‘राम मंदिर के लिए शांतिपूर्ण प्रयास होने चाहिए और धर्मसभा ने वही किया’

धर्म सभा की विशिष्ट मर्यादा होती है। उसमें निर्णय होते है, उन्हें सत्ता तक पहुचाया जाता है। हिन्दू धर्म से संबंधित धर्मसभा न तो हिंसक होती है, न इसमें किसी के प्रति नफरत होती है, बल्कि इसमें अपनी आस्था के विषय अवश्य शामिल होते हैं। धर्मसभा के माध्यम से लोगों ने राम मंदिर के प्रति अपनी आस्था प्रकट की। कानून हाथ में नहीं लिया गया।

अयोध्या में धर्मसभा को लेकर अनेक प्रकार की अटकलें लगाई जा रही थीं। यहां तक कि सेना को भेजने तक की मांग की गई। लेकिन यहां पहुंचने वाले रामभक्तों ने धर्मसंसद की मर्यादा कायम रखी। समाज के साथ सरकार ने भी अपनी प्रशासनिक कुशलता का परिचय दिया। जितनी बड़ी संख्या में रामलला के दर्शन की अनुमति प्रदान की गई, उसे अभूतपूर्व कहा जा सकता है। जबकि इसी समय शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी यहां पहुंचे थे।

दो ट्रेनों से उनके समर्थक भी महाराष्ट्र से आये थे। शिवसेना भाजपा और विश्व हिंदू परिषद के विरोध में आवाज उठा रही थी। इस कारण भी तनाव की आशंका व्यक्त की जा रही थी। लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने स्वयं निगरानी की, पुलिस और नागरिक प्रशासन को निर्देश दिए। इसके चलते शिवसेना और विश्व हिंदू परिषद दोनों के कार्यक्रम सम्पन्न हुए। यदि इस समय तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों की सरकार होती तो इस मसले को उत्तेजक बनाने की कोशिश की जाती। जबकि योगी सरकार ने बड़ी ही शांति के साथ कार्य किया। 

साभार : संजीवनी टुडे

अयोध्या के इन कर्यक्रमो  को  दो हिस्सों में देखा जा सकता है। एक कार्यक्रम शिवसेना का था, दूसरा विश्व हिंदू परिषद की धर्म सभा थी। जहाँ तक क्षेत्रीय दलों का प्रश्न है, उनकी एक सीमा होती है। वह अपने प्रदेश में मजबूत हो सकते हैं, लेकिन प्रदेश के बाहर उनका कोई जमीनी अस्तित्व नहीं होता, न तो उनके आह्वान पर वोट पड़ते हैं।

शिव सेना का उद्देश्य भी महाराष्ट्र तक सीमित था। उसके कार्यक्रम की योजना भी इसी के अनुरूप बनाई गई थी। वैसे इसे पारिवारिक दर्शन कार्यक्रम बताया गया। लेकिन ऐसा नहीं था। महाराष्ट्र के दो विभिन्न इलाकों से ट्रेन भरकर लाना क्षेत्रीय स्तर की ही योजना थी। उद्धव ठाकरे ने यह कार्य किया और वापस हो गए। वापसी से पहले वह महाराष्ट्र को ध्यान में रखकर तीर चलाना भी नहीं भूले।

राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण विश्व हिंदू परिषद का भी मुद्दा रहा है। धर्मसभा का आयोजन भी उसी ने किया था। यह कोई जनसभा नहीं थी। दोनों शब्दों के अंतर को समझना चाहिए। धर्म सभा की विशिष्ट मर्यादा होती है। उसमें निर्णय होते है, उन्हें सत्ता तक पहुचाया जाता है। हिन्दू धर्म से संबंधित धर्मसभा न तो हिंसक होती है, न इसमें किसी के प्रति नफरत होती है, बल्कि इसमें अपनी आस्था के विषय अवश्य शामिल होते हैं। धर्मसभा के माध्यम से लोगों ने राम मंदिर के प्रति अपनी आस्था प्रकट की। कानून हाथ में नहीं लिया गया।

संविधान के दायरे में रहकर समाधान की मांग की गई। कानून या अध्यादेश संवैधानिक व्यवस्था है। दूसरी बात यह कही गई कि इस पूरी जमीन का बंटवारा न हो, यहां केवल मंदिर बने। यदि ऐसा होता है तो भावी पीढ़ी के लिए यही उचित होगा। एक समाधान करना और दूसरे विवाद की स्थिति बना देने में कोई समझदारी नहीं है।

विश्व हिंदू परिषद की ओर से धर्मसभा में कहा गया कि राम मंदिर के निर्माण के लिए हमें पूरी जमीन चाहिए। और जमीन बंटवारे का कोई भी फार्मूला मंजूर नहीं होगा।  राम मंदिर पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा था। धर्म सभा के मंच से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ  के अखिल भारतीय सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल ने कहा कि धर्मसभा के निर्णय को संघ स्वीकार करेगा।

जिस प्रकार धर्मसभा ने अपनी मर्यादा का पालन किया, वैसे ही किसी सरकार की संवैधानिक मर्यादा होती है। उसे संविधान की सीमा के साथ-साथ उससे संबंधित समस्याओं और प्रक्रिया का भी ध्यान रखना होता है। लोकसभा में भाजपा पूर्ण बहुमत में है। राज्यसभा में भाजपा कुछ महीने पहले सबसे बड़ी पार्टी तो बन गई, लेकिन बहुमत से दूर है।

ऐसे में वह अभी क़ानून बनाने की स्थिति में नहीं है। अध्यादेश को भी छह महीने के भीतर संसद से पारित कराना होता है। यह सब जानते हैं कि राम मंदिर देश का अत्यंत संवेदनशील विषय है। समाज में फिर टकराव न हो, इस बात का भी ध्यान रखना है। अतः इसके लिए शांतिपूर्ण प्रयास होने चाहिए जो कि धर्मसभा में किया गया।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)