अयोध्या की दीपावली : ‘अवधपुरी सोहई एहि भाँती, प्रभुहि मिलन आई जिमि राती’

अयोध्या में ऐसे आयोजन समय-समय पर अवश्य होने चाहिए, जिनकी गूंज देश के बाहर तक सुनाई दे। योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल राम नाईक ने इस कल्पना को साकार करने का मंसूबा दिखया। सरकारी मशीनरी के साथ ही समाज का योगदान हुआ। इसने अयोध्या की दीपावली को ऐतिहासिक बना दिया। कल्पना की जा सकती है कि त्रेता में जब प्रभु राम, जानकी और लक्ष्मण अयोध्या वापस आये थे, तब ऐसा ही उत्साह रहा होगा। यह आशा करनी चाहिए कि अयोध्या में प्रतिवर्ष इसी धूमधाम के साथ दीपावली का आयोजन होगा।

त्रेता युग में लौटा तो नहीं जा सकता, लेकिन उसकी कल्पना और प्रतीक से ही मन प्रफुल्लित हो जाता है। अयोध्या में ऐसे ही चित्र सजीव हुए। इस आयोजन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि इसमे आमजन आस्था के भाव से सहभागी बना। यह प्रसंग भी रामचरित मानस के वर्णन जैसा प्रतीत होता है।

नाना भांति सुमङ्गल साजे। हरषि नगर निसान बहु बाजे। ।

जँह तंह नारी निछावरि करही। देहि असीस हरष उर भरही। ।

भारत कभी विश्वगुरु हुआ करता था। ज्ञान और संस्कृति ने उसे इस गौरवशाली मुकाम पर पहुंचाया था। शांति और अहिंसा के साथ इस विरासत का विश्व के बड़े हिस्से में प्रसार हुआ। आज भी अनेक देशों ने इस विरासत को सहेज कर रखा है। वहां आज भी रामकथा जनजीवन से जुड़ी है। इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम देशों में आज भी रामलीला का मंचन होता है। यहां लोगो का मानना है कि उन्होंने मजहब अवश्य बदला है, लेकिन संस्कृति को बदला नही जा सकता। भारत से गिरमिटिया बन कर गए श्रमिक अपने साथ केवल राम चरित मानस की लघु प्रति लेकर गए थे। रामकथा आज भी उनकी धरोहर है। रामलीला के अनेक रूप वहां प्रचलित है।

विदेशी आक्रांताओं ने भारत की सांस्कृतिक विरासत को समाप्त करने में कोई कसर नही छोड़ी थी। अपनी सभ्यता के विस्तार हेतु उन्होने प्रत्येक संभव प्रयास किये। इसमें तलवार और प्रलोभन दोनो का खुलकर प्रयोग हुआ। लेकिन, एक सीमा से अधिक उन्हें सफलता नहीं मिली। वह शासन पर कब्जा जमाने मे अवश्य कामयाब रहे। यह राजनीतिक परतन्त्रता थी। लेकिन, सच्चाई यह है कि भारत सांस्कृतिक रूप से कभी परतन्त्र नही हुआ।

विश्व की अन्य प्राचीन सभ्यताएं समय के थपेड़ों में समाप्त हो गई। लेकिन, क्रूर आक्रांताओं के सदियों तक चले प्रहारों के बावजूद भारतीय सभ्यता संस्कृति का प्रवाह आज भी कायम है। लेकिन, सदियों की गुलामी ने अपनी विरासत के प्रति आत्मगौरव को अवश्य कमजोर किया। त्रेता युग के समय से दीपावली मनाई जा रही है। तब अयोध्या की दीपावली वैश्विक आकर्षण का अवसर होता होगा।

विदेशी आक्रांताओं की वजह से अयोध्या उपेक्षित रह गई। यह आस्था का केंद्र तो बना रहा। लेकिन, एक प्रकार की उदासी यहां दिखाई देती थी। अपने को धर्मनिरपेक्ष बताने वाली सरकार अयोध्या से एक दूरी भी बना कर चलती थी। शायद इससे उन्हें अपनी सेकुलर छवि के लिए खतरा दिखाई देता हो। यहाँ के लिए कई योजनाएं अधूरी रह गई। जबकि इसे विश्व पर्यटन के मानचित्र पर स्थापित करने का प्रयास होना चाहिए था।

यह सराहनीय है कि उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या के महत्व को व्यापक सन्दर्भो में देखा है। इसमें आस्था के साथ ही पर्यटन को प्रोत्साहन देने का विचार भी समाहित है। वैसे भी दीपावली का आध्यात्मिक ही नहीं ,सामाजिक, सांस्कृतिक एवं पर्यावरणीय महत्व भी है। यह अंधकार को मिटाने और प्रकाश फैलाने का पर्व है। पूरा समाज इसमें सहभागी होता है।   

नारी कुमुदनी अवध सर, रघुपति बिरह दिनेस।

अस्त भये बिगसत भई, निरखि राम राकेस। ।          

अयोध्या में ऐसे आयोजन समय-समय पर अवश्य होने चाहिए, जिनकी गूंज देश के बाहर तक सुनाई दे। योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल राम नाईक ने इस कल्पना को साकार करने का मंसूबा दिखया। सरकारी मशीनरी के साथ ही समाज का योगदान हुआ। इसने अयोध्या की दीपावली को ऐतिहासिक बना दिया। कल्पना की जा सकती है कि त्रेता में जब प्रभु राम, जानकी और लक्ष्मण अयोध्या वापस आये थे, तब ऐसा ही उत्साह रहा होगा। यह आशा करनी चाहिए कि अयोध्या में प्रतिवर्ष इसी धूमधाम के साथ दीपावली का आयोजन होगा।

इस बार देश ही नहीं, विदेशी पर्यटक भी बड़ी संख्या में यहां पहुंचे। इस संख्या में बढ़ोत्तरी होगी। ऐसे आयोजन के लिए अयोध्या में ढांचागत सुविधाओं का भी विकास होगा। लोग अपनी इस विरासत के प्रति गर्व करना सीखेंगे। यही बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कही। इसी प्रकार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी व्यापक नजरिये के साथ चल रहे है।

उन्होने अयोध्या में त्रेता युग जैसी दीपावली की योजना ही  नही बनाई थी, ताजमहल संबन्धी पर्यटन की समीक्षा का भी ऐलान किया। मुख्यमंत्री इसी महीने छब्बीस तारीख को आगरा जाएंगे। वह स्वयं यहां पर्यटन बढ़ाने के उपायों पर विचार करेंगे। इससे उन लोगो के मुंह बंद होने चाहिए, जो अयोध्या की दिव्य दीपावली को संकुचित नजर से देख रहे हैं। योगी ‘सबका साथ सबका विकास’ पर अमल कर रहे हैं।  

स्पष्ट है कि इन मसलो पर योगी आदित्यनाथ व्यापक दृष्टिकोण लेकर चल रहे है। एक यह कि वह चाहते है कि देश अपनी विरासत,धरोहर पर गर्व करे,दूसरा यह कि यहां विश्वस्तरीय पर्यटन को बढ़ावा मिले। अयोध्या में प्रकाश-पर्व का जिस प्रकार आयोजन हुआ, उसका दूरगामी सकारात्मक प्रभाव होगा। यहाँ से निकले सन्देश का वैश्विक महत्व है। इसे अनदेखा नही किया जा सकता। सब कुछ प्रतीकात्मक था। लेकिन, भावनाओं की अभिव्यक्ति भावविह्वल करती है।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं। ये उनके  निजी विचार हैं।)