गाय के ‘अर्थशास्त्र’ को समझने की जरूरत

मोदी सरकार ने 28 जुलाई 2014 में देसी गायों के संरक्षण और नस्‍लों के सुधार हेतु “राष्‍ट्रीय गोकुल मिशन” की शुरूआत की। इसके तहत देसी नस्‍लों के आनुवंशिक सुधार और पशुओं की संख्‍या में बढ़ोत्‍तरी हेतु नस्‍ल सुधार कार्यक्रम शुरू किया गया है। परियोजना के तहत गिर, साहीवाल, राठी, देवनी, थारपारकर जैसी देसी नस्‍ल के पशुओं के आनुवंशिक स्‍वरूप को उन्‍नत किया जा रहा है। इसके अलावा दक्षिण भारत में पाई जाने वाली पुंगनूर, विचूर, कृष्‍णा घाटी की गायों का आनुवंशिक संरक्षण किया जा रहा है। इस मिशन के तहत देसी गायो के शुद्ध नस्‍ल को बचाने के लिए “गोकुल ग्राम” की स्‍थापना की जा रही है।

भारतीय संदर्भ में देखें तो गाय को लेकर जितना विवाद होता है उतना शायद ही किसी पशु को लेकर होता हो। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि गाय के संरक्षण-संवर्द्धन को लेकर जो प्रावधान किए जाते हैं, उन्‍हें देश के तथाकथित सेकुलर खेमे द्वारा धार्मिक और वोट बैंक के नजरिए से देखा जाने लगता है। इस विवाद का सबसे दुखद पहलू यह है कि हम  गाय के आर्थिक महत्‍व को भुला देते हैं। जिस दिन हम गाय के अर्थशास्‍त्र को समझ लेंगे उस दिन देश में गाय को लेकर शायद ही कोई विवाद होगा।

गौरतलब है कि ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था में गाय से मिलने वाले पांच उत्‍पाद-दूध, दही, घी, गोबर और मूत्र अर्थात पंचगव्‍य समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में जीवन के अभिन्‍न अंग रहे हैं। खाने-पीने, औषधि, खेती-बाड़ी आदि में पंचगव्‍य के इस्‍तेमाल की सुदीर्घ परंपरा रही है। गाय के दूध और घी को तो अमृत समान माना जाता है। दही व छाछ जठरांत्र (गैस्‍टोएन्‍टराइटिस) संबंधी अनियमितता में लाभदायक है। आयुर्वेद में भी इसकी अनुशंसा की जाती है।

सांकेतिक चित्र

गुणों की खान होने के बावजूद गाय को लेकर इतना विवाद है तो इसकी वजह है गाय की धार्मिक पहचान।  इसी का नतीजा है कि पाकिस्‍तान के पंजाब प्रांत में तो दुधारू गाय का कत्‍ल पूरी तरह प्रतिबंधित है, लेकिन भारत में ऐसे कदम उठाने पर धर्मनिरपेक्षता खतरे में पड़ जाती है। वक्‍त की मांग है कि हम गाय को धार्मिक नजरिए के बजाए उसके औषधीय महत्‍व को देखें। गौरतलब है कि देसी गायों के दूध में ए-2 नामक औषधीय तत्‍व पाया जाता है जो मोटापा, आर्थराइटिस, टाइप-1 डाइबिटीज व मानसिक तनाव को रोकता है। इसी को देखते हुए विदेशों में भारतीय नस्‍ल की गायों का संरक्षण किया जा रहा है।

आस्‍ट्रेलिया और न्‍यूजीलैंड में तो ए-2 कार्पोरेशन नामक संस्‍था बनाकर भारतीय नस्‍ल की गायों के दूध को ऊंची कीमत पर बेचा जाता है। दूसरी ओर हॉलस्‍टीन व जर्सी जैसी विदेशी नस्‍ल की गायों में यह प्रोटीन नहीं पाया जाता है। इन गायों के दूध में जो प्रोटीन पाया जाता है वह म्यूटेशन प्रक्रिया से एमिनो एसिड हिस्‍टडिन में बदल जाता है। इसे ए-1 कहा जाता है। यह तत्‍व डाइबिटीज, कैंसर, ब्‍लड प्रेसर जैसी बीमारियों के लिए प्रेरक का काम करता है।

गाय के अर्थशास्‍त्र को नष्‍ट करने में देसी नस्‍लों के साथ विदेशी नस्‍लों की क्रॉस ब्रीडिंग की अहम भूमिका रही है।  क्रॉस ब्रीडिंग का नतीजा गाय की देसी नस्‍लों और पंचगव्‍य की उपेक्षा के रूप में सामने आया। इससे आगे चलकर खेती में खतरनाक कृषि रसायनों का इस्‍तेमाल बढ़ा जिससे समूची खाद्य श्रृंखला प्रदूषित हुई। गौरतलब है कि मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए पंचगव्‍य का इस्‍तेमाल प्राचीनकाल से किया जा रहा है। साहीवाल गाय के दूध में मिलने वाले तीन तत्‍व पौधों में फंगस विकास को नियंत्रित करके पौधों के विकास को बढ़ावा देते हैं।

परंपरागत रूप से यह भी मान्‍यता है कि गाय के गोबर में एंटीसेप्‍टिक, एंटीरेडियोएक्‍टिव और एंटीथर्मल तत्‍व पाए जाते हैं। गाय के गोबर से बने उपले में यह खासियत होती है कि कि इसके जलाने से तापमान एक सीमा से अधिक नहीं बढ़ पाता है। इससे खाद्य पदार्थों के पोषक तत्‍व सुरक्षित बचे रहते हैं। गोबर का इस्‍तेमाल रसोई व गाड़ियों के ईंधन में भी उपयोगी है।

औषधीय गुणों वाले गाय के दूध को महत्‍वहीन बनाने में श्‍वेत क्रांति ने खलनायक की भूमिका निभाई। आपरेशन फ्लड के दौरान यूरोपीय नस्‍ल की गायों को आयात कर उनके साथ देसी नस्‍लों की क्रॉस ब्रीडिंग का नतीजा यह हुआ कि देसी नस्‍लें लुप्‍तप्राय होती जा रही हैं। दूसरी ओर भारतीय मूल की  गिर गाय ब्राजील में दूध उत्‍पादन का रिकार्ड बना रही है।

उल्‍लेखनीय है कि वर्षों पहले ब्राजील ने मांस उत्‍पादन को बढ़ावा देने के लिए भारत से 3000 गिर गायों का आयात किया था लेकिन जब उसने इनके दूध के औषधीय महत्‍व को देखा तो वह दूध उत्‍पादन के लिए इन्‍हें बढ़ावा देने लगा। इसी तरह आस्‍ट्रेलिया में भारतीय नस्‍ल के ब्राह्मी बैलों का डंका बज रहा है। क्‍या इसे दुर्भाग्‍य नहीं कहेंगे कि भारतीय नस्‍ल की गायों का उन्‍नत दूध विदेशी पी रहे हैं और हम विदेशी नस्‍लों का जहरीला दूध।  

सांकेतिक चित्र

आज भारत दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्‍पादक है लेकिन देसी गायों की उपेक्षा के चलते वह टाइप ए-2 दूध के उत्‍पादन में पिछड़ता जा रहा है। यदि भारत देसी नस्‍लों का संरक्षण-संवर्द्धन करे तो न केवल किसानों को आमदनी का बड़ा जरिया मिल जाएगा बल्‍कि देश में तेजी से फैल रही डायबिटीज व कैंसर जैसी बीमारियों को रोकने में भी कामयाबी मिलेगी। लेकिन यह काम केवल गोवध पर प्रतिबंध लगाने से नहीं होगा। इसके लिए हमें देसी गायों के संरक्षण व विकास के साथ-साथ चारागाह विकास, दूध, दही आदि की खरीद-बिक्री, भंडारण, प्रसंस्‍करण का बुनियादी ढांचा बनाना होगा। जहां-जहां इस प्रकार की सुविधाएं हैं वहां-वहां गाय को लेकर शायद ही कभी विवाद होता हो जैसे उत्‍तर गुजरात जहां अमूल मॉडल के तहत दूध उत्‍पादन से जुड़ी सभी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं।

देसी गायों की लंबे अरसे की उपेक्षा के बाद मोदी सरकार ने 28 जुलाई 2014 में देसी गायों के संरक्षण और नस्‍लों के सुधार हेतु “राष्‍ट्रीय गोकुल मिशन” की शुरूआत की। इसके तहत देसी नस्‍लों के आनुवंशिक सुधार और पशुओं की संख्‍या में बढ़ोत्‍तरी हेतु नस्‍ल सुधार कार्यक्रम शुरू किया गया है। परियोजना के तहत गिर, साहीवाल, राठी, देवनी, थारपारकर जैसी देसी नस्‍ल के पशुओं के आनुवंशिक स्‍वरूप को उन्‍नत किया जा रहा है। इसके अलावा दक्षिण भारत में पाई जाने वाली पुंगनूर, विचूर, कृष्‍णा घाटी की गायों का आनुवंशिक संरक्षण किया जा रहा है। इस मिशन के तहत देसी गायो के शुद्ध नस्‍ल को बचाने के लिए “गोकुल ग्राम” की स्‍थापना की जा रही है।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)