक बन चुका है। 

गौर करें तो जब विश्व के उक्त महाशक्ति देश कोरोना को हल्के में ले रहे थे तथा नागरिकों के जीवन से अधिक अर्थव्यवस्था की चिंता में थे, भारत ने तभी से देश में इसकी आहट को भांपते हुए आवश्यक कदम उठाने शुरू कर दिए। अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों पर रोक हो या 22 मार्च को हुआ जनता कर्फ्यू हो अथवा 24 मार्च को पहले इक्कीस दिन और फिर उसके पश्चात् 14 अप्रैल को 3 मई तक के लिए घोषित लॉकडाउन, इन निर्णयों ने स्पष्ट किया कि भारत की सरकार के लिए अपने नागरिकों का जीवन सर्वप्रथम है। लॉकडाउन का निर्णय उचित था, परन्तु इतने विशाल और सघन जनसंख्या वाले देश में इसे लागू करने की अनेक चुनौतियाँ थीं और वो सामने आईं भी। 

दैनिक आय पर निर्भर मजदूर वर्ग के समक्ष भुखमरी का संकट उपस्थित न हो इसके लिए सरकार ने वित्तीय घोषणाएं की तथा अपनी जान जोखिम में डालकर कोरोना से लड़ रहे स्वास्थ्यकर्मियों के लिए भी बीमा का ऐलान किया। ऐसे और भी कई निर्णय लिए गए। साथ ही, लम्बे लॉकडाउन से देशवासियों के मन में भय, हताशा और अवसाद न उत्पन्न हो, इसके लिए स्वयं प्रधानमंत्री ने बीच-बीच में उनसे संवाद करने तथा तरह-तरह से उनमें उत्साह व सकारात्मकता बनाए रखने का प्रयत्न किया है।

इन प्रयत्नों का ही परिणाम है कि आज विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाला यह देश कोरोना संक्रमितों के मामले में शीर्ष के दस देशों से बाहर है। कहने की आवश्यकता नहीं कि भारत के अभी इस महामारी के खतरनाक प्रभाव से बचे होने में नागरिकों के सहयोग के साथ-साथ हमारे नेतृत्व की दृढ़ इच्छाशक्ति, सूझबूझ और दूरदर्शितापूर्ण कार्यशैली ही कारण है। 

सांकेतिक चित्र (साभार : Shutterstock)

भारतीय नेतृत्व की सफलता का प्रमाण हाल ही में सामने आए एक वैश्विक सर्वेक्षण से भी मिल जाता है। अमेरिका की एक डाटा इंटेलिजेंस कंपनी ‘मॉर्निंग कंसल्ट पॉलिटिकल इंटेलिजेंस’ ने हाल ही में कोरोना वायरस की लड़ाई से संबंधित दुनिया भर के आंकड़े जारी किए। इन आंकड़ों में दुनिया के सभी बड़े नेताओं की रेटिंग भी जारी की गई है, जिसमें भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोरोना से लड़ाई में विश्व के सभी बड़े नेताओं के बीच सबसे ऊपर स्थान दिया गया है।

इस रेटिंग को सरकार द्वारा कोरोना के विरुद्ध लिए गए फैसलों और काम करने के तरीकों तथा लोगों के अपने नेतृत्व पर विश्वास जैसी बातों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इन सब कसौटियों पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अव्वल साबित हुए हैं और 68 अंकों के साथ सूची में शीर्ष पर उपस्थित हैं। स्पष्ट है कि इस संकटकाल में भारतीय नेतृत्व विश्व का ध्यान खींच रहा है और विश्व भारतीय नेतृत्व की निर्णय क्षमता और प्रबंधन कुशलता को एक उदाहरण की तरह ले रहा है।

इतना ही नहीं, विशेष यह भी है कि एक तरफ जहां पड़ोसी चीन इस आपदा का व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अनुचित इस्तेमाल करने से नहीं चूक रहा, दूसरी तरफ भारत ने कोरोना से लड़ाई में केवल अपनी रक्षा ही नहीं की है, अपितु विश्व के अन्य देशों को भी सहयोग दिया है। अमेरिका सहित विश्व के अनेक देशों को भारत ने कोरोना के उपचार हेतु प्रयोग हो रही दवा हाईड्राक्सीक्लोरोक्विन देकर उनका सहयोग किया है। ये सब बातें स्पष्ट करती हैं कि इस संकटकाल में न केवल भारत ने अपने संकटकालीन उत्तम प्रबंधन व नीति नियोजन का परिचय दिया है, वरन उसने विश्व को कुटुंब समझने वाले सनातन दर्शन को भी चरितार्थ करके दिखाया है। आज ये जो कुछ घट रहा है, आने वाले कल की इबारत इसीपर लिखी जाएगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)