जो मज़हब किसीके डांस करने या चेस खेलने से खतरे में पड़ जाता हो, उसे खत्म ही हो जाना चाहिए !

अगर इस्लामिक ठेकेदारों का इस्लाम इतना ही दम रखता है कि अपने अनुयायियों के गाने, नाचने और चेस खेलने से उसका अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है, तो अच्छा होगा कि वे ऐसे कमजोर मज़हब को छोड़ ही दें। वास्तव में, ऐसे कमजोर और बात-बेबात खतरे में पड़ने वाले मजहब को ख़त्म ही हो जाना चाहिए।

इस्लाम शायद ऐसा एकमात्र मज़हब है, जो आए दिन और बात-बेबात ख़तरे में पड़ता रहता है। किसी भी मुसलमान के गाना गाने, नाचने से लेकर बनाव-श्रृंगार करने तक से इस्लाम पर खतरा आ जाता है। फिर इसके स्वघोषित झंडाबरदारों द्वारा धमकी भरे फतवों का दौर शुरू हो जाता है। इतना ही नहीं, अगर इन्हें राष्ट्रगीत ‘वन्दे मातरम्’ गाने को कह दो तो उससे भी अक्सर इनके इस्लाम पर संकट आ जाता है। राष्ट्रगान के कई शब्दों से भी इनके इस्लाम को परहेज है।

अभी कुछ दिन पहले क्रिकेटर इरफ़ान पठान की बीवी के नेलपॉलिश लगाने के कारण इस्लाम खतरे में आ गया था और उस खतरे से इस्लामिक झंडाबरदारों ने इसे किसी तरह बचाया ही था कि मोहम्मद कैफ अपने बेटे के साथ चेस खेलने की गुस्ताखी कर बैठे। चेस इस्लाम में हराम ठहरी, तो उनकी चेस खेलती तस्वीर सोशल मीडिया पर आते ही इस्लाम पर फिर खतरा मंडराने लगा। इस्लाम को खतरे से बचाने के लिए इस्लाम के झंडाबरदारों द्वारा खतरनाक ढंग से कैफ को धमकाया जाने लगा। उन्हें जमकर ट्रोल किया गया, जिससे परेशान हो उन्होंने ट्विट किया – ‘ठेकेदार जी से पूछिए, सांस लेना हराम है या नहीं ?’

मोहम्मद कैफ की इसी तस्वीर पर हुआ बवाल (साभार : जी न्यूज)

गौर करें तो अक्सर हिन्दू लोग ‘खुदा’ और ‘अल्लाह’ जैसे इस्लामिक आस्था प्रतीकों का उच्चारण भी करते रहते हैं, पर कभी किसी हिन्दू को ऐसा नहीं लगा कि इससे हिन्दू धर्म पर संकट आ रहा है। फिल्मों और धारावाहिकों में हिन्दू कलाकार बड़े आराम से मुस्लिम किरदारों को निभातें हैं और खुद को इस्लाम के हिसाब से रचा-बसा दिखाते हैं, मगर कभी किसी हिन्दू ने इसपर आपत्ति नहीं की बल्कि लोग उन किरदारों को हाथों-हाथ लेते हैं। इसके अलावा वास्तविक जीवन में भी हिन्दू अक्सर इस्लामिक पर्वों को मनाने से लेकर उसके तौर-तरीकों में शामिल तक होते हैं, पर कभी हिन्दू धर्म पर इससे खतरा होने की बात सामने नहीं आयी ? वहीं इस्लाम है कि अक्सर खतरे में ही आया रहता है।

आज मुस्लिम आबादी दुनिया में दूसरे स्थान पर है। जिस गति से मुसलमानों की आबादी बढ़ रही, उम्मीद है कि कुछ समय में ये आबादी के मामले में पहले पायदान पर होंगे। मगर इतनी जनसंख्या के बाद भी इस्लाम इतना खतरे में क्यों रहता है, इसका जवाब हर बात पर ‘इस्लाम खतरे में’ की पिपिहिरी बजाने वाले इसके ठेकेदारों को देना चाहिए। दूसरी बात कि अगर इनका इस्लाम इतना ही दम रखता है कि अपने अनुयायियों के गाने, नाचने और चेस खेलने से उसका अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है, तो अच्छा होगा कि ये ऐसे कमजोर मज़हब को छोड़ ही दें। वास्तव में, ऐसे कमजोर और बात-बेबात खतरे में पड़ने वाले मजहब को ख़त्म ही हो जाना चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)