सरकारी बंगलों में रहना और फिर उन्हें अपना बना लेना नेहरू-गांधी परिवार की पुरानी परिपाटी है

आलिशान बंगलों में रहना और फिर आजीवन उन्हें अपना बना लेना, कांग्रेस में यह सिलसिला नेहरू काल से ही चलता आ रहा है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जिस तीन मूर्ति भवन में जीवन के अंतिम सोलह साल बिताए थे, उसे बाद में म्यूजियम बना दिया गया। इसके बाद लुटियंस जोन स्थित 1 सफदरजंग रोड, जहां पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का सरकारी आवास था और 1984 में उनकी हत्या हुई, उस बंगले को भी संग्रहालय बना दिया गया।

कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को पिछले दिनों जब उनके सरकारी आवास को एक महीने के अंदर खाली करने का आदेश जारी किया गया, तो सवाल सबके मन में उठा कि आखिर क्‍यों। जनता के मन में यह सवाल स्‍वाभाविक भी है। क्‍योंकि भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब नेहरू-गांधी परिवार के किसी सदस्‍य को देश की सरकारी संपत्ति छोड़ने के लिए कठोर आदेश जारी किया गया है।

केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने प्रियंका गांधी सरकारी बंगला खाली करने का आदेश दिया है (सांकेतिक चित्र, साभार : DNA India)

दरअसल यह आवास उन नेताओं के लिए आरक्षित होते हैं जो स्‍पेशल प्रोटेक्‍शन ग्रुप यानी एसपीजी की सुरक्षा के दायरे में आते हैं। जबकि पिछले साल ही प्रियंका गांधी वाड्रा की एसपीजी सुरक्षा बदलकर उन्‍हें जेड प्‍लस सुरक्षा दी गई थी।

नियम के अनुसार, प्रियंका को पिछले साल ही दिल्‍ली के लोधी एस्‍टेट स्थित इस बंगले को खाली करना था। लेकिन हमारे देश में यह परिपाटी लंबे समय से बनी हुई है कि यदि कोई व्‍यक्ति एक बार सत्ता का हिस्सा बन जाता है, तो वर्षों बीत जाने के बाद भी सत्ता और सुविधाओं का मोह नहीं छोड़ पाता।

ऐसे में, हमारे देश में सरकारी सुविधाओं के प्रति मोह और अधिकार जताने वालों का सबसे बड़ा उदाहरण गांधी परिवार रहा है। इस परिवार का इतिहास है कि जनता के टैक्‍स से मिलने वाली सरकारी सुविधाओं पर वह अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते रहे हैं और इन बड़े-बड़े बंगलों को अपनी पारिवारिक धरोहर समझते रहे हैं।

आलिशान बंगलों में रहना और फिर आजीवन उन्हें अपना बना लेना, यह सिलसिला नेहरू काल से ही चलता आ रहा है। परिपाटी की बात करें तो देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जिस तीन मूर्ति भवन में जीवन के अंतिम सोलह साल बिताए थे, उसे बाद में म्यूजियम बना दिया गया। इसके बाद लुटियंस जोन स्थित 1 सफदरजंग रोड, जहां पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का सरकारी आवास था और 1984 में उनकी हत्या हुई, उस बंगले को भी संग्रहालय बना दिया गया।

साभार : OneIndia

इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, जिस 10 जनपथ बंगले में रहते थे, उनकी मौत के बाद आज भी सोनिया गांधी इसी बंगले में रहती हैं। राहुल गांधी भी जीवन भर इन्‍हीं सरकारी बंगलों में रहे हैं। लेकिन 2004 में सांसद बनने के बाद से आज तक वे 12 ए तुगलक लेन के बंगले में रहते आए हैं।

लेकिन सरकार बदलने के साथ ही स्थितियां बदल रही हैं। सरकारी सुविधाओं पर अधिकार जताने वालों पर सख्ती की जा रही है। दरअसल गांधी परिवार की परिपाटी को ही देखते हुए शायद साल 2000 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने यह फैसला लिया होगा कि ऐसे सरकारी बंगले सिर्फ उन्हीं लोगों को दिए जाएंगे जिन्हें एसपीजी सुरक्षा हासिल हो।

इस नियम के तहत ही पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी अपना सरकारी बंगला छोड़ दिया था। यही नहीं, पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी अपना सरकारी आवास इसलिए छोड दिया था क्‍योंकि वह अस्वस्थ्य रह रहे थे और केंद्र में जिम्मेदारी उठाने की स्थिति में नहीं थे।

अब इसी नियम के तहत भारत सरकार के शहरी विकास मंत्रालय की ओर से पिछले दिनों कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को उनका सरकारी बंगला खाली करने का आदेश जारी किया गया है।

दिल्ली के सबसे महंगे और सुरक्षित इलाके में तीन अलग-अलग बंगलों में रहते हैं सोनिया, राहुल और प्रियंका (सांकेतिक चित्र, साभार: NewIndianExpress)

बताते चलें कि यह बंगला प्रियंका गांधी वाड्रा को 1997 में मिला था जो सोनिया गांधी के बंगले से 3 किलोमीटर की दूरी में है जबकी राहुल गांधी का बंगला महज ढाई किलोमीटर पर है। दिल्ली के सबसे मंहगे, सुरक्षित और वीवीआइपी इलाकों में आज एक ही परिवार के तीन अलग अलग सदस्य दशकों से रह रहे हैं क्योंकि उनका परिवार कभी सत्तासीन था।

अगर सरकारी सूत्रों से मिली सूचना का जिक्र किया जाए तो सोनिया गांधी का बंगला यानी दस जनपथ का क्षेत्रफल 15 हजार 181 वर्ग मीटर है, जबकि राहुल गांधी के बंगले का आकार करीब 5 हजार वर्ग मीटर है। वहीं प्रियंका वाड्रा का बंगले (35 लोधी इस्‍टेट) का आकार 2 हजार 765 वर्ग मीटर है।

कहा जा सकता है कि इन सभी को मिला दिया जाए तो शायद इतने विशाल क्षेत्र में तीन सौ से अधिक लोग परिवार के साथ रह सकते हैं। लेकिन इसे सत्‍ता का धौंस ही कहिए कि आज तक यहां एक ही परिवार के तीन अलग-अलग सदस्‍य तीन अलग-अलग बंगलों में आलिशान जिंदगी जी रहे हैं।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)