राष्ट्र-निर्माण के आगे निजी सुख-दुःख का नहीं होता महत्व

राजनीति संभावनाओं का खेल है। राजनीति में न तो कोई किसी का स्थाई मित्र होता है, न शत्रु। यदि इस सिद्धांत को सत्य मान भी लिया जाय तो भी यह कहना अनुचित न होगा कि हर दल के अपने कुछ सिद्धांत, अपनी-अपनी मूल प्रकृति, अपने-अपने मतदाता-वर्ग होते हैं और ये सब एक दिन में नहीं बनता, बल्कि वर्षों में उनकी अपनी एक पहचान और छवि बनती है। अगर विशिष्ट चाल-चरित्र-चेहरे की बात बेमानी भी हो तो भी जनता के बीच उनकी एक ख़ास छवि होती है, जिसके प्रति वे सजग रहते हैं और उसे बनाए-बचाए रखने की हर संभव कोशिश करते हैं। भारतीय कम्यूनिस्ट एवं भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर भारत के अधिकांश राजनीतिक दल कांग्रेस की ही उपज या उसके विस्तार हैं। और यह विस्तार नीतिगत कम, व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षाओं या केंद्रीय उपेक्षाओं का परिणाम अधिक रहा है। ऐसे में सत्ता-प्राप्ति के लिए इनकी जोड़-तोड़-तिकड़में समझ में आती हैं, क्योंकि सत्ता में रहे बिना इनके अस्तित्व पर ही संकट के बादल मंडराने लगते हैं। बहरहाल, अखिल भारतीय स्वरूप होने के बावज़ूद कांग्रेस आज अप्रासंगिक हो चली है। इसके कारणों की पड़ताल का न यहाँ अवकाश है, न वह अभिप्रेत ही है। पर, कम्युनिस्ट पार्टी का इस प्रकार रातों-रात अपनी विचारधारा से पल्ला छुड़ाना उसकी वैचारिक निष्ठा कलई खोलने वाला है। यद्यपि उनका इतिहास विचारधारा से परे जाकर सत्ता के लिए समझौते करने का रहा है, पर पहले वह किंतु-परंतु के आवरण में होता था। इस बार उसने उस आवरण का भी परित्याग कर दिया है। ऐसा लगता है कि जैसे अराष्ट्रीय और अराजक विचारों को प्रश्रय-प्रोत्साहन देना ही उसकी एकमात्र नीति-नियति है।

युद्ध या निर्माण-काल में निजी सुख-दुःख नहीं देखे जाते! भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए यदि वर्तमान में थोड़ा कष्ट सहना पड़े तो सह लेना चाहिए। पीड़ा में ही आनंद पलता है। प्रसव-पीड़ा को सहे बिना मनुष्य तक का निर्माण संभव नहीं, यह तो एक राष्ट्र के नव-निर्माण का सवाल है। यदि आज हिम्मत नहीं दिखाई गई तो करोड़ों भारतीयों की उम्मीद हार जाएगी, यह केवल देश की उम्मीदों का सवाल है। यदि आज हिम्मत हार दी गई तो भविष्य में कोई भी द्रष्टा, निर्माण का कोई भी प्रणेता-साहसिक पहल और प्रयोग की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा। परन्तु, सुखद बात यह है कि यह देश हिम्मत के साथ मुश्किलों को पार करते हुए निर्माण के नव अध्याय की रचना की तरफ अग्रसर है।

छद्म धर्मनिरपेक्षता के नाम पर भाजपा विरोध का दंभ भरने वाले दलों का मुखौटा आज उतरने लगा है। आज तक जिस भारतीय जनता पार्टी को व्यापारियों की पार्टी बता-बताकर रात दिन कोसा जाता था, आज उसी पार्टी के विरुद्ध वे सभी लामबंद हो रहे हैं, जो अपने-आप को किसानों-कामगारों का रहनुमा बताते नहीं थकते थे। मोदी सरकार के नोटबंदी के फ़ैसले पर जिस प्रकार धुर विरोधियों की गलबहियाँ सामने आ रही है, इससे उनका असली चेहरा जनता के सामने है। यह सिद्ध हो चुका है कि न तो इन्हें धर्मनिरपेक्षता से कोई लेना-देना है, न किसानों-मजदूरों-आम लोगों के सरोकार से, न सुरसा रूपी भ्रष्टाचार से। नोटबंदी को ऐसे राजनेता भी जानें किस आधार पर तुग़लकी फ़रमान बता रहे हैं, जिनकी पार्टी में उनके अलावा किसी और को बोलने का अधिकार तक नहीं। आज वे लोग लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं, जिनकी पार्टी उनसे प्रारंभ होकर उन्हीं पर ख़त्म हो जाती है। बहुत उदारता दिखाते हैं तो उसमें परिचितों-परिवारजनों को थोड़े-बहुत अधिकार दयापूर्वक दे दिए जाते हैं।

आज भारत की राजनीति द्विध्रुवीय हो गई है। एक तरफ राष्ट्र का भविष्य तो दूसरी तरफ सत्ता-सुख; एक तरफ निजी तात्कालिक हित तो दूसरी तरफ दूरगामी राष्ट्रीय हित; एक तरफ धन का दुरूपयोग कर येन-केन-प्रकारेण सत्ता शिखर तक पहुँचने का वही पुराना खेल तो दूसरी तरफ नैतिकता-शुचिता के नए युग का शुभारंभ; एक तरफ ईमानदारी से जीने का संकल्प तो दूसरी तरफ़ बेईमानी का अंतहीन दुष्चक्र; एक तरफ़ उम्मीद का सुनहला सूरज तो दूसरी तरफ़ नाउम्मीदी की काली-अंधेरी रात; अब ये तय तो जनता ही करेगी कि इस निर्णायक और ऐतिहासिक क्षण में उसे निर्माण का हिस्सा बनना है या विध्वंस का; उसे कंधे मज़बूत कर, एड़ी टिका उम्मीद के उस सुनहले सूरज को धरती पर उतार लाना है या भावी पीढ़ी के लिए भयानक-काली-अंधेरी रात छोड़ जाना है। जनता निश्चित तौर पर निर्माण का ही हिस्सा बनेगी।

याद रखिए युद्ध या निर्माण-काल में निजी सुख-दुःख नहीं देखे जाते! भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए यदि वर्तमान में थोड़ा कष्ट सहना पड़े तो सह लेना चाहिए। पीड़ा में ही आनंद पलता है। प्रसव-पीड़ा को सहे बिना मनुष्य तक का निर्माण संभव नहीं, यह तो एक राष्ट्र के नव-निर्माण का सवाल है। यदि आज हिम्मत नहीं दिखाई गई तो करोड़ों भारतीयों की उम्मीद हार जाएगी, यह केवल देश की उम्मीदों का सवाल है। यदि आज हिम्मत हार दी गई तो भविष्य में कोई भी द्रष्टा, निर्माण का कोई भी प्रणेता-साहसिक पहल और प्रयोग की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा। परन्तु, सुखद बात यह है कि यह देश हिम्मत के साथ मुश्किलों को पार करते हुए निर्माण के नव अध्याय की रचना की तरफ अग्रसर है।