विकास को गति देने वाली मौद्रिक समीक्षा

कोरोना महामारी के बाद भी भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज गति से आगे बढ़ रही है। इसलिए, इस गति को कायम रखने के लिए जरुरी है कि केंद्रीय बैंक अपने नरम रुख को जारी रखे, ताकि ऋण प्रवाह में तेजी बनी रहे, मांग और आपूर्ति की रफ़्तार में तेजी आये और विकास की रफ़्तार को पंख लग सके। सुखद है कि रिजर्व बैंक इसी दिशा में कार्यरत है।      

वैश्विक अनिश्चितता, मुद्रास्फीति की उच्च दर, ओमिक्रोन के घटते प्रभाव और आर्थिक गतिविधियों में आती तेजी को दृष्टिगत करते हुए मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने गत 11 फरवरी को की गई मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दरों को यथावत रखा, ताकि विकास की गति में और भी तेजी लाई जा सके।

यह 10वीं मौद्रिक समीक्षा है, जब रेपो दर को 4.0 प्रतिशत पर और रिवर्स रेपो दर को 3.35 प्रतिशत पर यथावत रखा गया है। रेपो, वह दर होता है, जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक, वाणज्यिकि बैंकों को उनकी फौरी जरूरत के लिए नकदी उपलब्ध कराता है, वहीं, रिवर्स रेपो दर पर केंद्रीय बैंक एक दिन के लिए बैंकों से नकदी लेता है।

मौद्रिक समीक्षा के बाद बॉन्ड प्रतिफल में गिरावट दर्ज की गई। दस वर्षीय सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल 7 आधार अंक घटकर 6.73 प्रतिशत रह गया, क्योंकि बाजार में नकदी का प्रवाह अधिक रहने से बांड बाजार में प्रतिफल को लेकर अनश्चितिता बनी हुई थी। चूँकि, अब नीतिगत दरों को यथावत रखने से नकदी का प्रवाह बाजार में पूर्ववत बना रहेगा, इसलिए, बांड प्रतिफल में गिरावट देखी गई। फ़िलहाल, रिजर्व बैंक की तरलता समायोजन सुविधा के तहत नकदी की औसत शुद्ध दैनिक खपत का स्तर 7.6 लाख करोड़ रुपये है, जो तरलता को सोखने के लिए नाकाफी  है।

साभार : News Nation

रिजर्व बैंक के नरम रुख से सेंसेक्स 460 अंक चढ़कर 58,926 पर बंद हुआ। निफ्टी भी 142 अंकों की बढ़त के साथ 17,606 पर बंद हुआ। निफ्टी वित्तीय सेवा और रियल्टी सूचकांक में एक-एक प्रतिशत की तेजी आई। दरअसल, नीतिगत दरों को यथावत रखने से ऋण प्रवाह में कमी आने की संभावना ख़त्म हो गई और आर्थिक गतिविधियों में तेजी के रुख के बरकरार रहने की संभावना बढ़ गई, जिससे शेयर बाजार ने बढ़त का रुख अख्तियार कर लिया।

इधर, ऋण की मांग में इजाफा होने से सार्वजनिक क्षेत्र के बड़े बैंकों ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए अपने ऋण वृद्धि लक्ष्य को संशोधित करके इसमें वृद्धि की है, क्योंकि ओमिक्रोन का प्रभाव कम होने से कॉरपोरेट क्षेत्र तथा छोटे एवं मध्य उद्यमों की मांग में सुधार हुआ है। नवंबर, 2021 में 7.00 प्रतिशत का स्तर पार करने के बाद दिसंबर के अंत तक अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की ऋण वृद्धि सालाना आधार पर बढ़कर 9.2 प्रतिशत हो गई थी, जबकि पिछले वर्ष 2020 के दिसंबर महीने में वर्ष दर वर्ष के आधार पर इसमें 6.6 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई थी।

एमपीसी के अनुसार आर्थिक गतिविधियों के उच्च संकेतक जैसे, विनिर्माण एवं सेवा पीएमआई, तैयार इस्पात की खपत और ट्रैक्टरों, कारों एवं दोपहिया वाहनों की बिक्री अब भी नरम बनी हुई है, जिनमें तेजी लाने के लिए जरुरी है कि ऋण दर को यथावत रखा जाये या उसमें कटौती की जाये। चूँकि, अभी मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर बनी हुई है, इसलिए, केंद्रीय बैंक ने नीतिगत दरों को कम करने की जगह उन्हें यथावत रखने का विकल्प चुना।

भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है, जबकि आर्थिक समीक्षा में इसके 8.00 से 8.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि का अनुमान लगाया गया है। रिजर्व बैंक द्वारा जीडीपी वृद्धि अनुमान को लेकर सतर्कता बरतने का कारण ओमिक्रोन के कारण नवंबर 2021 के तीसरे सप्ताह से जनवरी 2022 के दौरान आर्थिक गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ना है। वैसे, अभी भी ओमिक्रोन का थोड़ा डर बना हुआ है, जो फरवरी के अंत तक समाप्त हो सकता है।

रिजर्व बैंक ने खुदरा मुद्रास्फीति के चालू वित्त वर्ष में 5.3 प्रतिशत, वित्त वर्ष 2022-23 में 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। इस तरह, चालू तिमाही में मुद्रास्फीति लक्षित सीमा के उच्च स्तर पर बनी रहेगी, जबकि अगले वित्त वर्ष की दूसरी छमाही से इसमें नरमी आयेगी।

हालाँकि, रिजर्व बैंक द्वारा नीतिगत दरों को यथावत रखना थोड़ा अचंभित करने वाला कदम है, क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 90 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई है और अन्य देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा मुद्रास्फीति में तेजी को देखते हुए नीतिगत दरों में इजाफा किया जा रहा है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार भारत में मुद्रास्फीति की प्रकृति अन्य देशों की तुलना में अलग है, इसलिए, मामले में दूसरे देशों से तुलना करना अप्रासंगिक है।

मौद्रिक समीक्षा में ई-रूपी डिजिटल वाउचर की सीमा को 10,000 रुपये से बढ़ाकर एक लाख रुपये करने की घोषणा की गई है, ताकि ऐसे वाउचर के इस्तेमाल की गुंजाइश बढ़े और विभिन्न सरकारी सेवाओं की तेज गति से डिलिवरी लाभार्थियों तक हो सके। रिजर्व बैंक के अनुसार ई-रुपी का इस्तेमाल कई बार किया जा सकता है अर्थात इसका इस्तेमाल तब तक किया जा सकता है जब तक वाउचर की रकम पूरी तरह से खत्म न हो जाए।

साभार : The Economic Times

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) शुरू करने की कोई समय-सीमा अभी बताना मुश्किल है, लेकिन इसका आगाज  बजट में की गई घोषणा के मुताबिक वित्त वर्ष 2023 में हो जायेगा। डिजिटल करेंसी जारी करने के लिए केंद्रीय बैंक को भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम के धारा 2 व 22 में संशोधन करना होगा।

उसके बाद ही केंद्रीय बैंक इसके विकास को लेकर पायलट परियोजना शुरू कर सकता है। श्री दास के अनुसार हड़बड़ी में डिजिटल करेंसी को जारी नहीं किया जा सकता, क्योंकि साइबर सुरक्षा के जोखिम को देखते हुए सतर्कता के विविध पहलूओं पर अभी काम करना बाकी है।

गौरतलब है कि वित्त वर्ष 2022-23 के आम बजट में वित्त मंत्री ने ब्लॉकचेन तकनीक के आधार पर रिजर्व बैंक द्वारा वर्ष 2023 में डिजिटल रुपया जारी करने की बात कही थी, ताकि भारत में डिजिटल अर्थव्यवस्था को मजबूती दी जा सके।

सीबीडीसी की कीमत मौजूदा करेंसी नोट के समान होगी और इसे केंद्रीय बैंक जारी करेगा। डिजिटल रुपया को सामान्य रुपये से बदला भी जा सकेगा, लेकिन उसका स्वरूप डिजिटल होगा। माना जा रहा है कि सीबीडीसी, जमाकर्ताओं के बैंकों में मौजूदा एक्सपोजर को कम करने में सफल होगा और इसके इस्तेमाल में विविध संस्थानों द्वारा की जा रही है सेटलमेंट प्रक्रिया के दौरान होने वाली चूक में भी कमी आयेगी। साथ ही, सीबीडीसी से सीमापार भुगतान की लागत भी कम होगी।

कोरोना महामारी के बाद भी भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज गति से आगे बढ़ रही है। इसलिए, इस गति को कायम रखने के लिए जरुरी है कि केंद्रीय बैंक अपने नरम रुख को जारी रखे, ताकि ऋण प्रवाह में तेजी बनी रहे, मांग और आपूर्ति की रफ़्तार में तेजी आये और विकास की रफ़्तार को पंख लग सके। सुखद है कि रिजर्व बैंक इसी दिशा में कार्यरत है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)