गुजरात चुनाव : विकास की राजनीति बनाम विद्वेष की राजनीति

गुजरात में सुर्खियां बटोरने के लिए हार्दिक पटेल ने फिर जहर उगला है। हार्दिक ने बयान दिया है कि भाजपा उन्‍हें बदनाम करने के लिए कथित अश्‍लील सीडी जारी कर सकती है और खराब मशीनों का इस्‍तेमाल वोटिंग में किया जा सकता है। इस तरह के अनर्गल बयानों पर अब भला क्या कहा जाए! गुजरात के चुनाव में कांग्रेस को अपनी जमीन हवा होती साफ नज़र आ रही हैं, इसीलिए हार्दिक पटेल जैसे सतही नेताओं के जरिये उसे बचाने की कवायदें कर रही। मगर, कांग्रेस समझे न समझे, ये राजनीति उसे और नुकसान ही पहुंचा रही है।

गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। दोनों राज्‍यों में अपनी सरकार बनाने के लिए भाजपा व कांग्रेस अपने-अपने स्‍तर पर जुटे हुए हैं। लेकिन, यहां दोनों दलों के काम करने के, प्रचार करने के तरीके में अंतर स्‍पष्‍ट नज़र आता है। एक तरफ जहां भाजपा सकारात्‍मक ढंग से प्रचार कर रही है, वहीं कांग्रेस सस्‍ते हथकंडे अपनाकर थोथी राजनीति दिखाने से बाज नहीं आ रही। इसी के समानांतर नेताओं को एक दल छोड़कर दूसरे दल में जाने का सिलसिला भी शुरू हो गया है।

ताजा घटनाक्रम में गुजरात में दलित नेता जिग्‍नेश मेवानी कांग्रेस में शामिल हुए हैं, जिसके पीछे वे दलित समाज के उत्‍थान का हवाला दे रहे हैं। उनका कहना है कि वे किसी दल से चुनाव नहीं लड़ना चाहते, लेकिन दलितों की मांगें मनवाना चाहते हैं, इसलिए राहुल गांधी से नवसारी में हुई भेंट के बाद उन्‍होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया।

चुनाव प्रचार की बात करें तो हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिमाचल के दो जिलों कांगड़ा और धौलाकुआं की चुनावी सभा में कांग्रेस को आईना दिखाते हुए कहा कि इस देश में दशकों तक एक ही परिवार का साम्राज्‍य रहा जिसके कारण देश गर्त में जाता रहा। पीएम मोदी ने तथ्‍यगत उदाहरण देते हुए कहा कि कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की बात तो कही है, लेकिन कांग्रेस के शासन में ही अनेक बड़े भ्रष्‍टाचार के मामले उजागर हुए और घोटाले सामने आए। इधर, गुजरात में भी कांग्रेस के पास कोई आधार नहीं दिख रहा, जिसके दम पर वह चुनाव में जीतकर आने का दावा कर सके।

गुजरात के अक्षरधाम मंदिर में मोदी

 

राजनीति में केवल विकास ही नहीं देखा जाता, जनभावनाओं का समादर, धार्मिक आस्‍था का सम्‍मान और लोक कल्‍याण भी मायने रखता है। इनके दम पर ही कोई दल सत्‍ता में आ पाता है। इसका एक श्रेष्‍ठ उदाहरण गुजरात में देखा जा सकता है। यहां गांधीनगर में स्थित अक्षरधाम मंदिर में रजत जयंती समारोह धूमधाम से मनाया जा रहा है। पाटीदार समाज से जुड़ा मंदिर होने के बावजूद पाटीदारों के तथाकथित नेता हार्दिक पटेल ने यहां आकर समारोह में शामिल होना उचित नहीं समझा, ना ही कांग्रेस का कोई बड़ा नेता यहां आया लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्‍वयं अपने व्‍यस्‍त कार्यक्रम में से समय निकालकर यहां आए। उन्‍होंने एक मिसाल पेश की है कि राजनीति में जनता से जुड़े रहना ही एकमात्र मापदंड है।

अक्षरधाम पहुंचकर उन्‍होंने लाखों लोगों का दिल जीता। उन्‍होंने कहा भी कि मुख्‍यमंत्री रहते हुए वे यहां नियमित रूप से आते थे और शिखर कलश दर्शन के बिना दिन पूरा नहीं होता था। यह राजनीति की आधारभूत बात है कि यदि सच्‍ची राजनीति की जाए, विकास की बात की जाए तो जनता स्‍वयं दलों को सत्‍ता में आने का मौका देती है लेकिन महज आरोपों की, नफरत की और विरोध की राजनीति से कुछ नहीं पाया जा सकता।

गुजरात में सुर्खियां बटोरने के लिए हार्दिक पटेल ने फिर जहर उगला है। हार्दिक ने बयान दिया है कि भाजपा उन्‍हें बदनाम करने के लिए कथित अश्‍लील सीडी जारी कर सकती है और खराब मशीनों का इस्‍तेमाल वोटिंग में किया जा सकता है। इस तरह के अनर्गल बयानों पर अब भला क्या कहा जाए! उठता है कि हार्दिक को कैसे पता चला कि भाजपा के पास उनकी अश्‍लील सीडी है। क्‍या वे स्‍वयं के पाक साफ होने का कोई प्रमाण पत्र दे सकते हैं? यदि वे निर्दोष हैं तो उन्‍हें इतना विचलित नहीं होना चाहिये। किसी संभावना के आधार पर उनको यह अधिकार किसने दिया कि वे किसी दल पर इस प्रकार सार्वजनिक रूप से आक्षेप करें।

राहुल गांधी भी विभिन्‍न मंचों से यही भाषा बोल रहे हैं। ये कांग्रेस की भी हताशा को दर्शाता है। भाजपा विकास की बात कर रही और विरोधी सिर्फ विद्वेष से प्रेरित होकर भाजपा पर अनर्गल आरोप लगाने में मशगूल हैं। वास्तव में गुजरात के चुनाव में कांग्रेस को अपनी जमीन हवा होती साफ नज़र आ रही हैं, इसीलिए हार्दिक पटेल जैसे सतही नेताओं के जरिये उसे बचाने की कवायदें कर रही। मगर, कांग्रेस समझे न समझे, ये राजनीति उसे और नुकसान ही पहुंचा रही है। 

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)