मोदी सरकार के प्रयासों से तैयार हो रहा ग्रामीण कृषि बाजारों का नेटवर्क

मोदी सरकार लंबे अरसे से उपेक्षित ग्रामीण कृषि बाजारों को आधुनिक बनाकर किसानों को एक ऐसा प्‍लेटफार्म मुहैया करा रही है जहां वे अपनी उपज बेचने के लिए आजाद होंगे। इससे बिचौलियों की तगड़ी लॉबी और उन्‍हें प्रश्रय देने वाले राजनेताओं की दुकान बंद होगी और किसानों की खुशहाली का एक नया मार्ग प्रशस्‍त होगा।

हमारे देश में खेती-किसानी की बदहाली की एक बड़ी वजह अविकसित कृषि बाजार की रही है। रिजर्व बैंक कई बार कह चुका है कि कृषि बाजार की प्रभावी उपस्‍थिति ग्रामीण विकास और गरीबी उन्‍मूलन का सशक्‍त हथियार है। इसके बावजूद जाति व धर्म की राजनीति करने वाली सरकारों ने इस ओर कभी ध्‍यान ही नहीं दिया। नई आर्थिक नीतियों के दौर में देश में गठबंधन सरकारों को बोलबाला रहा। इसका नतीजा यह हुआ कि उदारीकरण का रथ हाईवे से आगे बढ़कर गांवों की पगडंडी पर उतरा ही नहीं।

यही कारण है कि सड़क, सूचना-प्रौद्योगिकी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं गांवों तक बहुत धीमी रफ्तार से पहुँचीं। इससे कृषि बाजार को आधुनिक बनाने के प्रयासों को गहरा झटका लगा। इतना ही नहीं, ग्रामीण उपभोक्‍ता और वाणिज्‍यिक बाजार के बीच संपर्क की जो पहली कड़ी (हाट) थी, उसे समय के अनुसार बदला नहीं गया। गौरतलब है कि ये हाट ग्रामीण परिवेश की सबसे जमीनी विपणन प्रणाली का हिस्‍सा रहे हैं। जमीनी स्‍तर के फुटकर व्‍यापारियों के इस नेटवर्क को जहां पूर्वी भारत में हाट कहते हैं, वहीं दक्षिण भारत में इसे संदे कहा जाता है।

ग्रामीण बाजारों को आधुनिक न बनाए जाने का नतीजा यह हुआ कि किसानों को उनकी उपज की वाजिब कीमत नहीं मिली जिससे खेती की बदहाली बढ़ी। इस दौरान सरकारों ने पंचायती राज के तहत सत्‍ता के विकेंद्रीकरण का नारा लगाया, लेकिन जमीनी सच्‍चाई यह रही कि गांवों में मूलभूत सुविधाओं की उपलब्‍धता की ओर ध्‍यान नहीं दिया गया। नतीजा यह हुआ कि गांवों से पलायन में तेजी आई।

बांटों और राज कारो की नीति में माहिर जातिवादी सरकारों ने गांवों में जाति के जहर की खेती शुरू कर दी ताकि उनकी गद्दी सुरक्षित बनी रहे। इसके फलस्‍वरूप प्रबुद्ध वर्ग ने गांवों से किनारा करना ही बेहतर समझा। गौरतलब है कि जिस दौर में दक्षिण भारत के पुणे, बंगलोर, हैदराबाद, चेन्‍नई में सूचना प्रौद्योगिकी का बीजवपन हो रहा था, उस दौर में उत्‍तर भारत के शहर आरक्षण और जातिवादी राजनीति की आग में झुलस रहे थे।

सांकेतिक चित्र (साभार : परफॉर्म इंडिया)

लंबे अरसे की उपेक्षा के बाद अब मोदी सरकार ने ग्रामीण कृषि बाजार (ग्राम) को विकसित करने का बीड़ा उठाया है। सरकार 22,000 ग्रामीण हाटों के बुनियादी ढांचों में सुधार कर उनके आधुनिकीकरण करने की योजना पर काम कर रही है। यह कार्य अगले दो-तीन साल में पूरा किया जाएगा।

योजना के पहले चरण में मनरेगा के माध्‍यम से मार्च 2019 तक 1878 ग्रामीण हाटों को आधुनिकीकरण और उनके बुनियादी ढांचा विकास के लिए चुना गया है। इसमें सबसे अधिक 564 हाट आंध्र प्रदेश के हैं। उसके बाद गुजरात के 188 हाट, राजस्‍थान के 186 हाट, तमिलनाडु के 182 और 176 हाट तेलंगाना के चुने गए हैं।

योजना के तहत मौजूदा ग्रामीण हाटों में उचित ट्रेडिंग प्‍लेटफार्म, बिजली, पानी, पुरूषों व महिलाओं के लिए अलग-अलग शौचालय, ट्रकों और वाहनों के लिए पार्किंग सुविधा, माल चढ़ाने और उतारने की सुविधा, छोटे भंडार घर, कार्यालय ब्‍लॉक आदि की सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। इन बाजारों की मुख्‍य विशेषता यह होगी कि ये केंद्रीय अनुदान पाने के मामले में कृषि उत्‍पाद विपणन समिति (एपीएमसी) अधिनियम के दायरे से बाहर होंगे।

गौरतलब है कि एपीएमसी कानून के तहत किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए बिचौलियों (आढ़तियों) का सहारा लेना पड़ता है। इस कानून के चलते न तो नए व्‍यापारियों को आसानी से लाइसेंस मिलते हैं और न ही किसी नई मंडी का निर्माण हो पाता है। इसी का नतीजा है कि हर गली-कूचे में मोबाईल व बाइक शोरूम वाले देश में औसतन 435 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में एक मंडी है। इन मंडियों को भी अलग-अलग लाइसेंस की जरूरत होती है और उनकी फीस भी अलग-अलग होती है। यहां उत्‍पादों को बाजार के हिसाब से और बेहतर बनाने संबंधी सुविधाओं की भारी कमी है।

समग्रत: मोदी सरकार लंबे अरसे से उपेक्षित ग्रामीण कृषि बाजारों को आधुनिक बनाकर किसानों को एक ऐसा प्‍लेटफार्म मुहैया करा रही है जहां वे अपनी उपज बेचने के लिए आजाद होंगे। इससे बिचौलियों की तगड़ी लॉबी और उन्‍हें प्रश्रय देने वाले राजनेताओं की दुकान बंद होगी और किसानों की खुशहाली का एक नया मार्ग प्रशस्‍त होगा।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)