ईवीएम के बहाने कपिल मिश्रा के आरोपों से ध्यान भटकाने में लगे केजरीवाल

चार सौ  करोड़ के टैंकर घोटाले में एक्शन के लिए कपिल मिश्रा ने पत्र लिखा तो कथित और स्वघोषित ईमानदार केजरीवाल ने उनका मंत्री पद ही छीन लिया। सत्ता पाने के बाद केजरीवाल ने जिस तरह से रंग बदला है, वो चकित करने वाला है। हवाला के पैसे से दिल्ली में 200 बीघा जमीन खरीदने वाले सत्येंद्र जैन मंत्री बने रहते हैं। वो भी तब जब उनके खिलाफ आयकर विभाग और सीबीआई की जांच चल रही है। वहीं टैंकर घोटाले पर आवाज उठाने पर जल मंत्री कपिल मिश्रा की कुर्सी छीन ली जाती है।

क्या दिल्ली विधानसभा में हुए ई वी एम के बचकाने और फर्जी तमाशे से अरविंद केजरीवाल कपिल मिश्रा की लगाई कालिख अपने चेहरे से साफ कर लेंगे? कतई नहीं।  उन पर दो करोड़ रुपये की घूस लेने के आरोप उनके अपने साथी रहे कपिल मिश्रा लगा रहे हैं। केजरीवाल के चंपू मंत्री और साथी, जिनमें मनीष सिसोदिया और संजय सिंह शामिल हैं, कह रहे हैं कि कपिल मिश्रा के आरोपों पर जवाब देना भी समय बर्बाद करना है। क्यों? आखिर ये सब कपिल मिश्र को क्यों खारिज करने लगे हैं? मिश्रा तो केजरीवाल के लंबे समय से आंदोलन के साथी रहे हैं। दो साल से उनकी कैबिनेट के सदस्य थे।

साभार : गूगल

चार सौ  करोड़ के टैंकर घोटाले में एक्शन के लिए कपिल मिश्रा ने पत्र लिखा तो कथित और स्वघोषित ईमानदार केजरीवाल ने उनका मंत्री पद ही छीन लिया। सत्ता पाने के बाद केजरीवाल ने जिस तरह से रंग बदला है, वो चकित करने वाला है। हवाला के पैसे से दिल्ली में 200 बीघा जमीन खरीदने वाले सत्येंद्र जैन मंत्री बने रहते हैं। वो भी तब जब उनके खिलाफ आयकर विभाग और सीबीआई की जांच चल रही है। वहीं टैंकर घोटाले पर आवाज उठाने पर जल मंत्री कपिल मिश्रा की कुर्सी छीन ली जाती है।

रहा ईवीएम तो एकबार के लिए मान लेते हैं कि केजरीवाल की बात सही है। ईवीएम हैक हो सकती है। तो अब केजरीवाल को सबसे पहले दिल्ली विधानसभा भंग कर फिर से चुनाव की मांग करनी चाहिए। पारदर्शिता की पहल खुद की जीत साबित करने से करेंगे तो आवाज असरदार होगी। ऐसा करेंगे तभी यूपी में, भाजपा और पंजाब में कांग्रेस को भी जीत साबित करने का दबाव बढ़ेगा।

राहुल से बड़ा लतीफा

केजरीवाल ने कहा कि विधायक सौरभ ईवीएम पर बड़ा खुलासा करेंगे। खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाला हाल रहा। विधायक ईवीएम नहीं बल्कि डिब्बा लेकर विधानसभा पहुंचे और खूब बजाया बाजा। दरअसल अरविंद केजरीवाल जल्दी ही राहुल गांधी से बड़ा लतीफ़ा घोषित होने वाले हैं। वे एक के बाद एक नाटक करने में माहिर हो चुके हैं। बकौल उनके, मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी से लेकर जिलों के डीएम, एसपी और बूथ के पीठासीन अधिकारी तक सभी मोदी लहर में भाजपाई हो गए हैं।

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अमित शाह के इशारे पर ईवीएम में रातोंरात हजारों मदर बोर्ड उन्होंने बदलवा डाले। फिर हर बूथ पर एक-एक एजेंट को सीक्रेट कोड बांटा गया। यही वजह है कि भाजपा लगातार जीत रही है। ऐसा केजरीवाल व उनकी पार्टी का मानना है। कह सकते हैं कि आए थे वैकल्पिक राजनीति करने और कर बैठे वैकल्पिक भ्रष्टाचार का सूत्रपात।

केजरीवाल अपने को करप्शन के खिलाफ लड़ी जा रही जंग का अगुवा मानते और कहा करते थे। रामलीला मैदान में वे देश के तिरंगे का इस्तेमाल अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए करते थे। और अब जब उनके ऊपर करप्शन के आरोप लग रहे तो वे जवाब देने के लिए तैयार नहीं है। वे ईवीएम में गड़बड़ी की बातें कर रहे हैं। यानी वे कालेधन के खिलाफ लड़ाई में आहुति देने के बजाय मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए हैं।

नोटबंदी का विरोध

याद कीजिए नोटबंदी के दिनों को। निश्चित रूप से नोटबंदी के बाद देश की आम जनता को अपने पुराने नोटों को बैकों में जमा करवाने से लेकर नए नोट हासिल करने में दिक्कतें आईं। जनता को लंबी-लंबी लाइनों में लगना पड़ा। पर किसी ने ये नहीं कहा कि मोदी सरकार का नोटबंदी का फैसला गलत है। भारी कष्ट उठाने के बाद भी देश कहता रहा है कि अब कालेधन से मुक्ति देश को मिलनी ही चाहिए।  पर ममता बनर्जी के साथ मिलकर  अरविंद केजरीवाल ने जनता को भड़काने की हरसंभव कोशिशें की। पर उन्हें सफलता नहीं मिली। और तो और उन्हें हूट ही किया गया।  जिस ममता बैनर्जी के अनेक मंत्री करप्शन के आरोपों को झेल रहे हैं, उसी ममता बनर्जी के साथ मिलकर वे करप्शन की लड़ाई लड़ रहे हैं।

साभार : गूगल

दरअसल केजरीवाल देश के उस छोटे से समूह का अंग हैं, जो “चिर असंतुष्ट” है। इस समूह का एक सूत्रीय एजेंडा देश की खाना और देश विरोधी अभियान चलाना है। इस तबके का मुंबई धमाकों के गुनाहगार याकूब मेमन को फांसी होने पर सुप्रीम कोर्ट से भरोसा उठ जाता है। मेमन को फांसी की सजा से राहत नहीं मिली तो इनका राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से भी भरोसा उठ गया।

इनका  पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों के ठिकानों को नष्ट करने वाले सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत नहीं मिलने पर सरकार और सेना से भरोसा उठ जाता है, और अब इन तत्वों के रहनुमाई करने वाले जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में धूल में मिल गए तो इनका ईवीएम मशीनों पर से भी भरोसा उठ गया। अरविंद केजरीवाल इन देश विरोधी तत्वों के साथ हैं। दरअसल केजरीवाल ने देश का दिल तोड़ा है। उनसे उम्मीद थी कि वे एक साफ-सुथरी राजनीति के अगुवा बनकर उभरेंगे। लेकिन अब तो उन पर ही सीधे घूस खाने के आरोप लगने लगे हैं, जिससे ध्यान भटकाने के लिए वे अब ईवीएम की नौटंकी कर देश के लोकतंत्र और संविधान का मज़ाक बनाने से भी बाज़ नहीं आ रहे।

(लेखक यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)