नोटबंदी से हुए फायदों की कहानी, इन आंकड़ों की जुबानी

एक अनुमान के मुताबिक नोटबंदी के कारण बैंकिंग प्रणाली में 3 लाख करोड़ रूपये की सस्ती पूँजी पड़ी है और पॉइंट ऑफ सेल से किये जा रहे लेनदेन में 40% की बढ़ोतरी हुई है। इतना ही नहीं दूसरे डिजिटल माध्यमों के प्रयोग में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। नोटबंदी के कारण जाली मुद्रा को भी रोकने में मदद मिली है। इससे नक्सलवाद और आतंकवाद आर्थिक मोर्चे पर  कमजोर हुए हैं। नकदी से लेनदेन में कमी आने के कारण कालेधन एवं भ्रष्टाचार में कमी आई है। मकान व फ्लैट और सोने के खरीद-फरोख्त में कालेधन के इस्तेमाल की वजह से इनकी कीमत नोटबंदी के पहले उछाल पर थी, जिसमें अब नरमी का रुख देखा जा रहा है।

आठ अगस्त को नोटबंदी के 9 महीने हो गये। आज बड़े मूल्य वर्ग के चलन से बाहर की गई मुद्राओं के बदले छापी गई नई मुद्रायेँ 84% चलन में है, जबकि नोटबंदी के पहले बड़े मूल्यवर्ग यथा 1000 और 500 की मुद्रायेँ 86% चलन में थी। फिलवक्त, चलन में मुद्राओं का केवल 5.4% ही बैंकों के पास उपलब्ध है, जबकि नवंबर, 2016 में बैंकों के पास 23.2% मुद्रायेँ उपलब्ध थी। नोटबंदी के तुरंत बाद बैंकों में नकदी की उपलब्धता उसकी निकासी पर बंदिश होने के कारण अधिक थी, लेकिन धीरे-धीरे इसके स्तर में कमी आई। 25 नवंबर, 2016 को बैंकों के पास नकदी की उपलब्धता 23.19% थी, जो 23 जून, 2017 को घटकर 5.4% रह गई, जो यह बताता है कि आम आदमी तक छोटे मूल्यवर्ग की नकदी पहुँच रही है।  

मार्च, 2016 में प्रकाशित रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 500 मूल्यवर्ग के मुद्राओं की संख्या 16 अरब थी और 1000 मूल्यवर्ग के मुद्राओं की संख्या 6 अरब। यह कुल मुद्राओं की संख्या का क्रमशः 48% और 38% था, जबकि 100 मूल्यवर्ग के मुद्राओं की संख्या 16 अरब थी, जो कुल मुद्राओं के मूल्य का 10% था। बचा हुआ 4%, 50 मूल्यवर्ग की मुद्राओं का था,  जिनकी संख्या 53 अरब थी।   

सांकेतिक चित्र

रिजर्व बैंक के वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2017 के लिये 24.55 अरब विविध मूल्यवर्ग की मुद्राओं की छपाई हेतु माँग पत्र जारी किया था, जिसमें 1000 मूल्यवर्ग की मुद्राओं की संख्या 2.2 अरब, 500 मूल्यवर्ग की मुद्राओं की संख्या 5.175 अरब, 100 मूल्यवर्ग की मुद्राओं की संख्या 5.5 अरब, 50 मूल्यवर्ग की मुद्राओं की संख्या 2.125 अरब, 20 मूल्यवर्ग की मुद्राओं की संख्या 6 अरब और 10 मूल्यवर्ग की मुद्राओं की संख्या 3 अरब थी।

ऐसा लगता है कि नोट प्रिंटिंग प्रेस ने इस माँग की आपूर्ति कर दी थी। साथ ही छोटे मूल्यवर्ग की मुद्राओं के बढ़े हुए माँग की भी आपूर्ति कर दी थी। इसलिये, मौजूदा समय में वृद्धिशील 37 अरब छोटे मूल्यवर्ग की मुद्रा जो कुल मुद्रा का 28% है चलन में है, जोकि पूर्व में 14% था। बची हुई मुद्राओं को 500 और 2000 के मूल्यवर्ग में बाँटा जा सकता है जो 72% है। देखा जाये तो नोटबंदी के बाद छोटे मूल्यवर्ग की मुद्राओं की मदद से आमजन की जरूरतों को पूरा किया जा रहा है, जिसका सीधा फायदा नकदी विहीन लेनदेन की संकल्पना को मिल रहा है।   

नोटबंदी के कारण मुद्रा की रफ्तार धीमी पड़ गई है, क्योंकि डिजिटलीकरण के रफ्तार में तेजी आई है। वित्त वर्ष 1960 में मुद्रा की रफ्तार 8.8 थी, जो वित्त वर्ष 2000 तक दो अंकों में बनी रही, लेकिन उसके बाद यह लगातार एक अंक में बनी रही। अगर इसे मासिक आय की रफ्तार से जोड़कर देखा जाये तो वित्त वर्ष 2017 की पहली छमाही में यह एक अंक में थी, लेकिन वित्त वर्ष 2017 की तीसरी तिमाही, जोकि नोटबंदी का दौर था, में यह दो अंकों में चली गई। इसका सीधा अर्थ हुआ कि बैंकिंग प्रणाली में नकदी की उपलब्धता बनी हुई है। नोटबंदी की अवधि में बैंकों में अभूतपूर्व तरीके से नकदी जमा हुई, जो वर्तमान में सरकारी प्रतिभूतियों के रूप में रखी हुई है।  

एक अनुमान के मुताबिक नोटबंदी के कारण बैंकिंग प्रणाली में 3 लाख करोड़ रूपये की सस्ती पूँजी पड़ी है और पॉइंट ऑफ सेल से किये जा रहे लेनदेन में 40% की बढ़ोतरी हुई है। इतना ही नहीं दूसरे डिजिटल माध्यमों के प्रयोग में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। नोटबंदी के कारण जाली मुद्रा को भी रोकने में मदद मिली है। इससे नक्सलवाद और आतंकवाद आर्थिक मोर्चे पर  कमजोर हुए हैं। नकदी से लेनदेन में कमी आने के कारण कालेधन एवं भ्रष्टाचार में कमी आई है। मकान व फ्लैट और सोने के खरीद-फरोख्त में कालेधन के इस्तेमाल की वजह से इनकी कीमत नोटबंदी के पहले उछाल पर थी, जिसमें अब नरमी का रुख देखा जा रहा है।

नकदी के इस्तेमाल में कमी आने से विविध वस्तुओं की मांग में भी कमी आई है, जिससे महँगाई भी रिजर्व बैंक के लक्ष्य से कम है। बहरहाल, बैंकिंग प्रणाली में मौजूद सस्ती पूँजी को स्थायी माना जा सकता है, जिससे कर्ज दर में कटौती की जा सकती है। लोन के सस्ते होने से कोर्पोरेट्स कर्ज लेंगे, जिससे उद्योगिक कार्यकलापों में इजाफा, रोजगार सृजन, विविध उत्पादों की मांग में तेजी, विकास को गति मिलना आदि संभव हो सकेगा। छोटे मूल्यवर्ग की मुद्राओं की किल्लत की वजह से फिलहाल कुछ समस्याएँ हैं, लेकिन 200 मूल्यवर्ग की मुद्रा के बाजार में आने के बाद इनका भी समाधान हो जायेगा।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)