मजबूत होते भारतीय अर्थव्यवस्था के मानक

मोदी सरकार ने 2014 में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए जनधन बैंक खाते खोलने के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया था, जिसका उद्देश्य प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) सहित कई वित्तीय सेवाओं को गरीबों के लिए सुलभ बनाना था। कोरोना काल में भी जनधन खातों के कारण ही सरकार समय पर गरीबों को वित्तीय सहायता उपलब्ध करा सकी, जिससे हजारों-लाखों लोग असमय काल-कवलित होने से बच सके थे।

अर्थव्यवस्था को मजबूत करने वाले अनेक कारक होते हैं। हाल में, भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने वाले ऐसे कई मानकों में बेहतरी आई है। रेटिंग एजेंसियों ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत होने की बात कही है। हालाँकि, दुनिया के अन्य देश, जिसमें विकसित देश भी शामिल हैं कोरोना महामारी, भू-राजनैतिक संकट, मंदी, कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऊँची कीमत, लगातार बढ़ती महंगाई से जूझ रहे हैं और उनकी अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर भारत से कम है।

देश में जनधन खातों की कुल संख्या 50 करोड़ के आंकड़े को पार कर गई है, जिनमें से 56 प्रतिशत खाते महिलाओं के हैं। उल्लेखनीय है कि इनमें से लगभग 67 प्रतिशत खाते ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में खोले गए हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि वित्तीय समावेशन की राह पर हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।

13 अगस्त तक जनधन खातों में कुल जमा राशि 2.03 लाख करोड़ रुपये से अधिक थी और इनमें अब तक 34 करोड़ रुपे कार्ड मुफ्त जारी किए गए हैं, जो यह दर्शाता है कि ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में बचत करने की प्रवृति बढ़ रही है। रुपे कार्ड से ऑनलाइन बाजार को पंख लगा है।

यह आंकड़ा इस बात की भी पुष्टि करती है कि गाँवों में भी लोग खर्च कर रहे हैं, जिससे मांग में इजाफा हो रहा है और अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है। आज अमेजन, फ्लिप्कार्ट, अजिओ, मिन्त्रा आदि गाँव में भी डिलीवरी कर रहे हैं, जिससे ग्रामवासियों को वाजिब कीमत पर घर बैठे अपनी पसंद का सामान मिल रहा है और दलालों से मुक्ति मिली है।

मोदी सरकार ने 2014 में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए जनधन बैंक खाते खोलने के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया था, जिसका उद्देश्य प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) सहित कई वित्तीय सेवाओं को गरीबों के लिए सुलभ बनाना था। कोरोना काल में भी जनधन खातों के कारण ही सरकार समय पर गरीबों को वित्तीय सहायता उपलब्ध करा सकी, जिससे हजारों-लाखों लोग असमय काल-कवलित होने से बच सके थे।

परंपरागत शिल्पकारों के 30 लाख परिवारों, बुनकर, सोनार, लोहार, धोबी, हजाम आदि को लाभ पहुँचाने के लिए प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना को बैंक 17 सितंबर से अमलीजामा पहनाना शुरू करेगी। इस योजना को मूर्त रूप देने के लिए सरकार ने 5 सालों के लिए 13,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। बैंक 5 प्रतिशत ब्याज पर पहले चरण में 1 लाख रुपये और दूसरे चरण में 2 लाख रुपये तक ऋण मुहैया कराएगी। वित्त मंत्रालय ने बैंकों के प्रमुखों को निर्देश दिया है कि प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना तहत प्राप्त आवेदनों का तेजी से निपटान सुनिश्चित करें और इस योजना के तहत स्वीकृत ऋण और कर्ज के वितरण हेतु निरंतर निगरानी रखें।

मूडीज ने भारत के स्थिर परिदृश्य का दर्जा बरकरार रखा है। इसका यह अर्थ हुआ कि अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप भारत की अर्थव्यवस्था में तेज वृद्धि जारी रहने की प्रबल संभावना है। मूडीज के अनुसार भारत की जीडीपी में तेजी बरक़रार रहेगी और भारतीय अर्थव्यवस्था मुसलसल मजबूत होती रहेगी।

अर्थव्यवस्था के मजबूत रहने से राजकोषीय समेकन में आसानी होगी और सरकार के कर्ज में स्थिरीकरण आयेगा। मूडीज का मानना है कि भारत की आर्थिक वृद्धि कम से कम 2 सालों तक अन्य सभी जी-20 देशों की अर्थव्यवस्थाओं से तेज रहेगी। भारत की संभावित वृद्धि दर करीब 6 से 6.5 प्रतिशत रहने के आसार हैं, जो महामारी के दौरान 6 प्रतिशत से कम थी।

मूडीज ने यह भी कहा कि भारत अर्थव्यवस्था को लगातार मजबूत बनाने की कोशिश कर रहा है और इसलिए इसकी आर्थिक व आकस्मिक देनदारी जोखिम कम हो रही है। यह भी माना जा रहा है कि अगर भारत के राजकोषीय समेकन में अपेक्षित तेजी आयेगी तो मूडीज भारत की रेटिंग बढ़ा सकता है। राजकोषीय समेकन से सरकार के कर्ज का बोझ घटेगा और कर्ज की वहनीयता में सुधार होगा और राजकोषीय ताकत में वृद्धि होगी।

भारतीय स्टेट बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग, कोर्पोरेट केंद्र, मुंबई से प्रकाशित शोधपरक रिपोर्ट इकोरैप के अनुसार आयकर रिटर्न के आधार पर वित्त वर्ष 2022-23 में भारित औसत आय 13 लाख रुपये हो जायेगी, जबकि कर आकलन वर्ष 2013-14 में यह 4.4 लाख रुपये थी। एसबीआई रिसर्च के मुताबिक मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड जैसे छोटे राज्यों ने भी विगत 9 सालों में आयकर रिटर्न दाखिल करने के मामले में 20 प्रतिशत से अधिक बढ़त दर्ज की है। इससे साफ़ हो जाता है कि हाल में न केवल लोगों की आमदनी बढ़ी है, बल्कि कर अनुपालन भी बढ़ा है।

प्रधानमंत्री की लिंक्डइन पोस्ट के अनुसार विभिन्न आय समूहों में कर-आधार बढ़ने और प्रत्येक समूह के आयकर रिटर्न जमा करने में वित्त वर्ष 2022-23 में कम-से-कम तीन गुना वृद्धि हुई है। वर्ष 2014 से लेकर 2023 के बीच जमा किए गए आयकर रिटर्न की तुलना करने पर सभी राज्यों में बढ़ी हुई कर भागीदारी की तस्वीर गुलाबी दिखती है।

उत्तर प्रदेश, आयकर रिटर्न दाखिल करने के मामले में अग्रणी प्रदर्शन करने वाले राज्य के रूप में उभरा है। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के अनुसार विकास की मौजूदा रफ़्तार कायम रहने पर वर्ष 2047 में भारत की आजादी के 100 साल पूरा होने के समय भारत एक विकसित देश बन सकता है। अभी भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।

वित्त वर्ष 2023-24 के पहले 4 महीनों (अप्रैल-जुलाई) के दौरान भारत के शीर्ष 10 निर्यात केंद्रों में ब्रिटेन को किया जाने वाला वाणिज्यिक निर्यात बढ़ा है। ब्रिटेन को किये जाने वाले निर्यात में 20.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और इस अवधि के दौरान यह बढ़कर 4.5 अरब डॉलर हो गया है। वित्त वर्ष 23 की इस अवधि में ब्रिटेन आठवें बड़े निर्यात केंद्र से ऊपर पहुंचकर भारत का पांचवां सबसे बड़ा निर्यात केंद्र बन गया है।

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर के अनुसार वर्ष  2026 तक देश के जीडीपी में डिजिटल अर्थव्यवस्था का योगदान 20 प्रतिशत से अधिक होने का अनुमान है।

भारत एक ऐसा देश है, जिसने तकनीक को बहुत तेजी से अपनाया है और अब इसने दुनिया के समक्ष तकनीकी समाधान पेश करना शुरू कर दिया है। डिजिटल अर्थव्यवस्था का जीडीपी में योगदान 2014 में चार से साढ़े चार प्रतिशत था, जो आज बढ़कर 11 प्रतिशत हो गया है।

भारत ने तकनीक को न केवल नवाचार के लिये, बल्कि विविध क्षेत्रों में समाधान प्रस्तुत करने के लिए भी अपनाया है, जिससे पिछले कुछ सालों में लोगों के जीवन, परिचालन व्यवस्था, प्रशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य, लोकतंत्र के तकनीकी स्वरूप आदि में आमूल-चूल बदलाव आया है। इन कारणों की वजह से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आने वाले दशक को प्रौद्योगिकी का दशक कहा है।

ऐसे में कहा जा सकता है कि मुश्किल समय में भी भारतीय अर्थवयवस्था क्रमशः  बेहतर होती जा रही है और यह सब मुमकिन हो रहा है सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा समय-समय पर उठाये जा रहे समीचीन क़दमों व पहलों से।

(फीचर इमेज साभार : Invest19)

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक में सहायक महाप्रबंधक (ज्ञानार्जन एवं विकास) हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)