गुजरात के ये चुनाव परिणाम दर्शाते हैं कि विपक्ष के तमाम कुप्रचारों के बावजूद जनता में भाजपा की केंद्र व राज्य सरकार के प्रति भरोसे का भाव मजबूत हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस समय पार्टी केंद्र से लेकर राज्यों तक जिस प्रकार जनहित की भावना के साथ विकास-कार्य कर रही है, जनता उससे अनभिज्ञ नहीं है। यही कारण है कि लोग विपक्ष के कुप्रचारों में नहीं पड़ रहे और सरकार पर भरोसा बनाए हुए हैं।
इस सप्ताह गुजरात की स्थानीय निकाय के चुनाव परिणाम भी सामने आ गए। परिणामों में भाजपा को जहां बम्पर जीत मिली है, वहीं गुजरात की जिला पंचायत, नगर पालिका एवं पंचायत में कांग्रेस का पूरी तरह सफाया हो चुका है। गौरतलब है कि इससे पहले गुजरात में पिछले महीने हुए निकाय चुनावों के पहले चरण में भाजपा ने सभी छह नगर निगमों में जीत हासिल की थी।
इस फजीहत के बाद एक बात गौर करने योग्य रही कि नैतिकता के आधार पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अमित चावड़ा और विपक्ष के नेता परेश धराणी ने इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को इससे प्रेरणा लेना चाहिये।
राहुल गांधी और सोनिया गांधी तो अब इतनी अधिक बार हार का सामना कर चुके हैं कि उन्हें हारने की आदत ही हो गई है। आश्चर्य है कि इसके बावजूद ये लोग अपने पदों से, अपने दायित्वों से इस्तीफा नहीं देते।
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गुजरात के ये चुनाव परिणाम यह भी दर्शाते हैं कि विपक्ष के तमाम कुप्रचारों के बावजूद जनता में भाजपा की केंद्र व राज्य सरकार के प्रति भरोसे का भाव मजबूत हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस समय पार्टी केंद्र से लेकर राज्यों तक जिस प्रकार जनहित की भावना के साथ विकास-कार्य कर रही है, जनता उससे अनभिज्ञ नहीं है। यही कारण है कि लोग विपक्ष के कुप्रचारों में नहीं पड़ रहे और सरकार पर भरोसा बनाए हुए हैं।
कांग्रेस के लिए यह आंखें खोलने वाला परिणाम रहा है। शहरी क्षेत्रों में तो कांग्रेस हारी ही थी, अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी वो अपना आधार खो चुकी है। गुजरात की 33 में से 31 जिला पंचायतों, 231 तहसील पंचायतों और 81 नगर पालिकाओं के लिए गत 28 फरवरी को मतदान हुआ था।
2 मार्च को मतगणना के साथ ही भाजपा लगातार बढ़त बनाती गई, कांग्रेस दूर दूर तक कहीं नजर नहीं आई। मतदान वाली सभी 31 जिला पंचायतों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा ने 81 नगर पालिकाओं में 75 और 231 तहसील पंचायतों में 196 पर शानदार जीत हासिल की है।
वहीं कांग्रेस को चार नगर पालिकाओं और 33 तहसील पंचायतों पर सब्र करना पड़ा। दो नगर पालिकाएं अन्य के खाते में गईं। भाजपा ने 31 जिला पंचायत की 980 सीटों में से 771 पर और नगर पालिका की 2720 सीटों में से 2027 पर जीत दर्ज कर बड़ी सफलता हासिल की।
कांग्रेस की दुर्गति का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि 31 जिला पंचायत में से एक में भी कांग्रेस चुनाव नहीं जीत सकी जबकि 81 नगरपालिका में भी केवल 4 में ही कांग्रेस अपना बोर्ड बना सकी है।
दरअसल इस चुनाव में गौर करने योग्य बात यह है कि कांग्रेस शुरू से ही सरेंडर की भूमिका में रही। कहीं से भी ऐसा नहीं लगा कि कांग्रेस यहां भाजपा को चुनौती दे रही हो। यदि कांग्रेस आलाकमान आंखें मूंदकर इस हार का ईमानदारी से विश्लेषण करें तो पाएंगे कि यहां भी कांग्रेस की हार के पीछे वही गुटबाजी, अंर्तकलह वजह होगी जो कि लोकसभा चुनाव या राज्यों के विधानसभा चुनावों में सामने आती रही है।
कांग्रेस में परिवारवाद की जड़ें इस कदर पैठ चुकी हैं कि यह एक स्थायी कुटैव बन गया है जो पूरी पार्टी को लीलता जा रहा है। गुजरात में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल के लिए इन चुनावों की जीत एक बड़ी उपलब्धि बनकर आई है क्योंकि उन्हें यहां पद संभाले साल भर ही हुआ है।
इस एक साल में उन्होंने लगातार काम किया, प्रयोग किए। लोग बदले। कार्यकर्ताओं को बदला। दायित्व बांटे। उनकी प्रयोगधर्मिता रंग लाई और आज वे विराट जीत का आनंद ले रहे हैं। वे इसकी पूरी पात्रता रखते हैं।
कांग्रेस को इससे सीख लेना चाहिये कि पार्टी के भीतर कैसे काम किया जाता है। सभी को साथ में लेकर चलने से ही कोई भी दल वजूद में रह पाता है अन्यथा उसका हश्र वही होता है जो कांग्रेस का हो रहा।
कांग्रेस के भीतर जो परिवारवाद की बुराई भरी हुई है, वह कई अच्छे नेताओं को सामने नहीं आने देती और वे घुट-घुटकर रह जाते हैं। चूंकि भाजपा में इस तरह की मनमानी का कोई दांव नहीं चलता, इसलिए यहां सारे काम एक क्रम से चलते हैं।
कुल मिलाकर गुजरात निकाय चुनावों के परिणाम जहां भाजपा की सरकारों के कामकाज पर मुहर लगाते हैं, वहीं कांग्रेस के लिए एक सबक की तरह हैं। यह बात कांग्रेस जितनी जल्दी समझ ले उसके लिए उतना ही बेहतर है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)