‘एजेंडा पहले ही नहीं था, अब संख्याबल भी नहीं रहा, फिर भी कुमारस्वामी से कुर्सी नहीं छूट रही’

कर्नाटक का सियासी घमासान राज्‍य के संचालन को कितना नुकसान पहुंचा रहा होगा, इस दिशा में कोई सोचने को तैयार नहीं है। हाथी निकल गया लेकिन पूंछ अटक गई है। पूरी कैबिनेट जा चुकी लेकिन कुमार स्‍वामी अभी भी बालहठ की तरह अपना पद पकड़े हुए हैं, मानो उनके सत्‍ता में बने रहने से रातोरात कोई चमत्‍कार हो जाएगा।

कर्नाटक की राजनीति में इन दिनों जो भी चल रहा है वह किसी से छुपा नहीं है। वहां की सियासत में नित नई उठापटक हो रही है और यह उठापटक अब एक सियासी तमाशे का रूप ले चुकी है। देश की जनता इस तमाशे की दर्शक बनी हुई है और कर्नाटक विधानसभा की हलचल अब खुली किताब हो गई है।

राज्‍य में सत्‍तारू़ढ़ कांग्रेस और जेडीएस की गठबंधन की सरकार बिल्‍कुल गिरने की कगार पर पहुंच चुकी है। इसका कारण गठबंधन सरकार के विधायकों का बागी हो जाना और संख्‍या बल गिर जाना है। लेकिन आश्‍चर्य यह नहीं है कि साल भर पहले जोरशोर से बनी यह सरकार गिरने की कगार पर क्‍यों है, बल्कि आश्‍चर्य यह है कि विधानसभा में अपना बहुमत परीक्षण करने से यह सरकार कतरा क्‍यों रही है? 

पिछले पखवाड़े भर से कर्नाटक में चले आ रहे सियासी भूचाल की पराकाष्‍ठा शुक्रवार रात देखने को मिली जब राज्‍यपाल के कहने के बाद भी स्‍पीकर ने बहुमत परीक्षण नहीं करवाया। केवल इसी आधार पर विधानसभा की कार्यवाही अब सोमवार तक के लिए स्‍थगित कर दी गई है।

कर्नाटक चुनाव के बाद इसी विधानसभा में भाजपा के मुख्‍यमंत्री पद के उम्‍मीदवार बीएस येदियुरप्‍पा के सामने जब बहुमत परीक्षण की चुनौती थी तो वे इससे भागे नहीं। उन्‍होंने ना ही पलायन का रास्‍ता चुना, ना ही कुतर्क दिए, ना हंगामा किया और ना ही व्‍यर्थ में विधानसभा का समय नष्‍ट किया। उन्‍होंने चुपचाप नियति को स्‍वीकारा और कहा कि हमारे पास संख्‍या बल नहीं है। इस आधार पर यहां कांग्रेस और जेडीएस की गठबंधन सरकार बन गई। 

अब उसके बाद नाटकीय घटनाक्रमों की लंबी सिलसिलेवार श्रृंखला के बाद यह सरकार उसी मुकाम पर आ पहुंची है जहां इसे अपना संख्‍या बल साबित करना है तो सवाल उठता है कि ऐसे में ये लोग बचकानी हरकतें करते हुए भाग क्‍यों रहे हैं। पलायन क्‍यों कर रहे हैं। समय टालने से क्‍या होगा। यदि आपके पास बहुमत नहीं है तो स्‍वीकार करिये। रास्‍ता छोड़िये। लेकिन यह क्‍या बात हुई कि राज्‍यपाल तक के आदेश का उल्‍लंघन करके आवश्‍यक कार्यवाही तक से कन्‍नी काटी जा रही है। 

असल में यह एक ऐसी स्वार्थ आधारित गठजोड़ वाली सरकार है, जिसके पास कोई विजन नहीं है। इनके पास बहुमत नहीं है, यह लगभग साबित हो चुका है, बावजूद सत्‍ता का मोह इस कदर पैठ जमा चुका है कि सरकार छोड़े नहीं छूट रहा है। एजेंडा पहले ही नहीं था, अब संख्याबल भी नहीं रहा, मगर कुमार स्वामी से अब भी कुर्सी नहीं छूट रही। बिना किसी आधार के अंतिम बिंदु तक कैसे स्‍वयं को थोपा जाए, यही नीति कांग्रेस सदा से अपनाती आई है। 

यहां यह स्‍मरण किया जाना चाहिये कि जब येदियुरप्‍पा सदन में अपना बहुमत साबित नहीं कर पाए थे तो उसके पहले कांग्रेस और जेडीएस दोनों के नेताओं ने किस प्रकार भाजपा पर विधायकों की खरीद-फरोख्‍त का आरोप लगाया था। भाजपा अध्‍यक्ष, प्रधानमंत्री पर ये दल सरेआम आरोप लगाते हुए छींटाकशी करते नहीं थक रहे थे। उस समय भी देश में कर्नाटक की राजनीति का खासा तमाशा बन गया था।

यह सब देखकर आश्‍चर्य होता था कि ये दल किस प्रकार से अपने विधायकों को छुपाते-बचाते फिर रहे थे ताकि कथित रूप से इन्‍हें प्रभावित ना किया जा सके। आज समय का चक्र घूमकर वहीं आ पहुंचा है। इतिहास खुद को दोहरा रहा है। जिन विधायकों को वे गोपनीय संपत्ति की तरह छुपाते-बचाते फिर रहे थे, वे ही बागी हो गए हैं। वे सरेआम इनका दामन छोड़ चुके हैं। 

इतनी छीछालेदर के बावजूद यदि कांग्रेस-जेडीएस से कर्नाटक की गद्दी नहीं छूट रही है तो यह निर्लज्जता की पराकाष्‍ठा के सिवाय कुछ नहीं है। कर्नाटक का सियासी घमासान राज्‍य के संचालन को कितना नुकसान पहुंचा रहा होगा, इस दिशा में कोई सोचने को तैयार नहीं है। हाथी निकल गया लेकिन पूंछ अटक गई है। पूरी कैबिनेट जा चुकी लेकिन कुमार स्‍वामी अभी भी बालहठ की तरह अपना पद पकड़े हुए हैं, मानो उनके सत्‍ता में बने रहने से कोई चमत्‍कार रातोरात हो जाएगा। 

सवाल यह नहीं है कि अब यह सरकार अपना बहुमत कैसे साबित करेगी, सवाल तो यह है कि आखिर इस सरकार के गिरने की नौबत क्यों आ गयी? क्‍या कारण है कि साल भर के भीतर सारे नेता बारी-बारी से बिदक गए? वास्तव में कांग्रेस और जेडीएस किसी समय एक दूसरे के खिलाफ बोलते नहीं थकते थे, और फिर अवसरवादिता दिखाते हुए हाथ भी मिला लिया। लेकिन विरोध एकदम खत्म नहीं हुआ और यही कारण है कि आज कर्नाटक सरकार की दुर्गति एक सावर्जनिक तमाशा बन चुकी है। 

विधानसभा में स्‍पीकर शुक्रवार को हर स्थिति में प्रक्रिया समाप्‍त करना चाहते थे, लेकिन कुमारस्‍वामी का अड़ियल रवैया ना नई सरकार बनने दे रहा है, ना वर्तमान सरकार पर ही स्थिति स्पष्ट होने दे रहा है। यह सीधे तौर पर संवैधानिक मर्यादाओं का भी उल्‍लंघन है। आखिर कर्नाटक में ऐसा क्‍या चल रहा है कि अनिर्णय की स्थिति चरम पर जा पहुंची है। गुरुवार की रात भाजपा के विधायक आश्‍वस्‍त थे कि शुक्रवार को तो बहुमत परीक्षण हो ही जाएगा और वे बिना अंतिम निर्णय के अब यहां से नहीं हिलेंगे। इसके चलते ही वे उस रात घर भी न जाते हुए विधानसभा में ही रुके। वहीं पर भोजन किया और वहीं सोए। 

यह सब अति-नाटकीयता का शीर्ष है। यह तो सीधा सा नियम है कि यदि किसी दल के पास संख्‍या बल नहीं है तो उसे रास्‍ते से हट जाना चाहिये। लेकिन कांग्रेस-जेडीएस की इस दिशा हीन, एजेंडा हीन, विकल्‍प हीन और विधायक हीन सरकार को ऐसा क्‍या गुमान है, क्‍या भ्रम है जो सत्‍ता को जकड़कर रखने पर आमादा है। साल भर में इस सरकार ने कोई उल्‍लेखनीय कार्य नहीं किया। तिस पर, कुमारस्‍वामी की उद्दंडता का यह आलम है कि वे राज्‍यपाल को कुछ नहीं समझने की हिमाकत कर रहे हैं। कर्नाटक के राज्‍यपाल वजुभाई वाला द्वारा आहुत बहुमत परीक्षण एक संवैधानिक और अनिवार्य प्रक्रिया है जिसका पालन कुमार स्‍वामी को करना चाहिये। 

आश्‍चर्य है कि कुमार स्‍वामी अब समय लेने के नाम पर बगलें झांक रहे हैं। शुक्रवार को होने वाला बहुमत परीक्षण अब सोमवार तक टल गया है लेकिन माना जा रहा है कि सोमवार का दिन कुमारस्‍वामी की गठबंधन सरकार का अंतिम दिन होगा। उम्‍मीद है, सोमवार को इस मिथ्‍या सरकार का पतन हो जाएगा और कर्नाटक को एक स्‍थायी शासन मिलने की दिशा में कुछ प्रगति होगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)