राम मंदिर

राम मंदिर मामले में सिब्बल की अदालती दलीलों पर अपना रुख स्पष्ट क्यों नहीं कर रही कांग्रेस ?

बहुचर्चित अयोध्‍या मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। पिछले सप्‍ताह विशेष पीठ द्वारा इसकी सुनवाई के दौरान कुछ ऐसा हुआ कि राजनीतिक महकमों का इधर ध्‍यान खिंच गया। कांग्रेस नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्‍बल ने अयोध्‍या मामले की सुनवाई को 2019 लोकसभ चुनाव तक आगे बढ़ाने की अपील की। इसके पीछे उन्‍होंने तर्क दिया कि इसपर राजनीति हो सकती है।

राम मंदिर मामले पर सिब्बल की दलीलों से उजागर हुआ कांग्रेस का पाखण्ड !

राम मंदिर प्रकरण पर सर्वोच्च न्यायालय की विशेष पीठ द्वारा सुनवाई की तारीख को बढ़ा दिया गया है। अब अगली सुनवाई आठ फ़रवरी को होगी। सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल जो कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी हैं, ने यूपी सरकार के सोलिसिटर जनरल की तरफ से अदालत में प्रस्तुत तथ्यों पर संदेह जताया। सिब्बल का कहना था कि ये तथ्य पहले कभी दिखाए नहीं गए, जबकि सोलिसिटर जनरल ने इस बात से

यदि वामपंथी इतिहासकार न होते तो अबतक सुलझ गया होता राम मंदिर मुद्दा

री के के मोहम्मद ने मलयालम में लिखी अपनी आत्मकथा ‘नज्न एन्ना भारतीयन’ (मैं एक भारतीय) में सीधे तौर पर ‘रोमिला थापर’ और ‘इरफ़ान हबीब’ पर बाबरी मस्जिद विवाद को गलत ढंग से प्रस्तुत करने का आरोप में लगाते हुए लिखा है – 1976-1977 में जब प्रो. बी लाल की अगुआई में वहां पर खुदाई हुई थी, तो उसमें भी वहाँ मंदिर के साक्ष्य पाए गए थे। मोहम्मद के इस मत से इतिहासकार ‘एमजीएस नारायन’ ने भी सहमति जताई है। बावजूद इसके इन तमाम वामपंथी इतिहासकारों ने यह बात कभी नही स्वीकार की कि

हिंदू-मुस्लिम एकता की भव्य इमारत खड़ी करने का अवसर

भारत के स्वाभिमान और हिंदू आस्था से जुड़े राम मंदिर निर्माण का प्रश्न एक बार फिर बहस के लिए प्रस्तुत है। उच्चतम न्यायालय की एक अनुकरणीय टिप्पणी के बाद उम्मीद बंधी है कि हिंदू-मुस्लिम राम मंदिर निर्माण के मसले पर आपसी सहमति से कोई राह निकालने के लिए आगे आएंगे। राम मंदिर निर्माण पर देश में एक सार्थक और सकारात्मक संवाद भी प्रारंभ किया जा सकता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश ने

थाईलैंड में हिन्दू-बौद्ध दर्शन का समावेश: राम को अपना आराध्य मानते हैं वहां के लोग

थाइलैंड की मान्यता के अनुसार रामायण थाइलैंड की कहानी है। थाइलैंड को पहले सियाम कहा जाता था जिसकी राजधानी अयुत्थया थी। ऐसा माना जाता है कि अयुत्थया या अयोध्या के राजा राम थे। इनके बाद 1782 में नए राजा ने कई कारणों से पुरानी राजधानी को अपने लिए अनुपयुक्त समझा और चाओ फरया नदी की