बैंकों के मर्ज को कम करने के लिये मोदी सरकार की सार्थक पहल

पिछले साल अक्टूबर महीने में सरकार ने 2.11 लाख करोड़ रुपये पूंजी डालने के कार्यक्रम की घोषणा की थी। योजना के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पुनर्पूंजीकरण बॉन्डों के माध्यम से 1.35 लाख करोड़ रुपये मिलेंगे, जबकि शेष 58,000 करोड़ रुपये बाजार से पूंजी लेकर निवेश किया जायेगा। 1.35 लाख करोड़ रुपये में से सरकार ने रीकैप बॉन्डों के माध्यम से करीब 71,000 करोड़ रुपये निवेश पहले ही कर दिया है और शेष निवेश वित्त वर्ष के दौरान आने वाले महीनों में किया जायेगा।

केंद्र सरकार ने पंजाब नेशनल बैंक सहित 5 सरकारी बैंकों में 113 अरब रुपये डालने का फैसला किया है, ताकि उन्हें नियामकीय पूंजी की जरूरतें पूरी करने में मदद मिल सके। केंद्र सरकार ने पिछले साल सरकारी बैंकों के पुनर्पूंजीकरण योजना के तहत 2.11 लाख करोड़ रुपये पूंजी डालने का फैसला किया था। यह निवेश उसी योजना का हिस्सा है। चूँकि, बैंक अपने अतिरिक्त टियर-1 बॉन्ड धारकों को ब्याज भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं। इसलिये यह पूंजी उन्हें दी जा रही है। पुनर्पूंजीकरण की व्यवस्था को तीन हिस्सों में बांटा गया है और इस प्रक्रिया को दो सालों में पूरा किया जायेगा।

टियर-1 बॉन्ड मियादी प्रकृति के नहीं हैं, जिसके कारण निवेशकों को इस पर ज्यादा ब्याज देना होता है। बहुत ज्यादा फंसा कर्ज होने और घाटा बढऩे की वजह से बैंकों के लिए अपनी कमाई में से इन बॉन्डों पर ब्याज देना कठिन हो रहा है। साथ ही, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को नियामकीय पूंजी जरूरतों के मानक न पूरा करने के जोखिम से गुजरना पड़ रहा है।

सरकार अपनी इस पहल के तहत पंजाब नेशनल बैंक को 28.2 अरब रुपये, कॉर्पोरेशन बैंक में   25.5 अरब रुपये, इंडियन ओवरसीज बैंक में 21.6 अरब रुपये, आन्ध्रा बैंक में 20.2 अरब रुपये और इलाहाबाद बैंक में 18 अरब रुपये निवेश कर सकती है।इन बैंकों में पूंजी डालने के लिये  सरकार पुनर्पूंजीकरण बॉन्ड जारी करेगी, जिसके लिये नियामकीय मंजूरी मांगी गई है। 

सांकेतिक चित्र (साभार : PerformIndia

पिछले साल अक्टूबर महीने में सरकार ने 2.11 लाख करोड़ रुपये पूंजी डालने के कार्यक्रम की घोषणा की थी। योजना के मुताबिक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पुनर्पूंजीकरण बॉन्डों के माध्यम से 1.35 लाख करोड़ रुपये मिलेंगे, जबकि शेष 58,000 करोड़ रुपये बाजार से पूंजी लेकर निवेश किया जायेगा। 1.35 लाख करोड़ रुपये में से सरकार ने रीकैप बॉन्डों के माध्यम से करीब 71,000 करोड़ रुपये निवेश पहले ही कर दिया है और शेष निवेश वित्त वर्ष के दौरान आने वाले महीनों में किया जायेगा।   

जानकारों के मुताबिक वृहद आर्थिक स्थिति पर सरकार के इस कदम का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। उनके अनुसार पुनर्पूंजीकरण बॉन्ड से सरकारी खजाने पर 9,000 करोड़ रुपये ब्याज का बोझ पड़ेगा, जिससे मुद्रास्फीति पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना लगभग न्यून है।

देश में सभी बैंकों का सकल फंसा हुआ कर्ज 31 दिसंबर, 2017 को 8,40,958 करोड़ रुपये था, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा सरकारी बैंकों का था। एनपीए की इस समस्या से निपटने के लिये सरकार ने दिवालिया कानून को अमलीजामा पहनाया है, जिसकी मदद से छोटे निवेशक, बैंक और जमाकर्ताओं को राहत दिया जायेगा। लेनदार और देनदार के बीच की समस्याओं का समाधान भी इस कानून के द्वारा किया जा सकता है। आमतौर पर छोटे निवेशक, छोटे आपूर्तिकर्ता, छोटे जमाकर्ता एवं इस तरह के अन्य लोगों के अधिकारों की रक्षा नहीं हो पाती है।

दिवालिया कानून के आने से लोग न्याय पाने के प्रति आशान्वित हुए हैं। किसी कंपनी को दिवालिया घोषित करने के लिए निर्णायक प्राधिकरण एक दिवालिया आदेश पारित करता है। चूककर्ता कॉर्पोरेट या कोई वित्तीय लेनदार, जो कर्ज लौटाने में असमर्थ है, वह इसके तहत आवेदन कर सकता है। इसके तहत दिवालिया और दिवालिया हो चुकी कंपनियों की संपत्ति को बेचा जाता है।

फंसे हुए कर्ज की वसूली इतनी आसान नहीं है कि बैंक वाले आनन-फानन में उसकी वसूली कर लेंगे। वसूली के लिये बैंकों को दूसरे तंत्रों की मदद की दरकार होती है, जो अमूमन उन्हें नहीं मिल पाता है। मामले में डीआरटी, लोक अदालत या दिवालिया कानून के अलावा सरकार दूसरे प्रभावकारी विकल्पों की भी तलाश कर रही है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)