जम्मू-कश्मीर : फिर से महकने लगीं केसर की क्‍यारियां

जुलाई 2020 में कश्‍मीरी केसर को भौगोलिक पहचान (जीआई) टैग मिल गया। अब सरकार ने घाटी के केसर ब्रांड को वैश्‍विक पहचान दिलाने का बीड़ा उठाया है। जीआई टैग मिलने के बाद कश्‍मीरी केसर को संयुक्‍त अरब अमीरात (यूएई) में उतारा गया। अब इसे दुनिया भर के बाजारों में पहुंचाने की योजना है ताकि भारतीय केसर ईरानी केसर को टक्‍कर दे सके।

आजादी के बाद कश्‍मीर समस्‍या सुलझने के बजाए उलझती गई क्‍योंकि कांग्रेसी सरकारें जमीनी समस्‍याओं को दूर करने के बजाए अलगाववादी नेताओं की मान-मनौवल में जुटी रहीं। इसका नतीजा यह हुआ कि कश्‍मीर की खेती-किसानी से लेकर दस्‍तकारी तक बदहाली की भेंट चढ़ गए। केसर की खेती से लेकर पश्‍मीना शॉल तक इसके सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे।

अनुच्छेद-370 की समाप्‍ति, सीमा पर चुस्‍त निगरानी, अलगाववादी नेताओं और हुर्रियत कांफ्रेंस जैसे संगठनों पर नकेल, हथियारों-नशीली दवाओं की तस्‍करी पर अंकुश जैसे उपायों से कश्‍मीर में आतंकवाद की कमर टूट गई। 2020 में पिछले दस सालों के दौरान सबसे कम (217) आतंकवादी चिन्‍हित किए गए।

सांकेतिक चित्र (साभार : JK Media)

यह सब मोदी सरकार द्वारा कश्‍मीर की जमीनी समस्‍याओं को दूर करने के लिए उठाए गए सकारात्‍मक कदमों का नतीजा है। यही कारण है कि आम कश्‍मीरी आतंकवादियों-अलगाववादियों के बहकावे में न आकर देश की मुख्‍यधारा से जुड़ रहे हैं। इसे केसर की खेती के उदाहरण से समझा जा सकता है।

कश्‍मीरी केसर कई औषधीय फायदों के साथ एक मसाले के रूप में विश्‍व स्‍तर पर प्रसिद्ध है। यह जम्‍मू कश्‍मीर की समृद्ध सांस्‍कृतिक विरासत का भी प्रतिनिधित्‍व करता है। केसर की खेती मुख्‍यत: चार जिलों – बड़गाम, पुलवामा, श्रीनगर व किश्‍तवाड़ में होती है। दक्षिण कश्मीर में पांपोर को तो केसर की क्यारी कहा जाता है।

दुर्भाग्‍यवश कांग्रेसी सरकारों ने केसर की खेती को बढ़ावा देने के बुनियादी उपाय नहीं किए। इसका नतीजा यह हुआ कि जहां 40 साल पहले घाटी में 5707 हेक्‍टेयर जमीन पर केसर की खेती होती थी वहीं 2010 में यह घटकर 3715 हेक्‍टेयर तक सिमट गई। इस दौरान केसर की पैदावार भी 3.13 किलोग्राम प्रति हेक्‍टेयर से घटकर 1.88 किलोग्राम रह गई।

यूपीए सरकार ने 2010 में केसर उत्‍पादकों के लिए राष्‍ट्रीय केसर मिशन शुरू किया था लेकिन जमीनी स्‍तर पर ठोस उपाय न करने से उत्‍पादन में खास बढ़ोत्‍तरी नहीं हुई। प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में केसर क्रांति लाने का आह्वान किया था।

साभार : RapidLeaks

इसके तहत राष्‍ट्रीय केसर मिशन की खामियां दूर की गईं। वर्ष 2015 में केसर उत्‍पादन और निर्यात प्राधिकरण का गठन किया गया। 3715 हेक्‍टेयर जमीन केसर मिशन के तहत चिन्‍हित की गई। इस जमीन को उपजाऊ बनाने के साथ-साथ किसानों को उन्‍नत बीज और तकनीक जानकारी मुहैया कराई गई।

मोदी सरकार के प्रयासों का नतीजा यह हुआ कि बंजर हो चुकी केसर की क्‍यारियां फिर से खुशबू बिखेरने लगीं। केसर की प्रति हेक्‍टेयर पैदावार 1.88 किलोग्राम से बढ़कर 4.92 किलोग्राम तक पहुंच गई। केसर के रकबे में भी बढ़ोत्‍तरी हो रही है। इतना ही नहीं मोदी सरकार केसर की खेती उन इलाकों में भी फैला रही है जहां की भौगोलिक दशाएं कश्‍मीर घाटी जैसी हैं। इसके तहत सिक्‍किम के यांग यांग में केसर की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।

जुलाई 2020 में कश्‍मीरी केसर को भौगोलिक पहचान (जीआई) टैग मिल गया। अब सरकार ने घाटी के केसर ब्रांड को वैश्‍विक पहचान दिलाने का बीड़ा उठाया है। जीआई टैग मिलने के बाद कश्‍मीरी केसर को संयुक्‍त अरब अमीरात (यूएई) में उतारा गया। अब इसे दुनिया भर के बाजारों में पहुंचाने की योजना है ताकि भारतीय केसर ईरानी केसर को टक्‍कर दे सके।

इतना ही नहीं धारा 370 हटने के बाद कश्‍मीरी केसर भी उग्रवादियों के टैक्‍स चंगुल से मुक्‍त हो चुका है। 1990 के बाद पहली बार देश भर के कारोबारी कश्‍मीर घाटी जाकर सीधे उत्‍पादकों के साथ सौदे कर रहे हैं।

आतंकवादियों-अलगाववादियों की वसूली खत्‍म होने और बिचौलियों के न रहने से केसर उत्‍पादकों को अपनी उपज की वाजिब कीमत मिलने लगी है। समग्रत: मोदी सरकार के प्रयासों से बंजर बन चुकी केसर की क्‍यारियां फिर से खुशबू बिखेरने लगी हैं।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)