‘मेरे लिए सवा सौ करोड़ देशवासियों की सेवा ही बाबा की सेवा है’

भारत जैसी प्राकृतिक विविधता और प्राचीन धरोहर विश्व में अन्यत्र दुर्लभ है। यहां वैश्विक आकर्षण के असंख्य केंद्र हैं। प्राचीन मंदिरों की अद्भुत शृंखला है, जिनमें उकेरी गई कला बेजोड़ है। विश्व की कोई इमारत इस मामले में इनकी बराबरी नहीं कर सकती। दक्षिण भारत पर विदेशी आक्रांताओं का प्रकोप कम रहा, इसलिए वहां आज तक ऐसे भव्य मंदिर सुरक्षित हैं। हिमालय का पूरा क्षेत्र विलक्षण है। यहां आध्यात्म से लेकर एडवेन्चर तक सब कुछ है। प्रकृति के सभी रूप यहां विविधता से भरे हैं। ये आकर्षित करते हैं। हिन्दू तीर्थाटन के लिए तो सब कुछ यहीं है।

राजनेताओं के धर्मिक स्थलों पर जाने, वहां पूजा-अर्चना करने की परंपरा पुरानी है। इसे उनकी व्यक्तिगत रुचि कहा जा सकता है। लेकिन नरेंद्र मोदी आध्यात्मिक भावना के साथ पर्यटन का विचार भी साथ लेकर चलते हैं। अपनी कई यात्राओं में वह इसका प्रमाण दे चुके हैं। गोवर्धन पूजा के दिन वह केदारनाथ धाम पहुंचे और पूजा-अर्चना की। लेकिन, यह उनका एकमात्र उद्देश्य नहीं था। वह जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उस समय से केदारनाथ के विकास की कल्पना उनके मन मे थी। लेकिन केंद्र और राज्य में मौजूद कांग्रेस सरकारों के कारण वे ऐसा नहीं कर सके। प्रधानमंत्री बने तब भी उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी। उसका सहयोग नही मिला। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद मोदी ने इस दिशा में कदम उठाने  की पहल की।

ऐसा नही कि वह कपाट बंद होने के पहले मंदिर पहुंच गए और इस अवसर पर अचानक कुछ योजनाओं का शिलान्यास कर दिया, बल्कि मोदी पिछले कई महीनों से इस दिशा में प्रयास कर रहे थे। उन्होने हिमालय क्षेत्र का बहुत भ्रमण किया है। यहां की स्थिति और आवश्यकताओं की उन्हें समझ है। केदारनाथ के लिए जिन पांच योजनाओं का उन्होने शिलान्यास किया, उसमे खुद रुचि दिखाई थी। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि बाबा ने मुझे यहाँ से शायद इसलिए लौटा दिया कि देश के सवा सौ करोड़ बाबाओं की सेवा करूँ। इसलिए मेरे लिए अब सवा सौ करोड़ देशवासियों की सेवा ही बाबा की सेवा है।

केदारनाथ के पुरोहितों का जीवन बहुत कठिन होता है। सुविधाओ का अभाव होता है। इनके लिए आवासीय व्यवस्था का बेहतर इंतजाम होगा। सड़क को चौड़ा करने के साथ वहां सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाएगी। मंदाकनी और सरस्वती पर सुंदर घाटो का निर्माण होगा। उत्तराखंड की भाजपा सरकार समय से कार्य पूरा करने के लिए कमर कस चुकी है। इधर दिवाली को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अयोध्या के विकास हेतु कई योजनाओं का शिलान्यास किया था। यह भी पर्यटन और तीर्थाटन को बढ़ावा देने की नीति के अनुकूल कदम थे।

भारत जैसी प्राकृतिक विविधता और प्राचीन धरोहर विश्व में अन्यत्र दुर्लभ है। यहां वैश्विक आकर्षण के असंख्य केंद्र हैं। इसमें आध्यात्मिक पर्यटन भी शामिल है। प्राचीन मंदिरों की अद्भुत शृंखला है। उनमें उकेरी गई कला बेजोड़ है। विश्व की कोई इमारत इस मामले में इनकी बराबरी नहीं कर सकती। दक्षिण भारत पर विदेशी आक्रांताओं का प्रकोप कम रहा, इसलिए वहां आज तक ऐसे भव्य मंदिर सुरक्षित हैं। हिमालय का पूरा क्षेत्र विलक्षण है। यहां आध्यात्म से लेकर एडवेन्चर तक सब कुछ है। प्रकृति के सभी रूप यहां विविधता से भरे हैं। ये आकर्षित करते हैं। हिन्दू तीर्थाटन के लिए तो सब कुछ यहीं है।

ब्रह्मा, विष्णु, महेश की महिमा सर्वविदित है। ब्रह्मा जी की आराधना उज्जैन में होती है। बारह ज्योतिर्लिंग की स्थापना अद्भुत है। उज्जैन केंद्र से इनकी दूरी भी चकित करती है। उस समय दूरी नापने की आज जैसी तकनीक नही रही होगी। फिर भी वैज्ञानिकता का कोई तरीका अवश्य रहा होगा। उज्जैन से काशी विश्वनाथ, बैजनाथ धाम और मल्लिकार्जुन की दूरी समान रूप से नौ सौ निन्यानबे किमी है। रामेश्वर एक हजार नौ सौ निन्यानबे, सोमनाथ सोमनाथ सात सौ सतहत्तर, ओंकारेश्वर एक सौ ग्यारह, भीमाशंकर छह सौ छांछठ, केदारनाथ आठ सौ अठासी किलोमीटर की दूरी पर है। इन सबको क्रमशः उत्तर से दक्षिण लाइन से मिलाएं अपने आप संख की आकृति बन जाएगी। यह रोचक तथ्य विश्व के सामने आने चाहिए थे।

सुदूर जंगलों में शानदार और कलात्मक मंदिर बने हैं। इन सब स्थानों पर तीर्थ यात्री और पर्यटक आते हैं। लेकिन, इन्हें विश्व पर्यटन के मानचित्र पर लाने के लिए जितना प्रयास होना चाहिए था, वह नही किया गया। यह  मानना होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ओर बहुत ध्यान दिया है। उन्होने जो  स्वच्छता अभियान चलाया है, उसका एक सूत्र पर्यटन से ही जुड़ता है। पर्यटन केंद्रों का स्वच्छ रहना जरूरी होता है। इसके साथ ही सड़क, बिजली, पानी, यातायात की सुगमता, रुकने के बेहतर इंतजाम आदि का होना अनिवार्य होता है। धार्मिक स्थलों के विशेष पर्व, मेला आदि में सभी सरकारें व्यवस्था करती रही हैं। इसके लिए पर्याप्त बजट भी होता है। फिर भी स्थाई ढांचागत विकास पर भी ध्यान देना चाहिए था। इस मामले में कमी रह गई। नरेंद्र मोदी इसी कमी को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)