जम्मू-कश्‍मीर का शेष भारत से सही अर्थों में एकीकरण करने में कामयाब रही मोदी सरकार

अनुच्छेद-370 खत्म होने के एक लगभग एक साल पूरे होने पर आज हम देख सकते हैं कि सुरक्षा बलों की मुस्‍तैदी से न केवल आतंकवाद-अलगाववाद में कमी आई है, बल्‍कि आम जनता को राहत मिली है। अब कश्‍मीर के विकास का पैसा बिचौलियों की जेब में न जाकर सीधे कश्‍मीरियों के हित में खर्च हो रहा है। 23 गुटों के अलगाववादी धड़े हुर्रियत कांफ्रेंस के हड़ताली कैलेंडर और धरना प्रदर्शन के आह्वान बेअसर होने लगे हैं। जम्मू-कश्मीर में बदलाव और विकास की बयार चल पड़ी है।

अपनी स्‍थापना से ही भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस ने तुष्टिकरण और मुस्‍लिम सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया जिसका नतीजा देश विभाजन के रूप में सामने आया। विभाजन के बाद आम धारणा बनी थी कि मुस्‍लिम सांप्रदायिकता से हमेशा के लिए मुक्‍ति मिल जाएगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्‍योंकि कांग्रेसी सरकारों ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तुष्टिकरण की नीतियों को जारी रखा।

धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुस्‍लिम बहुल रियासतों हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्‍मीर पर तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का नरम रवैया बना रहा। तत्‍कालीन गृहमंत्री सरदार वल्‍लभ भाई पटेल ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए हैदराबाद और जूनागढ़ की समस्‍या का स्‍थायी उपाय कर दिया लेकिन कश्‍मीर मामले में नेहरू के अत्‍यधिक दखल के कारण वे कश्‍मीर का भारतीय संघ के साथ पूरी तरह एकीकरण नहीं कर पाए।

साभार : One India

भारतीय जनसंघ और तत्‍कालीन विधि मंत्री डाक्‍टर भीमराव आंबेडकर के विरोध के बावजूद नेहरू की मंशा से  संविधान के अनुच्छेद-370 और राष्‍ट्रपति की आदेश संख्‍या 35ए के तहत कश्‍मीर के लिए ऐसी अनूठी व्‍यवस्‍थाएं की गईं जो अलगाववाद का कारण बनीं।

उदाहरण के लिए कश्‍मीर के लिए अलग ध्‍वज, अलग संविधान, दोहरी नागरिकता जैसे प्रावधान किए गए। कई प्रावधान तो ऐसे थे जो सीधे-सीधे अलगाववाद को बढ़ावा देते थे जैसे शेष भारत के नागरिकों को कश्‍मीर की नागरिकता नहीं मिलती लेकिन पाकिस्‍तानियों को मिल जाती थी।

इसी तरह शेष भारतीय कश्‍मीर में जमीन-जायदाद नहीं खरीद सकते थे, लेकिन पाकिस्‍तानी खरीद सकते थे। जम्‍मू–कश्‍मीर में लाखों ऐसे शरणार्थी रह रहे थे जो भारत के नागरिक तो थे, लेकिन कश्‍मीर के नागरिक नहीं थे।

इन्‍हीं कारणों से अनुच्छेद-370 अलगाववाद के लिए उर्वर जमीन मुहैया कराता रहा। इसका नतीजा यह हुआ कि कश्‍मीर शेष भारत से अभिन्‍न रूप से जुड़ नहीं पाया। दूसरे, कांग्रेसी सरकारों ने कश्‍मीर की आम जनता से जुड़ने के बजाए मध्‍यस्‍थों का सहारा लिया और उन्‍हें भरपूर मदद दी गई।

इन मध्‍यस्‍थों ने केंद्र सरकार की कमजोरी का जमकार फायदा उठाया और आम कश्‍मीरियों में अलगाववादी भावनाएं भरीं। नतीजा यह हुआ कि कश्‍मीर में भारत विरोधी भावनाएं बढ़ने लगीं। 1989 से ही राज्‍य पाकिस्‍तान प्रायोजित आतंकवाद-अलगाववाद की चपेट में आ गया और गैर मुस्‍लिमों को कश्‍मीर घाटी से खदेड़ दिया गया।

चूंकि अनुच्छेद-370 आतंकवाद की जड़ था, इसलिए जैसे-जैसे कश्‍मीर में आतंकवाद-अलगाववाद बढ़ा वैसे-वैसे इसे हटाने की मांग जोर पकड़ने लगी। लेकिन मुस्‍लिम वोट बैंक खोने के डर से भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर किसी भी पार्टी ने इसका समर्थन नहीं किया। भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे को अपने एजेंडे में रखा और धीरे-धीरे जनमत बनाना शुरू किया।

2014 के आम चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने के बाद से ही मोदी सरकार अनुच्छेद-370 खत्‍म करने की कवायद में जुट गई। 2019 में पुनः मिली बंपर जीत से संसद के दोनों सदनों में पार्टी और मजबूत होकर उभरी। फिर 5 अगस्‍त, 2019 को आखिर मोदी सरकार ने संविधान के अनुच्छेद-370 और आदेश 35 ए को समाप्‍त करते हुए राज्‍य को दो भागों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में बांट कर इन्हें केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया। 

साभार : IndiaTV

कांग्रेस और वामपंथियों ने जहां सरकार को गंभीर नतीजे की चुनौती दी तो वहीं वामपंथियों को छोड़कर सभी दलों के प्रगतिशील नेताओं ने इस मुद्दे पर मोदी सरकार का समर्थन किया।  

इस निर्णय के बाद केंद्र सरकार ने सबसे महत्‍वपूर्ण कार्य यह किया कि कांग्रेस द्वारा कश्‍मीर में पोषित बिचौलियों की फौज को नजरबंद करके सीधे जनता से संवाद की नीति अपनाई। इसका नतीजा यह हुआ कि आतंकवाद को मिलने वाले जन समर्थन में कमी आई। 

इसके बाद केंद्र सरकार ने देश के सभी कानूनों व योजनाओं को जम्‍मू-कश्‍मीर और लद्दाख में लागू कर दिया। धार्मिक आधार पर जो भी भेदभाव वाले प्रावधान थे उन्‍हें निरस्‍त करते हुए सभी निवासियों को नागरिकता दी गई। पंचायत चुनाव  सफलतापूर्वक संपन्‍न हुए। 

आज हम देख सकते हैं कि सुरक्षा बलों की मुस्‍तैदी से न केवल आतंकवाद-अलगाववाद में कमी आई है, बल्‍कि आम जनता को राहत मिली है। अब कश्‍मीर के विकास का पैसा बिचौलियों की जेब में न जाकर सीधे कश्‍मीरियों के हित में खर्च हो रहा है। 23 गुटों के अलगाववादी धड़े हुर्रियत कांफ्रेंस के हड़ताली कैलेंडर और धरना प्रदर्शन के आह्वान बेअसर होने लगे हैं। 

केंद्र सरकार ने महत्‍वपूर्ण कदम उठाते हुए जम्‍मू-कश्‍मीर पुनर्गठन आदेश 2020 में धारा 3ए जोड़कर राज्‍य/संघ शासित प्रदेश के निवासी होने की परिभाषा तय कर दी। इन नए डोमिसाइल नियमों के मुताबिक, जो व्‍यक्‍ति जम्‍मू-कश्‍मीर में कम से कम 15 साल रहा है, 10वी या 12वीं की परीक्षा राज्‍य के किसी संस्‍थान से पास किया हो, वह जम्मू-कश्‍मीर का निवासी होगा। 

नए नियमों के तहत पश्‍चिमी पाकिस्‍तान के शरणार्थियों, सफाई कर्मचारियों और दूसरे राज्‍यों में शादी करने वाली महिलाओं के बच्‍चे भी निवास के हकदार होंगे। समग्रत: मोदी सरकार सही अर्थों में जम्‍मू-कश्‍मीर का देश के साथ एकीकरण करने में कामयाब रही और अब प्रदेश के विकास की दिशा में काम  लगातार जारी है।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)