आगामी यूपी चुनाव में जनता के करारे जवाब के लिए तैयार रहे सपा सरकार!

यूपी चुनाव आने में लगभग छः महीने का वक्त शेष है। राज्य की सत्ता में काबिज सरकार में जिस तरीके से बीते कुछ महीनों से टकराव की राजनीति देखने को मिल रही है, उसे देखकर तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि राज्य की सत्ता में आपसी टकराव का खेल केवल सत्ता हथियाने तक ही सीमित ना रह कर वर्चस्व की जंग बन गई है। सरकार में जिस तरीके से अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए सरकार के मंत्रियों और मुख्यमंत्री के बीच तनाव पनपा है, जो साबित करता है, कि नेताजी की पहल के बावजूद सरकार में सब-कुछ सही नहीं चल रहा है। भाई-भातीजावाद से पनपी इस पार्टी में वर्तमान समय में लड़ाई इस हद तक पहुंच चुकी है, कि पार्टी के सभी नेता अपनी ढपली अपना राग अलाप रहें हैं। आने वाले चुनाव को देखते हुए षिवपाल सिंह यादव अपनी राजनीति चमकाने के विचार में दिख रहें है, तो वही युवा मुख्यमंत्री अपने वर्चस्व का दबदबा बनाये रखने के लिए अपने थिंक-टैंक को मजबूत करने के लिए अपने चहेते चेहरों को मंत्रिमंडल में जगह देने की बात कर रहें है। समाजवादी पार्टी का अंदरूनी टकराव कोई नई घटना नहीं है। 2012 के राज्य विधानसभा चुनाव के वक्त भी पार्टी में अंदरूनी मतभेद खुलकर सामने आये थे।

अखिलेश यादव मोदी को लेकर राहुल गांधी के खून की दलाली बायान पर सहमति देना यह साबित करता है, कि सपा कांग्रेस को साथ लेकर यूपी में ताल ठोंकने का मूड बना रही है। लेकिन, कुछ भी करे अब सत्ता का समीकरण नहीं साधने वाला क्योंकि पांच साल में इस सरकार और युवा मुख्यमंत्री से यूपी की जनता की जो भी उम्मीदें थीं, वो सब टूट चुकी हैं और आगामी चुनाव में जनता इस सपा सरकार को उसके कुशासन के लिए करारा जवाब देगी।

सपा सरकार ने अपने लगभग पॉंच वर्ष के कार्यकाल में काफी निराशाजनक प्रदर्शन किया है। सपा सरकार के कार्यकाल में दंगों  की संख्या में भारी वृद्वि हुई और प्रशासनिक अमले का रवैया भी संतोषजनक नहीं रहा। आज  यूपी देश का बड़ा क्राइम राज्य बन चुका है। इतिहास गवाह है, कि इससे पहले प्रदेश में कभी भी 5 अलग-अलग जुर्म की घटनाओं में अव्वल नहीं रहा है। इससे पहले माया सरकार के वक्त प्रदेश में तीन तरह के आपराधिक मामलों में प्रदेश भारत में नंबर एक पर रहा था। सपा सरकार के मंत्री अपनी सरकार का गुणगान करते हुए कहते है, कि उनके समय में मुकदमे दर्ज किए जा रहें है, इसलिए क्राइम का आंकड़ा बढ़ रहा है। जो प्रदेश की स्थिति देखकर सही नहीं माना जा सकता है। नेशनल रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार पिछले चार वर्षों में यूपी में 93 लाख से ज्यादा जुर्म की घटनाएं हुई हैं. जो की सपा सरकार की प्रशासनिक स्तर पर नाकामी का सबूत पेष करती है। पिछली बसपा सरकार में भी दंगे और जुर्म की वारदातें हुई थी, लेकिन जिस तरह से सपा शासन काल में जुर्म का ग्राफ बढ़ा, उसे देखकर यही समझ में आता है, कि प्रदेश में आम लोगों का जीवन आसान नहीं हैं। मायावती सरकार की तुलना में युवा मुख्यमंत्री के समय में प्रदेश में सोलह प्रतिशत जुर्म की वारदातों में बढ़ोत्तरी हुई। मायावती के समय भी अपराध कम नहीं थे, पर अब तो इन्तेहाँ ही हो गई है।

mulayam-akhilesh

सपा सरकार ने 2012 यूपी चुनाव के पहले बड़े-बड़े वायदे किये थे, किसानों की कर्जमाफी की बात हुई थी। वर्तमान समय में भी बुन्देलखण्ड़ जैसे हिस्से के किसानों की दशा  में अन्तर देखने को नहीं मिला है। सरकार अपने वायदों लगभग हर स्तर पर नाकामयाब  साबित हुई है। तिसपर परिवार में मची महाभारत पार्टी के भीतर थमने का नाम लेने को तैयार नहीं दिख रही है। कभी कौमी एकता दल के विलय को लेकर पार्टी में अन्दरूनी खिंचतान मच जाती है, तो कभी मंत्री पद की खातिर। कुल मिलाकर सत्ता साधने का मूल मंत्र सरकार ने खोज निकाला है। एक तरफ जहां पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव कुनबे को एक जुट रखने के मिशन में जुटे हुए हैं, वही दूसरे तरफ रामगोपाल यादव जो कुनबे के थिंक टैंक माने जाते है, उनके खिलाफ बगावत के सुर रह रह कर बुलंद करते रहते है। अब एटा सदर से पार्टी के विधायक ने पार्टी के राष्ट्रीय महासचित रामगोपाल यादव पर संगीन आरोप लगाए हैं।

कुनबे के अन्दर रह रहकर एक के बाद एक मतभेद उभर कर सामने आ रहे है। इस बार यूपी का चुनाव सपा सरकार के लिए बेहद मुश्किलों भरा रहने वाला है। अखिलेश यादव मोदी को लेकर राहुल गांधी के खून की दलाली बायान पर सहमति देना यह साबित करता है, कि सपा कांग्रेस को साथ लेकर यूपी में ताल ठोंकने का मूड बना रही है। लेकिन, कुछ भी करे अब सत्ता का समीकरण नहीं साधने वाला क्योंकि पांच साल में इस सरकार और युवा मुख्यमंत्री से यूपी की जनता की जो भी उम्मीदें थीं, वो सब टूट चुकी हैं और आगामी चुनाव में जनता इस सपा सरकार को उसके कुशासन के लिए करारा जवाब देगी। ये लगभग तय है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं।)