कांग्रेस सरकारों की उपेक्षा से पिछड़े पूर्वोत्तर राज्यों को सँवारने में जुटी मोदी सरकार

दुर्भाग्‍यवश आजाद भारत की कांग्रेसी सरकारों द्वारा न तो पूर्वोत्‍तर राज्‍यों के आर्थिक विकास के लिए ठोस जमीनी प्रयास किये गए और न ही उनके सामरिक महत्‍व की पहचान करने पर ही ध्यान दिया गया। इस कड़वी हकीकत के बावजूद कि महज तेरह किलोमीटर चौड़ी पट्टी (चिकन नेक) से भारतीय राष्‍ट्र-राज्‍य से जुड़ने वाला यह क्षेत्र हाथ से गया तो कश्‍मीर से भी बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा, हमने पूर्वोत्‍तर को वह अहमियत नहीं दी जिसका वह हकदार रहा है। इसी उपेक्षा का नतीजा है कि पूर्वोत्‍तर में मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों का नितांत अभाव है। लेकिन, अच्छी बात यह है कि मोदी सरकार द्वारा सत्ता में आने के बाद से पूर्वोत्तर के विकास की तरफ ध्यान दिया जा रहा है

शिलांग के स्‍वयंसेवी संगठन “भारत सेवाश्रम संघ” के शताब्‍दी समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सभी संसाधनों के बावजूद पूर्वोत्‍तर के पिछड़ने का कोई कारण नहीं है। देखा जाए तो पूर्वोत्‍तर के पिछड़ेपन के लिए कांग्रेस की “बांटो और राज करो” वाली नीति जिम्‍मेदार रही है। वोट बैंक की राजनीति को अमलीजामा पहनाने के लिए कांग्रेस ने यहां के कबीलों को आपस में लड़ाकर अपना हित साधा। इसी का नतीजा है कि सड़क, रेल, पर्यटन, रोजगार आदि में यह क्षेत्र शेष भारत से पिछड़ता चला गया।

अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्वोत्‍तर की इन कमियों को दूर करने में जुटे हैं। 1990 के दशक में भारत ने जिस लुक ईस्‍ट नीति अपनाया था, उसे मोदी सरकार ने एक्‍ट ईस्‍ट में बदल  दिया। संयोग से यह वर्ष 2017 भारत-आसियान वार्ता भागीदारी का 25वां साल है। इससे भी एक्‍ट ईस्‍ट नीति का महत्‍व बढ़ जाता है। गौरतलब है कि आसियान देशों के साथ कारोबार बढ़ाने के लिए भारत सरकार इन देशों के साथ वरीयता व्‍यापार, मुक्‍त व्‍यापार जैसे कई समझौते कर चुकी है और कई समझौते पूरा होने की प्रक्रिया में हैं। जहां अत्‍याधुनिक तकनीक के अलावा बड़े बाजार के चलते भारत के लिए आसियान देशों का विशेष महत्‍व है, वहीं आसियान देशों को भी अपने खाद्य तेल, समुद्री व तकनीकी उत्‍पादों के लिए भारत के विशाल बाजार की जरूरत है। सबसे बड़ी बात है कि दोनों पक्षों में सांस्‍कृतिक एकता की सुदीर्घ परंपरा है।

भारत-आसियान संबंधों का सबसे महत्‍वपूर्ण पहलू पूर्वी भारत विशेषकर पूर्वोत्‍तर राज्‍यों के आर्थिक विकास से जुड़ा है। जहां तक पूर्वोत्‍तर राज्‍यों के पिछड़ेपन का सवाल है, तो इसमें एक बड़ी वजह इस इलाके का चारों तरफ से जमीन से घिरा (स्‍थलाबद्ध) होना है। 1947 में भारत विभाजन से पहले तक पूर्वोत्‍तर का समूचा आर्थिक तंत्र चटगांव बंदरगाह से जुड़ा हुआ था, लेकिन पूर्वी पाकिस्‍तान (अब बांग्‍लादेश) के निर्माण ने इस क्षेत्र को वीराने में छोड़ दिया।

पूर्वोत्तर राज्य (साभार : गूगल)

अब पूर्वोत्‍तर को कोलकाता बंदरगाह का ही सहारा बचता है जो कि बहुत दूर है और व्‍यस्‍त भी। यही कारण है कि पूर्वोत्‍तर के फल-फूल कोलकाता बंदरगाह पहुंचने से पहले ही सड़ जाते हैं। बंदरगाह से अत्‍यधिक दूरी, कमजोर रेल-सड़क नेटवर्क तथा बिजली की कमी के साथ-साथ अलगाववादी गतिविधियां और भू-स्‍खलन भी फलों को सड़ाते हैं। फलों की भांति पूर्वोत्‍तर के बेजोड़ हस्‍तशिल्‍प भी बाजार पहुंच के अभाव में दम तोड़ता जा रहा है।

यद्यपि पूर्वोत्‍तर राज्‍यों के विकास के लिए 1971 में नार्थ ईस्‍टर्न काउंसिल, 1995 में नार्थ ईस्‍टर्न डेवलपमेंट फाइनेंस कारपोरेशन लिमिटेड और 2001 में उत्‍तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय (DoNER) का गठन किया गया। लेकिन इन कदमों के सीमित प्रभाव पड़े। पिछले दो दशकों में शेष भारत में आर्थिक सुधारों की लहर का भी यहां काफी कम असर महसूस किया गया है। यही कारण है कि पूर्वोत्‍तर की युवा पीढ़ी को देश के महानगरों में पलायन के लिए मजबूर होना पड़ता है। फिर यहां वैध व्‍यापार की तुलना में अवैध व्‍यापार कई गुना ज्‍यादा होता है। इसीलिए यह अनुभव किया गया कि पूर्वोत्‍तर में समृद्धि की बहार तभी आएगी जब भारत सरकार यहां के उत्‍पादों के लिए दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में निकासी मार्ग ढूंढ़ ले। इसीलिए भारत सरकार स्‍थलीय संपर्क मजबूत बना रही है। भारत-म्‍यांमार-थाइलैंड सुपर हाईवे इसी का नतीजा है।

साभार : गूगल

विश्‍व बैंक और एशियाई विकास बैंक के सहयोग से बन रहे इस हाईवे के कुछ हिस्‍सों पर आवाजाही शुरू हो चुकी है जिससे पूर्वोत्‍तर राज्‍यों को दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से जोड़ने के साथ-साथ व्‍यापार, निवेश, रोजगार जैसे कई फायदे मिलने लगे हैं। आगे चलकर इस हाईवे से म्‍यांमार में थाईलैंड के सहयोग से विकसित डायई स्‍पेशल इकोनामिक जोन तक भारत की सीधी पहुंच बनेगी। अभी तक भारत और थाइलैंड के बीच व्‍यापार थाइलैंड की खाड़ी में स्‍थित लेम चाबांग बंदरगाह से होता है, जिसमें हफ्ते भर का समय लगता है; लेकिन डायई बंदरगाह से यह दूरी कुछ दिनों में सिमट जाएगी।

आगे चलकर यह कॉरिडोर नार्थ-साउथ कोरिडोर से जुड़ जाएगा जो दक्षिण चीन को म्‍यांमार, थाइलैंड व मलेशिया होते हुए सिंगापुर से जोड़ता है। इस प्रकार भारत से चले कंटेनर के सिंगापुर तक पहुंचने की राह खुलने वाली है। आसियान देशों ने 2025 तक एक आर्थिक समुदाय बनाने का लक्ष्‍य निर्धारित किया है। भले ही आसियान आर्थिक समुदाय की अर्थव्‍यवस्‍था का आकार यूरोपीय संघ जितना बड़ा नहीं है, लेकिन इस इलाके को हासिल जनांकिकीय लाभ को देखें तो यह 21वीं सदी को एशिया की सदी बनाने में एक अहम पड़ाव साबित होगा।

दुर्भाग्‍यवश आजाद भारत की कांग्रेसी सरकारों द्वारा न तो पूर्वोत्‍तर राज्‍यों के आर्थिक विकास के लिए ठोस जमीनी प्रयास किये गए और न ही उनके सामरिक महत्‍व की पहचान करने पर ही ध्यान दिया गया। इस कड़वी हकीकत के बावजूद कि महज तेरह किलोमीटर चौड़ी पट्टी (चिकन नेक) से भारतीय राष्‍ट्र-राज्‍य से जुड़ने वाला यह क्षेत्र हाथ से गया तो कश्‍मीर से भी बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा, हमने पूर्वोत्‍तर को वह अहमियत नहीं दी जिसका वह हकदार रहा है। इसी उपेक्षा का नतीजा है कि पूर्वोत्‍तर में मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों का नितांत अभाव है।

उच्‍च शिक्षा के दूसरे पाठ्यक्रमों की मौजूदगी भी बहुत कम है। रेलवे व सड़क नेटवर्क के मामले में भी यह इलाका पिछड़ा हुआ है। हथकरघा व कुछेक परंपरागत उद्योगों को छोड़ दिया जाए तो यहां रोजगार के साधनों की भारी कमी बनी हुई है। यही कारण है कि शिक्षा-दीक्षा और रोजी-रोटी के लिए पूर्वोत्‍तर के लाखों लोग देश के महानगरों में प्रवास किए हुए हैं। इस कमी को पूर्वोत्‍तर के समृद्ध हस्‍तशिल्‍प को पुनर्जीवित व प्रोत्‍साहित कर और उनके लिए दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशियाई देशों में बाजार ढूंढ़ कर किया जा सकता है। 

चूंकि पूर्वोत्‍तर सांस्‍कृतिक-आर्थिक दृष्‍टि से आसियान देशों के साथ गहराई से जुड़ा रहा है। इसलिए पूर्वोत्‍तर की बदहाली तभी दूर होगी जब इन राज्‍यों का आसियान देशों के साथ एकाकार हो। यह कार्य आसियान देशों के साथ मजबूत स्‍थलीय संपर्क से ही संभव है। इससे पूर्वोत्‍तर के राज्‍यों में समृद्धि की जो फसल लहलहाएगी उससे न सिर्फ अलगाववाद, आतंकवाद का खात्‍मा होगा बल्‍कि शेष भारत भी “चिकन नेक सिंड्रोम” से बाहर निकलेगा। जाति, छुआछूत व दहेज जैसी सामाजिक बुराइयों से मुक्‍त और महिला-पुरुष समानता वाले पूर्वोत्‍तर से शेष भारत बहुत कुछ सीख सकता है। लेकिन यह पुर्ण्‍य कार्य तभी होगा जब हम पूर्वोत्‍तर को शेष भारत और आसियान देशों के साथ एकाकार करें। सुखद है कि मौजूदा मोदी सरकार इस दिशा में प्रयास कर रही है।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)