भारत

अपनों के दबाव में भारत से सम्बन्ध सुधारने को मजबूर चीन !

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी चीन यात्रा से एशिया की दो महाशक्तियों के बीच डोकलाम विवाद के बाद पैदा हुई खटास खत्म होने की संभावना है। डोकलाम विवाद पर दोनों देश रणभूमि में आमने-सामने थे। मोदी 27 और 28 अप्रैल को चीन यात्रा पर होंगे। वहां वे अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर विचारों का आदान-प्रदान करने तथा दोनों देशों के बीच परस्पर संवाद को बढ़ावा देने के लिए चीन के वुहान शहर में एक

फ्रांस के राष्ट्रपति की इस भारत यात्रा से दोनों देशों के बीच संबंधों का नया अध्याय शुरू हुआ है !

फ्रांस के राष्ट्रपति की भारत यात्रा से दोनों देशों के रिश्तों का नया अध्याय शुरू हुआ है। दोनों के बीच इतना विश्वास और सहयोग का माहौल पहले कभी नहीं था। इतना विस्तार भी अभूतपूर्व है। इसमें सुदूर मिर्जापुर के छानबे ब्लाक से लेकर हिन्द महासागर का इलाका भी शामिल है। फ्रांस बड़ी मात्रा में निवेश पर सहमत हुआ। जहाँ निवेश किया है, उस जगह जाना भी विदेशी राष्ट्रपति के लिए सुखद रहा।

कूटनीतिक दृष्टि से नैसर्गिक साझीदार हैं भारत और इजरायल

14 जनवरी को भारत दौरे पर आये इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रोटोकॉल तोड़कर दिल्‍ली एयरपोर्ट पर गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। दरअसल इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू का यह दौरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इजरायल की यात्रा करने के महज छह महीने बाद हुआ है एवं इससे दोनों देशों के बीच 25 साल के कूटनीतिक संबंध को मजबूती मिली है।

भारत-इजरायल संबंधों में मजबूत स्थिति में भारत ही रहेगा !

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच नौ क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति कायम हुई है। कई अनुबंधों पर हस्ताक्षर भी किए गए हैं। इन नौ क्षेत्रों में कृषि, तेल और गैस; सुरक्षा और साइबर तकनीक; पेट्रोलियम, फिल्म निर्माण, उड्डयन, नवीन ऊर्जा, अन्तरिक्ष और पारंपरिक चिकित्सा जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इसके अलावा आतंकवाद के मोर्चे पर भी दोनों देश पीड़ित हैं। इजरायल जहां

जाधव को रिहा करे पाकिस्तान, तो ही सुधरने की ओर बढ़ेंगे भारत-पाक संबंध!

पाकिस्तान की जेल में बंद पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव की मां और पत्नी ने उनसे 30 मिनट के लिए मुलाकात की। जरा कल्पना कीजिए कि इन तीनों में जब मुलाकात हुई होगी तो वे पल कितने भावुक होंगे। तीनों एक लंबे अंतराल के बाद मिल रहे थे। हालांकि पाकिस्तान ने इस मुलाक़ात में भी अपनी नापाक हरकतें दिखा ही दीं। पाकिस्तान अपनी दुष्ट हरकतों से बाज आने का नाम ही नहीं ले रहा है।

भारत-ईरान की चाबहार परियोजना से सकते में चीन, अलग-थलग पड़ा पाकिस्तान !

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर ओर अपनी कूटनीति का डंका मनवा रहे हैं। वर्षों से चीन भारत को चारों तरफ से घेरने की रणनीति के तहत पड़ोसी देशों में अपनी पैठ बढ़ा रहा है। अब प्रधानमंत्री चीन व पाकिस्‍तान जैसे देशों को उन्‍हीं की भाषा में जवाब दे रहे हैं। चीन के बढ़ते प्रभुत्‍व को कम करने के लिए प्रधानमंत्री ने सबसे पहले “लुक ईस्‍ट पॉलिसी” को “एक्‍ट ईस्‍ट पॉलिसी” में बदला। आसियान और शंघाई कोऑपरेशन

ईरान-पाकिस्तान में बढ़ रही तल्खियां, भारत के लिए है बड़ा अवसर

पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा ने बीते दिनों ईरान की यात्रा की। ये कोई सामान्य औपचारिक यात्रा नहीं थी बाजवा की। दरअसल ईरान-पाकिस्तान के संबंधों में लगातार तल्खी आ रही है। पिछले साल जिस दिन भारतीय सेना ने आजाद कश्मीर में आतंकी शिविरों को बर्बाद किया था, उसी दिन ईरान ने भी पाकिस्तान पर हमला किया था। दरअसल 28-29 सितंबर, 2016 की रात पाकिस्तान को लंबे समय तक

अमेरिका की अफगानिस्तान नीति पर भारत के सधे हुए कदम

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति हमेशा चौंकाने वाली होती है। फिर चाहे वो डोकलाम विवाद के समय चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान अनपेक्षित मुलाकात हो या फिर सारे पूर्वाग्रहों को तोड़ते हुए इजरायल का दौरा करने का निर्णय हो। हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने अमेरिका के शीर्ष थिंक टैंक  सीएसआईएस में अपने संबोधन में कहा था कि  हम उम्मीद करते

यूएन में भारत बोला पाकिस्तान है ‘टेररिस्तान’, अलग-थलग पड़ा पाक !

पाकिस्तान को जब भी अंतर्राष्ट्रीय मंचों से अपना पक्ष रखने का अवसर मिलता है, तो वो वैश्विक समस्याओं के निदान में अपना सहयोग या सुझाव देने की बजाय सिर्फ भारत पर बेबुनियाद आरोप लगाने और कश्मीर समस्या का वितंडा खड़ा करने तक ही सिमटकर रह जाता है। पाकिस्तान लंबे समय से कश्मीर समस्या का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने की पुरजोर कोशिश करता आ रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से लेकर सेना प्रमुख तक

रोहिंग्या पर उचित और सराहनीय है केंद्र सरकार का रुख

भारत कभी भी शरणार्थी बनने में पीछे नहीं हटा है; यहूदी, पारसी जैसे कई धर्म यहाँ बसते हैं। लेकिन, राष्ट्रीय सुरक्षा को संकट में डालकर किसीको शरण देना किसी लिहाज से उचित नहीं है। रोहिंग्याओं के प्रति भारत सरकार ने शरण न देने का जो स्पष्ट और सख्त रुख अख्तियार किया है, वो न केवल उचित बल्कि प्रशंसनीय भी है।