कोरोना वैक्सीन पर राजनीति विपक्ष की मुद्दाहीनता को ही दिखाती है

निश्चित रूप से देश में कोरोना वैक्सीन का निर्माण आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ते कदम का द्योतक है, लेकिन शर्मनाक है कि इस उपलब्धि में भी देश के विपक्षी दलों को राजनीतिक संभावना दिखाई देने लगी और वे सरकार व्यर्थ विरोध करने उतर पड़े हैं। कोरोना आपदा से लेकर उसकी वैक्सीन तक विपक्ष की ये नकारात्मक राजनीति दर्शाती है कि इस देश में विपक्ष किस कदर मुद्दाहीन हो गया है। 

भारत की राजनीति में 2014 के बाद लगातार यह देखने में आ रहा है कि देश हित से जुड़े विषय पर प्रमुख विपक्षी दल मसलन कांग्रेस, सपा इत्यादि पार्टियां पूरे सार्वजनिक परिचर्चा को भ्रमित करने लगती हैं। इसके पीछे राजनीतिक नफा-नुकसान साधने के अलावा अन्य कोई उद्देश्य नहीं होता है।

जनधन खाते से शुरू हुआ यह विपक्षी भ्रमजाल राम-मंदिर, नागरिकता संशोधन क़ानून, तीन तलाक, कृषि सुधार से होते हुए अब ‘कोरोना वैक्सीन’ तक आ पहुंचा है। हालांकि उपरोक्त सभी विषयों पर विपक्षी दलों द्वारा प्रायोजित भ्रमजाल पूर्ण रूप से असफल रहे हैं, बावजूद इसके वे प्रयासरत हैं।

साल 2019 के अंत से शुरू हुआ कोरोना वायरस 2020 में वर्ष पर्यंत पूरे विश्व के सामने गंभीर चुनौती बना रहा। दुनिया भर के वैज्ञानिक इस जानलेवा वायरस का टीका बनाने में दिन-रात जुटे रहे। भारत भी इस चुनौती का डटकर सामना कर रहा था। यहां के वैज्ञानिक भी अथक परिश्रम कर रहे थे।

साभार : Business Standard

अंततः जनवरी के पहले हफ्ते में भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया वी.जी. सोमानी द्वारा दो कोरोना वैक्सीन ‘कोविशील्ड’ और ‘कोवैक्सीन’ को इस्तेमाल की आपात मंजूरी दे दी गयी। यहां महत्वपूर्ण रूप से दो तथ्य हैं जिन्हें वी.जी. सोमानी ने स्वयं स्वीकार किया है।

पहला यह कि दोनों टीके को बनाने वाली कंपनियां क्रमशः सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक ने ट्रायल के सभी आंकड़े जमा करा दिए हैं। दूसरा उन्होंने कहा कि यदि सुरक्षा से जुड़ी थोड़ी भी शंका होगी तो हम किसी भी चीज़ की अनुमति नहीं देंगे। यह दोनों वैक्सीन 110 प्रतिशत सुरक्षित हैं।

इस अति महत्वपूर्ण उपलब्धि पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वैक्सीन को मंजूरी मिलने के बाद कोरोना मुक्त राष्ट्र होने का रास्ता साफ़ हो गया है। यह कोरोना के खिलाफ एक कठिन लड़ाई का निर्णायक मोड़ है।

निस्संदेह यह आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ते कदम का द्योतक है, लेकिन शर्मनाक है कि इस उपलब्धि में भी देश के विपक्षी दलों को राजनीतिक संभावना दिखाई देने लगी जिस पर वे अपनी वोट बैंक की रोटियां सेंकना चाहते हैं।

साभार : Jansatta

कांग्रेस नेता शशि थरूर, जयराम रमेश और सपा के अखिलेश यादव ने वैक्सीन के विरोध में बयान देना शुरू कर दिया। यहां तक कहा गया कि यह वैक्सीन भाजपा की वैक्सीन है। वे भाजपा की वैक्सीन नहीं लगवाएंगे। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी वैक्सीन को लेकर सवाल उठाते रहे हैं।

सवाल यह नहीं है कि अखिलेश यादव वैक्सीन लगवाएंगे या नहीं, बल्कि यह है कि महज राजनीतिक स्टंट के लिए वे देश के उन हजारों वैज्ञानिकों के परिश्रम को नकार दे रहे हैं जो लगातार वैक्सीन के लिए कार्यरत रहे हैं।

एक ओर जहां देश का वैज्ञानिक वर्ग यह कह रहा है कि वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित है। देश के स्वास्थ्य मंत्री कह रहे हैं कि वैक्सीन की अनुमति के लिए विज्ञान समर्थित प्रोटोकॉल का पालन किया गया है। वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दलों का यह नकारात्मक रवैया बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।

शशि थरूर हों, जयराम रमेश हों अथवा अखिलेश यादव, इन्हें समझ लेना चाहिए कि कोरोना वैक्सीन पर संबंधी राजनीति से इन्हें बजाय बदनामी के कुछ हासिल नहीं होने वाला है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 जनवरी को टीकाकरण की शुरुआत के अवसर पर कहा कि भारत का कोविड-19 टीकाकरण अभियान बेहद मानवीय और महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर आधारित है। सर्वाधिक जरूरतमंद लोगों को वैक्सीन सबसे पहले दी जाएगी।

तात्पर्य यह कि देश के नागरिकों के स्वास्थ्य संबंधी विषय पर समूची सरकार एकजुट होकर लोक-कल्याणार्थ प्रयासरत है, तो विपक्ष आज भी अपनी उसी निरर्थक भूमिका का निर्वहन कर रहा है।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत में कोरोना जैसे वायरस का पहला केस जब मिला, तब देश में मास्क उत्पादन की संख्या शून्य थी। पीपीई किट नहीं थे। सामाजिक दूरी का कोई अभ्यास नहीं था लेकिन हमारे देश भर के स्वास्थ्य कर्मी, पुलिस कर्मी, सफाई-कर्मियों की जी-तोड़ मेहनत और केंद्र की मोदी सरकार द्वारा समयोचित और सूझबूझ भरे नीतिगत फैसलों ने कोरोना से व्यवस्थित लड़ाई लड़ने वाले समाज का निर्माण किया है।

अब आज वैक्सीन का निर्माण करके देश ने इस लड़ाई को एक निर्णायक मोड़ देने का काम किया है। अतः विपक्षी दलों को इसपर व्यर्थ की राजनीति की बजाय देश के वैज्ञानिकों के काम की सराहना करनी चाहिए। और यदि इतना भी नहीं कर सकते तो कम से कम इस मामले पर मौन रहना चाहिए।

बहरहाल, विपक्षी दल जो भी कहें लेकिन वास्तविकता तो यही है कि कोरोना वैक्सीन के निर्माण में मिली सफलता नए और आत्मनिर्भर भारत की परिचायक है और पूरे विश्व में देश की शक्ति-सामर्थ्य का परिचय देने वाली है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)