‘मोदी सरकार बनने के बाद स्विस बैंकों में 80 प्रतिशत कम हुआ भारतीय काला धन’

सरकार की तरफ से राज्यसभा में बताया गया है कि 2017 में स्विस बैंकों में भारतीयों के काले धन में पिछले साल के मुकाबले करीब 35 प्रतिशत की कमी आई है। वर्ष 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद इसमें 80 प्रतिशत की कमी आई है। यह जानकारी राज्यसभा में वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने दी। केंद्रीय बैंकों की अंतरराष्ट्रीय संस्था बैंक फॉर इंटरनैशनल सेटलमेंट्स के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि स्विस बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा कराई जाने वाली राशि में 50 प्रतिशत बढ़ोतरी की खबर गलत है। ज्ञात हो कि पिछले महीने स्विस नेशनल बैंक के हवाले से यह दावा किया गया था।

राज्यसभा ने 25 जुलाई को भगोड़ा आर्थिक अपराधी विधेयक पारित कर दिया। लोकसभा ने इस विधेयक को 19 जुलाई को पारित किया था। दोनों सदनों में इस विधेयक के पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु भेजा जायेगा। स्वीकृति मिलने के बाद यह कानून बन जायेगा। इस विधेयक में आर्थिक अपराध करके विदेश पलायन करने वालों पर पाबंदी लगाने के प्रावधान किये गये हैं। साथ ही, प्रवर्तन निदेशालय को भगोड़े आर्थिक अपराधियों की संपत्ति जब्त करने के अधिकार भी दिये गये हैं।

माना जा रहा है कि इस विधेयक के कानून बनने के बाद नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, विजय माल्या आदि जैसे आर्थिक अपराधियों पर नकेल कसना आसान हो जायेगा। ज्ञात हो कि ये ऐसे बड़े कारोबारी हैं, जो बैंकों का पैसा लेकर विदेश भाग गये हैं। देखा जाये तो कमोबेश सभी आर्थिक अपराधी बैंकों के गुनहगार हैं।

वित्त मंत्री पीयूष गोयल के मुताबिक यह विधेयक आर्थिक अपराध करके विदेश पलायन करने वालों को रोकने का एक प्रभावी, त्वरित एवं संवैधानिक तरीका मुहैया कराता है। वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि हम संपत्ति जब्त करने के लिये उठाये जाने वाले तौर-तरीकों पर भी विचार करेंगे और जरूरत पड़ने पर उनमें भी सुधार करेंगे। पीयूष गोयल का मानना है कि नया कानून आर्थिक अपराध करने वालों को विदेश भागने से रोकने में सफल रहेगा। इसके अलावा पहले से विदेश भागे हुए आर्थिक अपराधी भी अपनी संपत्तियां के जब्त होने के डर से देश वापिस लौटेगें।

वैसे, विपक्षी दलों के सदस्य इस कानून के प्रावधान लागू करने के लिए की गई 100 करोड़ रुपये की सीमा को कम कर 10 करोड़ रुपये करने की माँग कर रहे हैं। इसके बरक्स वित्त मंत्री ने कहा कि नये कानून का मकसद बड़े अपराधियों को पकडऩा है, न कि अदालतों पर बोझ बढ़ाना।

नये कानून में किसी व्यक्ति को भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित करने के लिए विशेष अदालतों के गठन का प्रावधान किया गया है। यह अदालत ही इन अपराधियों की संपत्ति को जब्त करने और उसके प्रबंधन एवं निपटान के बारे में निर्णय करेगी। संपत्ति जब्त करने का यह काम समयबद्ध तरीके से अंजाम दिया जायेगा। 

इधर, सरकार की तरफ से राज्यसभा में बताया गया है कि 2017 में स्विस बैंकों में भारतीयों के काले धन में पिछले साल के मुकाबले करीब 35 प्रतिशत की कमी आई है। वर्ष 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद इसमें 80 प्रतिशत की कमी आई है। यह जानकारी राज्यसभा में वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने दी। केंद्रीय बैंकों की अंतरराष्ट्रीय संस्था बैंक फॉर इंटरनैशनल सेटलमेंट्स के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि स्विस बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा कराई जाने वाली राशि में 50 प्रतिशत बढ़ोतरी की खबर गलत है। ज्ञात हो कि पिछले महीने स्विस नेशनल बैंक के हवाले से यह दावा किया गया था।

वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने भी कहा कि स्विस नेशनल बैंक के आंकड़ों की अक्सर गलत व्याख्या की जाती है, क्योंकि इसमें गैर जमा देनदारी, स्विस बैंकों की भारत में स्थित शाखाओं के कारोबार और अंतर बैंक लेनदेन और बाकी देनदारियों को भी शामिल किया जाता है। वित्त मंत्री ने कहा कि वर्ष 2017 में गैर बैंक जमा राशि 52.4 करोड़ डॉलर रह गई जो 2016 में 80 करोड़ डॉलर और 2014 में 223.4 करोड़ डॉलर थी।

सीबीडीटी ने भारत में स्विट्जरलैंड के राजदूत आंद्रेस बॉम के एक पत्र का हवाला देते हुए कहा कि भारतीयों द्वारा स्विस बैंकों में जमा हर राशि को काला धन नहीं माना जा सकता है। आम धारणा यह है कि अगर किसी भी भारतीय ने स्विट्जरलैंड में पैसा जमा कर रखा है तो वह काला धन ही होगा।

कानूनी प्रक्रिया से बचने के लिए विदेश भाग चुके आर्थिक अपराधियों को प्रत्यर्पित कर भारत लाने के लिए सरकार सतत कोशिश कर रही है। इस क्रम में सरकार ने भ्रष्टाचार निरोधक संशोधन अधिनियम को भी पारित किया है। इस तरह भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में मददगार हो सकने वाले दो कानूनों को सरकार ने पारित करके साफ कर दिया है कि वह विदेश भागे आर्थिक अपराधियों एवं भ्रष्टाचार करने वालों पर लगाम लगाने के लिये प्रतिबद्ध है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)