दहाई अंक की जीडीपी वृद्धि दर पाने की दिशा में अग्रसर भारतीय अर्थव्यवस्था

जब विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं  कोरोना महामारी के दुष्परिणामों से बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रही हैं, तब भारत न सिर्फ कोरोना महामारी के नकारात्मक प्रभावों से बाहर आ गया है, बल्कि दहाई अंक की जीडीपी वृद्धि दर को पाने की दिशा में भी तेजी से अग्रसर है।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के अनुसार वित्त वर्ष 2021-22 की अंतिम तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) सालाना आधार पर 4.1 प्रतिशत की दर से बढ़ी और वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी वृद्धि दर 8.7 प्रतिशत रही, जो पूर्व के अनुमानों के अनुरूप है और यह विश्व की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के प्रदर्शन से बहुत ही ज्यादा बेहतर है। बता दें कि महामारी की वजह से वित्त वर्ष 2020-21 में जीडीपी वृद्धि दर 6.6 प्रतिशत पर सीमित रही थी। 

एनएसओ ने अपने दूसरे अनुमान में वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 8.9 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान लगाया था, जबकि चीन में वित्त वर्ष 2022 के पहले तीन महीनों में 4.8 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर्ज की थी। इससे पहले वित्त वर्ष 2022 की तीसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 5.4 प्रतिशत रही थी, जबकि दूसरी तिमाही में 8.5 प्रतिशत और पहली तिमाही में 20.3 प्रतिशत रही थी। 

मार्च तिमाही में कृषि क्षेत्र में 4.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वहीं, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 0.2 प्रतिशत की कमी देखी गई है। देश में प्रति व्यक्ति आय अभी भी कोरोना से पहले के वित्त वर्ष 2019-20 के स्तर पर नहीं पहुंची है वित्त वर्ष 2021-22 में प्रति व्यक्ति आय 1,07,670 रुपये थी, जबकि वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान यह 1,08,247 रुपये थी। 

बावजूद इसके, पिछले साल के मुकाबले कृषि क्षेत्र में 3 प्रतिशत, माइनिंग में 11.5 प्रतिशत, मैन्युफैक्चरिंग में 9.9 प्रतिशत, बिजली, पानी आपूर्ति, गैस व अन्य सेवाओं में 7.5 प्रतिशत, कंस्ट्रक्शन में 11.5 प्रतिशत, ट्रेड, होटल, ट्रांसपोर्ट व कम्युनिकेशन में 11.1 प्रतिशत, वित्त, रियल एस्टेट व अन्य पेशवर सेवाओं में 4.2 प्रतिशत और रक्षा व लोक प्रशासन में 12.6 प्रतिशत की क्षेत्रवार वृद्धि दर्ज की गई है 

उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2021-22 में वास्तविक जीडीपी का स्तर 147 लाख करोड़ रुपये रहा, जो महामारी के पहले वाले वित्त वर्ष 2019-20 के 145 लाख करोड़ रुपये से कुछ अधिक है। दो वर्षों में 1.5 प्रतिशत का सुधार बताता है कि महामारी के बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत ही जल्द न सिर्फ रिकवरी करने में कामयाब रही, बल्कि दहाई अंक के जीडीपी आंकड़ा को छूने की दिशा में अग्रसर हो गई है।  

जीडीपी का ऐसा प्रदर्शन तब है, जब कारोबार और परिवहन क्षेत्र में अभी और भी सुधार होना बाकी है। वित्त वर्ष 2020-21 में 20.2 प्रतिशत की वृद्धि के बाद 2021-22 में यह केवल 11.1 प्रतिशत की दर से बढ़ा। अगर इन क्षेत्रों में सुधार गतिविधियों में तेजी आती है तो जीडीपी के आंकड़ों में और भी बेहतरी आयेगी। रोजगार और उत्पादन के क्षेत्र में भी अपेक्षित सुधार अभी नहीं हो सका है, जिनमें जल्द से जल्द सुधार लाने की जरुरत है, ताकि विकास की रफ़्तार को और भी तेज किया जा सके।  

देखा जाये तो कोरोना महामारी का खौफ़ अभी भी पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ है और भू-राजनैतिक संकट की वजह से विकास का परिदृश्य वैश्विक स्तर पर अनि​श्चित बना हुआ है। चीन में ओमीक्रोन के प्रसार और रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने से वैश्विक हालात बिगड़े हैं। इन वजहों से वैश्विक अर्थव्यवस्था मुद्रास्फीतिजनित मंदी की ओर बढ़ रही है। ऐसे हालात में भारत की मौजूदा वृद्धि दर को बहुत ही बेहतर माना जाना चाहिए। 

सरकार का अंतिम खपत व्यय पिछले वित्त वर्ष के जीडीपी के 11.3 प्रतिशत से घटकर 10.7 प्रतिशत (स्थिर मूल्य पर) रह गया है, जबकि सरकार अंतिम खपत व्यय को बढ़ाने के लिए लगातार कोशिश कर रही है। ऐसा देश एवं विदेश में प्रतिकूल आर्थिक माहौल की वजह से हुआ है। देश का राजकोषीय घाटा 6.7 प्रतिशत है, जो वित्त 2021-22 के 6.9 प्रतिशत के बजट अनुमान के अनुरूप है। अप्रैल महीने में कर संग्रह के आंकड़े भी उत्साह बढ़ाने वाले हैं। इससे भविष्य की कठिनाइयों से निपटने में सरकार को थोड़ी आसानी हो सकती है साथ ही साथ उसे राजकोषीय घाटा को नियंत्रण में रखने में भी आसानी होगी।  

मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कहा कि महंगाई के दबाव की वजह से वर्ष 2022 में नॉमिनल जीडीपी 11.2 प्रतिशत रह सकती है, जो बजट अनुमान से अधिक है। ज्यादा नॉमिनल जीडीपी से राजकोषीय घाटे को काबू में रखने में मदद मिलती है। सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक महंगाई दर पर काबू करने के लिए संयुक्त रूप से तालमेल के साथ काम कर रहे हैं और इस साल मानसून के भी अच्छे रहने के आसार हैं। इससे उम्मीद है कि महंगाई के मोर्चे पर जल्द ही सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं।

31 मई को एनएसओ द्वारा पेश किये गए अनंतिम राजकोषीय घाटे के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2021-22 में अनंतिम शुद्ध कर राजस्व प्राप्तियां 18.2 लाख करोड़ रुपये थीं। वित्त वर्ष 2023 के लिए शुद्ध कर राजस्व लक्ष्य 19.3 लाख करोड़ रुपये रखा गया है, जो वित्त वर्ष 2022 के अनंतिम अनुमान से 6 प्रतिशत ज्यादा है। इन अनुमानों से यह पता चलता है राजस्व प्राप्तियां के मोर्चे पर स्थिति में अभी और भी बेहतरी आ सकती है।   

अप्रैल महीने में भारत की खुदरा महंगाई 8 साल के शीर्ष स्तर 7.8 प्रतिशत के स्तर पर थी, जबकि थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित महंगाई दर अप्रैल महीने में 2011-12 की मौजूदा सीरीज में सर्वाधिक तेज 15.08 प्रतिशत के स्तर पर थी। ज्यादा महंगाई दर से परिवारों की खपत कम होगी और कर संग्रह में तेजी आयेगी, क्योंकि मौजूदा माहौल में नॉमिनल जीडीपी उच्च स्तर पर बनी रहेगी हालाँकि, रूस-यूक्रेन युद्ध का असर वित्त वर्ष 2023 के बजट में तय व्यय पर पड़ेगा, क्योंकि इसकी वजह से सब्सिडी पर दबाव बढ़ेगा 

भारत की सेवा गतिविधियों में मई महीने में पिछले 11 साल की तुलना में सबसे तेज विस्तार हुआ है, क्योंकि अर्थव्यवस्था फिर से खुलने के कारण मांग में बहाली और नए कारोबार में वृद्धि से सेवा क्षेत्र को मजबूती मिली है। एसऐंडपी ग्लोबल इंडिया सर्विसेज पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) मई महीने में बढ़कर 58.9 पर पहुंच गया, जो अप्रैल में 57.9 था। यह अप्रैल 2011 के बाद का उच्चतम स्तर है। गौरतलब है कि 50 से ऊपर की संख्या विस्तार और इससे कम संकुचन को दर्शाती है।

एसबीआई रिसर्च रिपोर्ट ने वित्त वर्ष 2022-23 में भारतीय अर्थव्यवस्था के वृद्धि अनुमान में 0.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है साथ ही साथ इसके 7.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है एसबीआई के समूह मुख्य अर्थशास्त्री सौम्यकांति घोष ने कहा कि उच्च मुद्रास्फीति और उसके बाद दरों में संभावित वृद्धि को देखते हुए वित्त वर्ष 2022-23 में वास्तविक जीडीपी वृद्धि 11.1 लाख करोड़ रुपये की होगी 

पड़ताल से साफ़ है जब विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं  कोरोना महामारी के दुष्परिणामों से बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रही हैं, तब भारत न सिर्फ कोरोना महामारी के नकारात्मक प्रभावों से बाहर आ गया है, बल्कि दहाई अंक की जीडीपी वृद्धि दर को पाने की दिशा में भी तेजी से अग्रसर है

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)