विकास का वाहक बनता एमएसएमई क्षेत्र

एमएसएमई क्षेत्र में लगभग 11 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है। अगर एक परिवार की कुल संख्या 4 मानें तो ये 11 करोड़ लोग 33 करोड़ अन्य लोगों का जीवनयापन कर रहे हैं। एमएसएमई क्षेत्र का कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग एक तिहाई योगदान है। इतना ही नहीं, भारत का लगभग 50 प्रतिशत निर्यात एमएसएमई क्षेत्र के द्वारा किया जा रहा है। फिलवक्त, पूरे भारत में 6.34 करोड़ एमएसएमई इकाई कार्य कर रहे हैं और इनकी संख्या में हाल के सालों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

भारत समेत वैश्विक स्तर पर सूक्ष्म, लघु एवं मझौले उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र रोजगार सृजन का सबसे बड़ा जरिया बना हुआ है। भारत में यह क्षेत्र उपभोक्ता जरुरत के उत्पाद; औद्योगिक, कृषि आधारित एवं हाथ से बने उत्पादों तथा उपकरण, मशीनरी, कल-पुर्जे आदि के निर्माण में अग्रणी है। यह माँग और आपूर्ति बढ़ाने में भी अपनी अहम् भूमिका निभा रहा है। विदेशी मुद्रा को बढ़ाने में भी इसका कोई सानी नहीं है। देखा जाये तो देश के विकास की गति को तेज करने में आज यह क्षेत्र महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

एमएसएमई क्षेत्र में लगभग 11 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है। अगर एक परिवार की कुल संख्या 4 मानें तो ये 11 करोड़ लोग 33 करोड़ अन्य लोगों का जीवनयापन कर रहे हैं। एमएसएमई क्षेत्र का कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग एक तिहाई योगदान है। इतना ही नहीं, भारत का लगभग 50 प्रतिशत निर्यात एमएसएमई क्षेत्र के द्वारा किया जा रहा है। फिलवक्त, पूरे भारत में 6.34 करोड़ एमएसएमई इकाई कार्य कर रहे हैं और इनकी संख्या में हाल के सालों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

साभार : DNA India

वर्ष 2020 में कोरोना महामारी ने एमएसएमई क्षेत्र पर बहुत ही ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव डाला है। पूर्ण तालाबंदी की वजह से अधिकांश प्रवासी मजदूर अपने गाँव चले गये थे। हालाँकि, तालाबंदी को चरणबद्ध तरीके से खोलने के बाद अधिकांश कामगार अपने काम पर लौट आये हैं, बाकी भी धीरे-धीरे लौट रहे हैं।

मौजूदा समय में कीमती पत्थर, हीरे एवं जवाहारत, ज्वेलरी, कपड़े, रेडीमेड कपड़े, तैयार खाद्य उत्पाद, रसायन, चमड़े के उत्पाद, मशीनरी, ऑटोमोबाइल के उपकरण आदि एमएसएमई क्षेत्र द्वारा उत्पादित किये जाते रहे हैं, लेकिन कोरोना संकट की वजह से यह क्षेत्र सुचारू तरीके से काम नहीं कर पा रहा था। हालाँकि, कोरोना काल के मुकाबले अब स्थिति में सुधार हो रहा है।

एमएसएमई क्षेत्र घरेलू जरूरतों को पूरा करने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र है। अस्तु, इस क्षेत्र में बिजली, मजबूत अवसंरचना, पानी, सड़क, स्वस्थ एवं योग्य मानव संसाधन, कारोबार करने के लिये उपयुक्त माहौल, लाल-फीताशाही एवं इंस्पेक्टरराज का खात्मा, पारदर्शी व्यवस्था आदि की व्यवस्था सरकार को तत्काल प्रभाव से करनी होगी। सुविधाएँ एवं आर्थिक मदद मिलने से यह क्षेत्र देश को आत्मनिर्भर बनाने का माध्यम बन सकता है। एमएसएमई क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने के लिये सरकार की तरफ से भी लगातार प्रोत्साहन दिया जा रहा।

यदि भारत का हर युवा अपने परिवार के लिये दो वक्त के भोजन की व्यवस्था करने में सक्षम होगा तो विकास का पहिया स्वतः ही तेज गति से घूमने लगेगा। इस क्षेत्र का विकास कस्बाई और छोटे-छोटे शहरों में भी किया जा सकता है, क्योंकि बहुत सारे कृषि आधारित उद्योगों की स्थापना गाँव के निकटवर्ती शहरों में की जा सकती है।

फिलवक्त देश के कोने-कोने में सड़क और बिजली की उपलब्धता है। जरुरत है विपणन और बाजार की व्यवस्था मजबूती से करने की है। यदि ऐसा संभव होता है तो स्वाभाविक रूप से एमएसएमई क्षेत्र का विकास निकटवर्ती शहरों और गाँवों में किया जा सकता है। इससे दूसरे राज्यों को पलायन करने वाले मजदूरों की संख्या में भारी कमी आयेगी।

एमएसएमई क्षेत्र के सुचारू विकास के लिये इसमें निवेश और कुल कारोबार या टर्नओवर की परिभाषा को सरकार ने वर्ष 2020 में बदला है। आत्मनिर्भर भारत पैकेज से भी इस क्षेत्र को लाभ मिला है। सरकार के निर्देश पर आज एमएसएमई क्षेत्र को बिना संपार्श्विक प्रतिभूति के ऋण दिया जा रहा है। हालाँकि, इसके लिये कारोबारियों को कुछ शर्तों को पूरा करना होता है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नीतिगत दरों में कटौती करने से इस क्षेत्र को कम ब्याज दर पर बैंक ऋण मुहैया करा रहे हैं।

कारोबार करने के लिये आवश्यक शर्तों में भी एमएसएमई क्षेत्र को राहत दी जा रही है। सरकारी खाते में कर से ज्यादा जमा राशि को आयकर विभाग एक तय समय-सीमा के अंदर कारोबारियों को वापस कर रहा है। एमएसएमई क्षेत्र में कारोबार को पारदर्शी बनाने के लिये सरकार ई-बाजार के संचालन को बढ़ावा दे रही है, ताकि बाजार से भ्रष्टाचार ख़त्म हो और आमजन को कोई नुकसान नहीं हो।

वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में सरकार ने एमएसएमई क्षेत्र पर किये जाने वाले सरकारी खर्च को दोगुना कर दिया है। उपभोक्ता सस्ती दर पर जरुरत के सामान खरीद सकें, इसके लिये एंटी डंपिंग डयूटी और उत्पाद शुल्क में कटौती की गई है।

एंटी डंपिंग डयूटी एक टैरिफ है, जो सरकार विदेशी आयात पर लगाती है। यह उन उत्पादों पर लगाया जाता है, जिनकी कीमत उचित बाजार मूल्य से कम होती है। डंपिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जहाँ एक कंपनी कम कीमत पर उत्पाद निर्यात करती है, जबकि उत्पाद शुल्क वस्तुओं के निर्माण पर लगाया जाता है।

कपड़े, चमड़े और हाथ से बने उत्पाद बेचने वाले कारोबारी, जो बड़ी मात्रा में अपने उत्पादों का निर्यात करते हैं, को आयात शुल्क में राहत दी गई है, ताकि वे कच्चे माल का आयात निर्बाध रूप से कर सकें। सरकार के प्रयासों  से इस क्षेत्र के प्रदर्शन में लगातार सुधार हो रहा है साथ ही साथ अर्थव्यवस्था में भी मजबूती आ रही है।

राष्ट्रीय सांखियकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा 26 फरवरी 2021 को जारी चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के आंकड़ों के अनुसार सकल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) में 0.4 प्रतिशत की दर से बढ़ोत्तरी हुई है।

मूडीज ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि का अनुमान पहले के 10.8  प्रतिशत से बढ़ाकर 13.7 प्रतिशत कर दिया है। आर्थिक गतिविधियों के सामान्य होने और कोरोना वायरस का टीका बाजार में आने के बाद लोगों के मन से कोरोना वायरस का डर खत्म होने की वजह से मूडीज ने यह नया अनुमान लगाया है। इतना ही नहीं, मूडीज के अनुसार वित्त वर्ष 2021 में 12 प्रतिशत के दर से वृद्धि हो सकती है। निजी खपत में वृद्धि और विविध उत्पादों की मांग में हो रही वृद्धि के आधार पर मूडीज ने यह अनुमान लगाया है।

रेटिंग एजेंसी इक्रा के अनुसार 31 मार्च 2022 को समाप्त हो रहे वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि में उल्लेखनीय सुधार की उम्मीद है। केंद्र सरकार द्वारा सरकारी खर्च को बढ़ाने और विविध उत्पादों के खपत में तेजी को देखते हुए एजेंसी ने यह अनुमान लगाया है। इक्रा के अनुसार कोरोना महामारी का प्रभाव कम हो रहा है। इस वजह से वित्त वर्ष 2021-22 में जीडीपी 10.5 प्रतिशत और नॉमिनल जीडीपी में 14.5  प्रतिशत की दर से वृद्धि हो सकती है।

रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स (एसऐंडपी) के मुताबिक मौजूदा चुनौतीपूर्ण आर्थिक स्थिति में निर्यात केंद्रित एसएमई की स्थिति ज्यादा अस्थिर है।  हालाँकि, भारत में एसएमई में सरकार द्वारा उठाये गए सुधारात्मक कदमों से दबाव पहले से काफी कम हुआ है।

कोरोना महामारी से पहले मोदी सरकार वित्त वर्ष 2024-25 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन यूएस डॉलर की बनाने की दिशा में कार्य कर रही थी, लेकिन महामारी की वजह से इस सपने की राह में बड़ी चुनौती उपस्थित हो गयी है। हालाँकि, एमएसएमई क्षेत्र की मदद से सरकार इस सपने को पूरा कर सकती है, क्योंकि एमएसएमई क्षेत्र को मजबूत करके भारत में समावेशी विकास को सुनिश्चित करना संभव है।

यह क्षेत्र 11 करोड़ लोगों को रोजगार और लगभग 33 करोड़ अन्य लोगों के जीवनयापन का साधन बना हुआ है। अगर इस संगठित क्षेत्र को योजनाबद्ध तरीके से विकसित किया जाये तो इस क्षेत्र में और भी रोजगार के अवसर पैदा होंगे और विकास को पंख लगेंगे जिस दिशा में सरकार प्रयास कर भी रही है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)