जाधव को रिहा करे पाकिस्तान, तो ही सुधरने की ओर बढ़ेंगे भारत-पाक संबंध!

यदि पाकिस्तान भारत से मैत्रीपूर्ण संबंधों की बहाली की दिशा में बढ़ना चाहता है, तो उसे जाधव को रिहा करना होगा। जाधव पर लगे आरोप बेबुनियाद हैं। अगर पाकिस्तान ने जाधव के जीवन को लेने की चेष्टा की तो दोनों मुल्कों के संबंध कभी सामान्य नहीं हो सकेंगे। साथ ही, पाकिस्तान को इसकी बड़ी कीमत चुकाने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।

पाकिस्तान की जेल में बंद पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव की मां और पत्नी ने उनसे 30 मिनट के लिए मुलाकात की। जरा कल्पना कीजिए कि इन तीनों में जब मुलाकात हुई होगी तो वे पल कितने भावुक होंगे। तीनों एक लंबे अंतराल के बाद मिल रहे थे। हालांकि पाकिस्तान ने इस मुलाक़ात में भी अपनी नापाक हरकतें दिखा ही दीं। पाकिस्तान अपनी दुष्ट हरकतों से बाज आने का नाम ही नहीं ले रहा है। उसने कुलभूषण जाधव को फांसी की सजा सुनाई है। पाकिस्तान का दावा है कि जाधव भारतीय गुप्तचर एजेंसी रॉ का एजेंट है। वह पाकिस्तान में विध्वंसक और जासूसी गतिविधियों को प्लान करने, कोऑर्डिनेट करने और ऑर्गनाइज करने के लिए आया हुआ था।

47 साल के जाधव को बलुचिस्तान से गिरफ्तार किया गया था। वे तब से पाकिस्तनी जेलों में पड़े हैं। पाकिस्तान ने 1999 में  शेख शमीम नाम के भारतीय को उन्हीं आरोपों पर फांसी पर चढ़ा दिया था, जिन आरोपों पर जाधव को फांसी की सजा सुनाई गई है। हालांकि भारत ने भी पाकिस्तान के कई गुप्तचरों को पकड़ा है, पर किसी को फांसी नहीं दी।

कहां गए भारतीय युद्धबंदी?

जिस भारत ने पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा युद्धबंदियों को 1971 की जंग के बाद हुए शिमला समझौते के तहत अपने वतन जाने के लिए छोड़ दिया था, उसी पाकिस्तान ने भारत के 54 युद्धबंदियों को कभी नहीं रिहा किया। ये सभी भारतीय सेना के आला अफसर थे। उनमें मेजर अशोक सूरी भी थे। उन्होंने  1971 की जंग में शिरकत की थी।

26 दिसंबर,1972 को फरीदबाद निवासी अशोक सूरी के पिता आर. ए. सूरी को अपने पुत्र के हाथ से लिखा एक पत्र मिला। उसमें कहा गया था कि उनके साथ जेल में 20 भारतीय सेना के जवान और भी हैं। पत्र कराची से भेजा गया था। आर.एस. सूरी को बाद के सालों में यह भी मालूम चला कि उनके पुत्र को कराची से पूर्वोत्तर पाकिस्तान की किसी जेल में शिफ्ट कर दिया गया है। 5 जुलाई, 1988 को एक भारतीय कैदी मुख्तार सिंह को पाकिस्तान ने रिहा किया। वह उसी जेल में था जिधर सरबजीत सिंह को मार डाला गया। उसने बताया था कि मेजर अशोक सूरी लखपत जेल में ही है।

बीते दशकों से उन भारतीय सेना के 54 अफसरों के माता पिता, पत्नी, बच्चे और दूसरे करीबी संबंधियों की आंखें पक गईं अपने दिल के टुकड़ों का चेहरा देखने के लिए। पर, उन्हें वापस नहीं लाया जा सका। हां, पाकिस्तान सरकार सांकेतिक  रूप से तो भरोसा देती रही कि 1971 के युद्धबंदियों को खोजा जाएगा, पर हुआ कुछ भी नहीं। इन सैन्य अफसरों के परिवार वाले एक विशेष ट्रेन से कुछ साल पहले पाकिस्तान की जेलों में भी गए थे, पर उन का कहीं कुछ पता नहीं चला।

सरबजीत से चमेल तक

सबको पता है कि  पाकिस्तानी जेलें भारतीयों के लिए कब्रगाह साबित हो रही हैं। सरबजीत सिंह, फिर चमेल सिंह, उसके बाद  लाहौर की जेल में भारतीय नागरिक किरपाल सिंह की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई है। दरअसल, भारत दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए हमेशा तत्पर रहा और उधर से मिली वादाखिलाफी। ये भी कोई पुरानी बात नहीं है, जब पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में मारे गए भारतीय कैदी चमेल सिंह के शरीर से सारे अहम अंग गायब मिले हैं।

चमेल सिंह के शव का भारत में किए गए पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से इस बात का खुलासा हुआ था। पाकिस्तान ने भारत को चमेल सिंह का शव अटारी सीमा पर दिया था। जम्मू में पांच सदस्यीय मेडिकल बोर्ड द्वारा जब चमेल सिंह का दोबारा पोस्टमॉर्टम किया गया, तो वे हैरान रह गए। चमेल सिंह के शरीर से लीवर और किडनी जैसे अहम अंग गायब थे। यही नहीं चेहरे व शरीर पर चोटों के निशान थे।

अवहेलना जेनेवा कंवेशन की

जेनेवा कंवेशन की अनदेखी करते हुए पाकिस्तान ने उन 54 सैन्य अधिकारियों को कभी भारत को नहीं लौटाया। अब फ्लाइट लेफिनेंट वी.वी.तांबे और उनकी राष्ट्रीय स्तर की बैडमिंटन चैंपियन पत्नी दमयंती तांबे की दर्दभरी दास्तान भी सुन लीजिए। दमयंती तांबे जी ने बताया कि 5 दिसंबर,1971 को पाकिस्तान के प्रमुख अख़बार संडे पाकिस्तान ने खबर छापी कि पाँच भारतीय जंगी विमानों के पायलटों को गिरफ्तार कर लिया गया है। खबर में साफतौर पर तांबे का भी उल्लेख था। उन्होंने बताया कि उन्हें 1978 में एक बांग्लादेश नेवी के अफसर ने एक संयोग बैठक के बाद बताया था कि लायलपुर जेल में तांबे नाम का एक भारतीय कैदी था। उसने यहां तक बताया कि उसकी ठोडी के ऊपर निशान था। दमयंती जी ने इस बात की पुष्टि की। दमयंती तांबे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्लाय के स्पोट्स विभाग से जुड़ी रहीं थीं।

यदि पाकिस्तान भारत से मैत्रीपूर्ण संबंधों की बहाली की दिशा में बढ़ना चाहता है, तो उसे जाधव को रिहा करना होगा। जाधव पर लगे आरोप बेबुनियाद हैं। अगर पाकिस्तान ने जाधव के जीवन को लेने की चेष्टा की तो दोनों मुल्कों के संबंध कभी सामान्य नहीं हो सकेंगे। साथ ही, पाकिस्तान को इसकी बड़ी कीमत चुकाने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। इसके अलावा मानवीय आधार पर पाकिस्तान-भारत दोनों को एक-दूसरे के कैदियों को रिहा करके स्वदेश भेजने की व्यवस्था करनी चाहिए, जिनकी सज़ा पूरी हो गई है। दोनों देशों के नागरिकों के साथ जेल में मानवीय व्यवहार भी होना चाहिए। भारत ऐसा करता भी रहा है, परन्तु पाकिस्तान को जाने कब भारत से अपने संबंधों का महत्व समझ में आएगा।

(लेखक यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं। वरिष्ठ स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)