फिर मार खाकर ही नापाक हरकतों से बाज आएगा पाकिस्तान !

आपको याद होगा कि  डोकलम विवाद के दौरान भारत  का रुख साफ था कि वो चीन के दबाव में नहीं आएगा। हां, आपसी सहयोग और सीमा पर जारी तनाव को दूर करने के लिए भारत तैयार था। भारत चीन से बराबरी के संबंध चाहता है। अब भारत को चीन की धौंस नामंजूर है। धौंस का जवाब तो भारत इस बार चीन के गले में अंगूठा डालकर देने के लिए तैयार था। उसने लद्दाख में घुसपैठ की चेष्टा की थी। जिसे भारतीय फौज के वीर जवानों ने विफल कर दिया। अगर भारत की सैन्य़-शक्ति के समक्ष चीन भाग खड़ा हो सकता है, तो फिर इस पाकिस्तान की क्या औकात है।

नापाक पड़ोसी पाकिस्तान सीजफायर का निरंतर उल्लंघन कर रहा है। चीन और पाकिस्तान की कोशिश होगी कि भारत को उलझा कर रखा जाए। ये स्थिति गंभीर है। भारत को अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा। पाकिस्तान को उसकी औकात दिखाने का वक्त है। भारत के आगे 1948, 1965, 1971 और कारगिल में घुटने टेक चुके पाकिस्तान को शायद फिर एकबार मार खाने की इच्छा जागृत हो रही है। उसे पिटने की भूख लगने लगी है। वो वार्ता से आपसी मसले सुलझाने के लिए तैयार नहीं है।

पाकिस्तान से उसका पड़ोसी ईरान और कभी हिस्सा रहा बांग्लादेश भी नाराज है। बांग्लादेश ने उससे अपने संबंध सिर्फ सांकेतिक कर लिए हैं। बांग्लादेश ने उड़ी में भारत के सर्जिकल एक्शन का समर्थन किया था। पाकिस्तान देखता रह गया था और हमारे जवान घर में घुसकर उसके आतंकी ठिकाने नेस्तनाबूद कर आए थे, मगर इसके बावजूद वो सुधरने को तैयार नहीं है।

सांकेतिक चित्र

पाकिस्तान से बांग्लादेश इसलिए खफा है, क्योंकि, वह उसके आंतरिक मामलों में टांग अड़ाने से बाज नहीं आता। बांग्लादेश में 1971 के सैन्य कत्लेआम के गुनाहगारों को फांसी का एलान हुआ तो इससे पाकिस्तान को बड़ी तकलीफ हो उठी। तकलीफ होनी लाजिमी है, क्योंकि तब पाकिस्तान की जंगली सेना ने अपने ही देश के लाखों बांग्लाभाषियों को मार डाला था। तब पाकिस्तान सेना का वे साथ दे रहे थे, जिन्हें आजकल बांग्लादेश में सूली पर लटकाया जा रहा है। बहरहाल, अगर भारत की सैन्य़-शक्ति के समक्ष चीन भाग खड़ा हो सकता है, तो फिर दो कौड़ी के पाकिस्तान की क्या औकात है।

सबको पता है कि दुनिया को आतंकवाद की सप्लाई करता है पाकिस्तान। जिस देश में ओसामा बिन लादेन मिला हो, उसके बारे में आप क्या कहेंगे। पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सुरक्षा सहायता पर रोक लगाकर यह संदेश देने की कोशिश की कि सहायता पाने वाले आतंकवाद को समर्थन देकर या उसे अनदेखा करके अमेरिका के दोस्त नहीं हो सकते। अमेरिका की ओर से ऐसे संदेश का लंबे समय से इंतजार किया जा रहा था। ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया था कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में वह पर्याप्त काम नहीं कर रहा है। यानी पाकिस्तान की असलियत से सब वाकिफ होते जा रहे हैं। यह भारत की कूटनीतिक सफलता है। 

भारत की पुरानी नीति रही है कि जब पाकिस्तान से हमारे संबंध खराब होते हैं तो हम दूसरों के सामने अपना पक्ष रखने लगे। मंशा यही थी कि शेष संसार हमारे साथ खड़ा हो जाए। ये समझ लेना होगा कि भारत को अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी और अब देश यह कर भी रहा है। कोई हमें बाहर से नैतिक समर्थन दे सकता है, पर लड़ना देश को होगा। अगर कोई ये समझता है कि जंग सिर्फ सेना लड़ती है तो ये सोच बदलनी होगी। युद्ध देश लड़ता है।

हमने चीन के साथ डोकलम विवाद के समय भी देखा था कि चीन के विस्तारवादी और आक्रामक रवैये के खिलाफ कोई भी देश हमारे साथ खड़ा होता नजर नहीं आया था। और तो और, जिस ब्रिक्स के भारत-चीन दोनों सदस्य है, उसके बाकी सदस्यों ने भी दोनों को एक टेबल पर लाने की कोई चेष्टा नहीं की थी। जब ब्रिक्स की ये  स्थिति है तो फिर सार्क देशों की तो चर्चा करना ही व्यर्थ है। श्रीलंका, नेपाल, अफगानिस्तान, भूटान और मालदीव में इतनी कुव्वत कहां कि वे हमारे लिए बोलें या पाकिस्तान को उसकी धूर्तता के लिए कसें। पाकिस्तान लगातार सीजफायर का उल्लंघन कर रहा है। सेना और बीएसएफ के जवान भी जवाबी हमले कर रहे हैं। कुल मिलाकर वहां सरहद पर युद्ध जैसे हालात हैं। 

बराबरी के संबंध

आपको याद होगा कि  डोकलम विवाद के दौरान भारत  का रुख साफ था कि वो चीन के दबाव में नहीं आएगा। हां, आपसी सहयोग और सीमा पर जारी तनाव को दूर करने के लिए भारत तैयार था। भारत चीन से बराबरी के संबंध चाहता है। अब भारत को चीन की धौंस नामंजूर है। धौंस का जवाब तो भारत इस बार चीन के गले में अंगूठा डालकर देने के लिए तैयार था। उसने लद्दाख में घुसपैठ की चेष्टा की थी। जिसे भारतीय फौज के वीर जवानों ने विफल कर दिया।

चीन को संदेश मिल गया था कि इस बार उसकी टक्कर 1962 के कमजोर भारत से नहीं थी। अबकी बार उसके दांत खट्टे करके खदेड़ दिया जाता। जिस तरह का  कड़ा और सख्त संदेश हमने चीन को दिया, पाकिस्तान बन्दूक की भाषा में उससे भी कड़ा सन्देश चाहता है। लगता है कि पाकिस्तान फिर एकबार पिटकर ही बाज आएगा, अब कोई दूसरा विकल्प बचा नहीं है।

(लेखक यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं। वरिष्ठ स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)