जम्‍मू-कश्‍मीर में संगठित लूट पर रोक लगाने में कामयाब रही मोदी सरकार

जम्‍मू, कश्‍मीर और लद्दाख में विकास की लौ चमकने लगी है। सरकार हर हाथ को रोजगार देने के लिए प्रत्‍येक जिले में यूथ सेंटर स्‍थापित कर रही है। यहां युवाओं को स्‍थानीय रोजगार और जरूरत के अनुसार कौशल विकास प्रशिक्षण दिया जाएगा। मोदी सरकार की इन कोशिशों का ही नतीजा है कि स्‍वायत्‍त, स्‍वशासन व जिहाद का झुनझुना अब किसी को नहीं भा रहा है।

जम्‍मू-कश्‍मीर में अनुच्छेद-370 और 35 ए खत्‍म होने के एक साल बाद भी कांग्रेस, पीपुल्‍स डेमोक्रेटिक पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस, वामपंथी दल अनुच्छेद 370 और 35 ए को फिर से बहाल करने की मांग कर रहे हैं तो इसका कारण जम्‍मू-कश्‍मीर का कल्‍याण नहीं है।

दरअसल ये नेता जम्‍मू, कश्‍मीर और लद्दाख में मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई विकास योजनाओं और उसमें आम जनता की भागीदारी से घबड़ाए हुए हैं। उन्‍हें डर है कि यदि एक बार जम्‍मू, कश्‍मीर और लद्दाख में विकास की बयार बह गई तब उनकी वोट बैंक की राजनीति सदा के लिए खत्‍म हो जाएगी। 

उल्‍लेखनीय है कि केंद्र सरकार विकासीय गतिविधियों से जम्‍मू, कश्‍मीर और लद्दाख को देश की मुख्‍य धारा से जोड़ रही है। भ्रष्‍टाचार और नेताओं की संगठित लूट पर अंकुश लग गया है। सरकार नैफेड के जरिए सेब की खरीद कर रही है।

युवाओं में सरकारी नौकरियों, सेना व अर्द्ध सैनिक बलों में भर्ती का क्रेज बढ़ रहा है। इसी का नतीजा है कि आतंकवाद, अलगाववाद अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। आतंकवादियों को न तो कश्‍मीरियों का समर्थन मिल रहा है और न ही स्‍थानीय लड़ाके। 

साभार : Vertha Bharathi

जम्‍मू–कश्‍मीर में कांग्रेस, पीपुल्‍स डेमोक्रेटिक पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस के द्वारा पिछले 70 वर्षों से की जा रही संगठित लूट को रोशनी एक्‍ट से समझा जा सकता है। जम्‍मू–कश्‍मीर में सरकारी भूमि पर कब्‍जा करने वालों को जमीन का मालिकाना हक देने के लिए 2001 में फारूख अब्‍दुल्‍ला सरकार ने जम्‍मू कश्‍मीर राज्‍य भूमि अधिनियम बनाया था। इसे रोशनी एक्‍ट नाम दिया गया। 

उस समय कहा गया था कि इससे एकत्र होने वाली धनराशि को बिजली परियोजनाओं में लगाया जाएगा। सरकार ने इस अधिनियम को किसानों के हित में बताया था। लेकिन व्‍यावहारिक धरातल पर इसका जमकर दुरूपयोग किया गया। इस अधिनियम की आड़ में नेताओं और उनके परिजनों, सत्‍ता पक्ष से जुड़े नौकरशाहों के नाम पर हजारों कैनाल जमीन दर्ज कराने के मामले सामने आए। 

मूल रोशनी एक्‍ट में प्रावधान था कि 1999 से पहले कब्‍जे वाली जमीन के मालिकाना हक दिए जाएंगे लेकिन वर्ष 2004 में रोशनी एक्‍ट में संशोधन कर 1999 की शर्त को हटा दिया गया। नया प्रावधान यह किया गया कि जिसके कब्‍जे में सरकारी जमीन है वह योजना के तहत आवेदन कर सकता है। इससे सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण की बाढ़ आ गई। 

आगे चलकर इस एक्‍ट के तहत हिंदू बहुल क्षेत्रों की सरकारी जमीनें मुस्‍लिम समुदाय को कौड़ियों के दाम पर बांटी गईं। कई आलोचकों ने इसे लैंड जिहाद नाम दिया। नवंबर 2006 में सरकार ने अनुमान लगाया था कि 20 लाख कैनाल से भी ज्‍यादा जमीन पर लोगों का अवैध कब्‍जा था। 

रोशनी एक्‍ट की ओट में हो रहे जमीन घोटाले को देखते हुए 29 नवंबर 2018 के जम्‍मू कश्‍मीर के तत्‍कालीन गवर्नर सत्‍यपाल मलिक ने इस एक्‍ट को निरस्‍त कर दिया। बाद में जम्‍मू-कश्‍मीर उच्‍च न्‍यायालय ने इस मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया। सीबीआई जांच रिपोर्ट आने के तीन सप्‍ताह बाद 31.10.2020 को प्रशासन ने रोशनी एक्‍ट के तहत बांटी गई जमीनों के आवंटन को अमान्‍य घोषित कर दिया। 

अब रोशनी एक्‍ट के तहत बांटी गई सभी भूमि छह माह के भीतर पुन: रिकवर हो जाएगी। न्‍यायालय ने सरकार से कहा है कि इस योजना का लाभ लेने वाले सभी लाभाथियों के नाम भी सार्वजनिक किए जाएं।

समग्रत: जम्‍मू, कश्‍मीर और लद्दाख में विकास की लौ चमकने लगी है। सरकार हर हाथ को रोजगार देने के लिए प्रत्‍येक जिले में यूथ सेंटर स्‍थापित कर रही है। यहां युवाओं को स्‍थानीय रोजगार और जरूरत के अनुसार कौशल विकास प्रशिक्षण दिया जाएगा। मोदी सरकार की इन कोशिशों का ही नतीजा है कि स्‍वायत्‍त, स्‍वशासन व जिहाद का झुनझुना अब किसी को नहीं भा रहा है।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)