दवा उद्योग के मामले में देश को आत्‍मनिर्भर बना रही मोदी सरकार

भारत में दवाओं की कच्‍ची सामग्री का कम उत्‍पादन होता है क्‍योंकि इसके लिए नवाचार (इन्‍नोवशन) की जरूरत होती है और मुनाफा बेहद कम होता है। दूसरी ओर चीन ने सस्‍ती बिजली, सस्‍ते श्रम के साथ-साथ सरकारी सब्‍सिडी दी जिससे चीनी कंपनियां कच्‍ची सामग्री (एपीआई) की अग्रणी उत्‍पादक बन गईं। अब वही सुविधाएं मोदी सरकार भारतीय दवा निर्माताओं को मुहैया करा रही है ताकि दवा उत्‍पादन के लिए भारत किसी देश पर निर्भर न रहे।

इसे देश का दुर्भाग्‍य ही कहा जाएगा कि यहां सेहत का सवाल शायद ही कभी अहम मुद्दा बनता हो। चुनाव लोक सभा के हों या विधान सभाओं के, सेहत के सवाल पर ज्यादातर राजनीतिक दल चुप्‍पी साधे रहते हैं। हां, इस दौरान वे मुफ्त बिजली-पानी, कर्ज माफी जैसे वोट बटोरू वायदों का पांसा फेंकने में नहीं चूकते हैं।

सस्‍ता व सर्वसुलभ इलाज उनकी प्राथमिकता सूची में दूर-दूर तक नजर नहीं आता है; जबकि देश के विकास व नागरिकों की खुशहाली का यह सबसे अहम मानदंड है। फिर मलेरिया, टीबी, ऊंची बाल व मातृत्‍व मृत्‍यु दर जैसी परंपरागत चुनौतियों के बीच भारत अब डाइबिटीज, हृदय रोग, अवसाद जैसी गैर संक्रामक बीमारियों का गढ बनता जा रहा है। इसके बावजूद सेहत के सवाल पर चुप्‍पी हैरान करती है।

सांकेतिक चित्र

एक ओर शहरीकरण, प्रदूषण, बदलती जीवन शैली के कारण नई-नवेली बीमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य ढांचा जर्जर होता जा रहा है। निजी क्षेत्र ने इस मौके का भरपूर फायदा उठाया जिसका नतीजा है कि महानगरों से लेकर छोटे-छोटे कस्‍बों  तक में निजी अस्‍पतालों का जाल बिछ चुका है। लेकिन समस्‍या यह है कि निजी क्षेत्र के लिए चिकित्‍सा सेवा नहीं आमदनी का जरिया है। यही कारण है कि महंगा इलाज देश के आम आदमी को गरीबी के बाड़े में धकेल रहा है।

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के एक सर्वेक्षण के मुताबिक भारत में लोग अपने कुल घरेलू खर्च का औसतन 10 फीसदी स्‍वास्‍थ्‍य पर खर्च करते हैं। खुद सरकारी सर्वेक्षणों में यह तथ्‍य उभकर आता है कि हर साल साढ़े छह करोड़ भारतीय महंगे इलाज के चलते गरीबी के बाड़े में धकेल दिए जाते हैं।

इस स्थिति को देखते हुए मोदी सरकार ने दुनिया की सबसे बड़ी हेल्‍थ केयर योजना (आयुष्‍मान भारत) शुरू की है। इस योजना का लक्ष्‍य विशेष रूप से निम्‍न और निम्‍न मध्‍यम वर्ग के परिवारों को महंगे मेडिकल बिल से छुटकारा दिलाना है। इसके दायरे में गरीब, वंचित ग्रामीण परिवार और शहरी श्रमिकों की पेशेवर श्रेणियों को रखा गया है।

नवीनतम सामाजिक-आर्थिक जातीय जनगणना (एसईसीसी) के हिसाब से गांवों के ऐसे 8.03 करोड़ और शहरों के 2.33 करोड़ परिवारों को शामिल किया गया है। मोदी सरकार की इस महत्‍वाकांक्षी योजना के तहत प्रत्‍येक परिवार को सालाना पांच लाख रूपये की कवरेज दी जाएगी और वे सरकारी या निजी अस्‍पताल में कैशलेस इलाज करा सकेंगे।

साभार : वन इंडिया

गरीबों को महंगे इलाज से मुक्‍ति दिलाने के साथ-साथ मोदी सरकार भारतीय दवा उद्योग का पूरी तरह भारतीयकरण कर रही है। गौरतलब है कि जो भारत दुनिया के 50 से अधिक देशों को दवा आपूर्ति करता है उसके आधे से अधिक दवा निर्माता अपने कच्‍चे माल के लिए किसी अन्‍य देश पर निर्भर हैं जो कि खतरनाक स्‍थिति है। भारतीय दवा उद्योग का सालाना कारोबार एक लाख करोड़ रूपये का है। यह उद्योग अपना 84 फीसदी कच्‍चा माल अर्थात एक्‍टिव फार्मास्‍यूटिकल इंग्रेडिएंट (एपीआई) आयात करता है। इसमें 60 फीसदी एपीआई चीन और बाकी यूरोपीय देशों से आयात किया जाता है।

भ्रष्‍टाचार में आकंठ डूबी पिछली कांग्रेसी सरकारों ने एपीआई के घरेलू उत्‍पादन को बढ़ावा देने की ओर कभी ध्‍यान ही नहीं दिया। 1990 के दशक में शुरू हुई गठबंधन राजनीति के दौर में प्रायः सरकारों की पूरी ऊर्जा सरकार को बाहर-भीतर से समर्थन दे रहे दलों को खुश करने में ही खर्च हो जाती थी। इसीलिए इन सरकारों ने दवाओं की कच्‍ची सामग्री के क्षेत्र में आत्‍मनिर्भरता प्राप्‍त करने की ओर कदम ही नहीं उठाया। इसका नतीजा यह हुआ कि दवा उद्योग में इस्‍तेमाल होने वाली कच्‍ची सामग्री का आयात तेजी से बढ़ा। वर्ष 2000 में जहां 27 फीसदी कच्ची सामग्री का आयात होता था वहीं अब यह बढ़कर 84 फीसदी तक पहुंच गया।  

मोदी सरकार मेक इन इंडिया पहल के तहत एपीआई के घरेलू उत्‍पादन को बढ़ावा दे रही है ताकि भारतीय दवा उद्योग की विदेशों विशेषकर चीन पर निर्भरता घटाई जा सके। इसके लिए प्रधानमंत्री कार्यालय ने नीति आयोग के साथ-साथ स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय और वाणिज्‍य मंत्रालय से कहा है कि देश में एपीआई उत्‍पादन को बढ़ावा देने की व्‍यापक योजना बनायी जाए।

भारत में दवाओं की कच्‍ची सामग्री का कम उत्‍पादन होता है क्‍योंकि इसके लिए नवाचार (इन्‍नोवशन) की जरूरत होती है और मुनाफा बेहद कम होता है। दूसरी ओर चीन ने सस्‍ती बिजली, सस्‍ते श्रम के साथ-साथ सरकारी सब्‍सिडी दी जिससे चीनी कंपनियां कच्‍ची सामग्री (एपीआई) की अग्रणी उत्‍पादक बन गईं। अब वही सुविधाएं मोदी सरकार भारतीय दवा निर्माताओं को मुहैया करा रही है ताकि दवा उत्‍पादन के लिए भारत किसी देश पर निर्भर न रहे।

मोदी सरकार सस्‍ती बिजली-पानी, कर्ज माफी जैसे लोकलुभावन और वोट बटोरू योजनाओं से आगे बढ़कर गरीबों को सशक्‍त बनाने के साथ-साथ देश को हर तरह से आत्‍मनिर्भर बना रही है। विरोधियों के मोदी भय की असली वजह यही है कि अब वोट बैंक की राजनीति के दिन लदने वाले हैं।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)